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आईएएस नीलकंठ टेकाम ने मांगा वीआरएस, भाजपा में होंगे शामिल…

रायपुर। छत्तीसगढ़ में ओपी चौधरी के बाद एक और आईएएस बीजेपी में शामिल होने जा रहे हैं। 2008 बैच के आईएएस अधिकारी नीलकंठ टेकाम ने वीआरएस के लिए आवेदन दे दिया है। सूत्रों की मानें तो टेकाम को बीजेपी केशकाल, कोंडागांव या अंतागढ़ से चुनाव लड़ा सकती है।

नीलकंठ टेकाम ने बताया कि उन्होंने फिलहाल वीआरएस का फैसला लिया है और इसकी स्वीकृति मिलते ही भविष्य का फैसला तय करेंगे। टेकाम ने कहा कि कोई आईएएस अगर वीआरएस ले रहा है, इसका मतलब वो अपने राज्य या क्षेत्र में आम जनता लिए कुछ बेहतर करने की उम्मीद से ही नौकरी छोड़ रहा है। उन्होंने कहा ‘मैं सामाजिक पृष्ठभूमि से आता हूं और जहां भी जनता से जुड़े काम करने का मौका मिलेगा, वहां सेवाएं दूंगा।

नीलकंठ टेकाम ने आगे बताया कि 2020 तक वे कलेक्टरी कर हे थे। इस बीच पब्लिक के लिए काम करने के अवसर जरूर मिले लेकिन सिविल सेवा की कई सीमाएं भी थी और वीआरएस लेने के बाद खुलकर जनता के बीच जाकर जनसेवा कर सकेंगे।

 

छात्र राजनीति से आईएएस बनने का सफर

बस्तर में कांकेर जिले के अंतागढ़ सरईपारा नीलकंठ टेकाम का मूल निवास है। यहीं उनकी स्कूली शिक्षा भी हुई है और महाविद्यालयीन शिक्षा उन्होंने कांकेर जिले में छत्तीसगढ़ शासकीय गवर्मेंट कॉलेज से ली है। यहां 1990 के दशक मे टेकाम ने समाजशास्त्र से एमए किया है और यहां कुशल नेतृत्व के चलते छात्रसंघ के अध्यक्ष भी चुने गए थे। साल 1994 में उन्होंने एमपी पीएससी क्रेक किया और एसटी वर्ग में टॉपर रहे।

 

उनकी ज्यादातर पोस्टिंग बस्तर संभाग में ही रही। जगदलपुर में करीब 6 साल एसडीएम से लेकर अपर कलेक्टर रहे और जगदलपुर में नगर निगम कमिश्नर की जिम्मेदारी भी सम्भाल चुके हैं। साल 2008 में उन्हें आईएएस अवॉर्ड किया गया। वे दंतेवाड़ा जिला के जिला पंचायत सीईओ भी रहे हैं और कोंडागांव कलेक्टर रहते हुए उन्होंने नीति आयोग के आकांक्षी जिलों में कोंडागांव को नंबर वन बनाया है। इस समय टेकाम संचालक कोष एवं लेखा विभाग की जिम्मेदारी सम्भाल रहे हैं। उनके रिटायरमेंट का समय साल 2028 तक है।

छात्र राजनीति में सक्रिय रहने के बाद नीलकंठ टेकाम की इच्छा शुरू से ही राजनीति में आने की थी। अविभाजित मध्यप्रदेश के समय उन्होंने चुनाव लड़ने के लिए इस्तीफा दे दिया था तब वे बड़वानी जिले में एसडीएम के पद पर कार्यरत थे। उन्होंने हजारों लोगों के साथ कलेक्टर दफ्तर पहुंचकर बतौर निर्दलीय उम्मीद्वार अपना नामांकन भी दाखिल कर दिया था लेकिन सरकार ने उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया और तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह और कुछ आदिवासी नेताओं के हस्तक्षेप के बाद उनका नामांकन वापस कराया गया और फिर वे नौकरी में बने रहे।

 

ओपी चौधरी ने भी इस्तीफा देकर लड़ा था चुनाव

2005 बैच के आईएएस रहे ओपी चौधरी ने भी इस्तीफा देकर चुनाव लड़ा था। साल 2018 में बीजेपी ज्वाइन करने के बाद चौधरी ने खरसिया सीट से विधानसभा का चुनाव कांग्रेस उम्मीदवार उमेश पटेल के खिलाफ लड़ा लेकिन इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा। हार के बावजूद ओपी चौधरी बीजेपी में लगातार सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। इस वक्त वे बीजेपी महामंत्री की जिम्मेदारी सम्भाल रहे हैं और इस साल होने वाले विधानसभा में चुनाव लड़ने की भी पूरी तैयारी है।