प्रदेश के सरकारी विभागों में दिए जाने वाले 58 प्रतिशत आरक्षण को हाईकोर्ट ने गलत बताया है। इस आदेश के जारी होने के बाद सरकारी महकमें में हड़कंप मच गया है। क्योंकि पिछले दस साल में प्रथम श्रेणी से लेकर चतुर्थ श्रेणी के सभी पदों पर 10 हजार से ज्यादा भर्तियां की गई हैं। जीएडी के सचिव डीडी सिंह के मुताबिक यह कानूनी मामला है। महाधिवक्ता स्तर पर फैसले का अध्ययन किया जा रहा है। इसलिए अभी कुछ भी कहना उचित नहीं है।
विभाग के अफसरों के मुताबिक जो भी सरकारी आदेश निकाले जाते हैं उसमें इस बात का उल्लेख रहता है कि आदेश हाईकोर्ट में दाखिल याचिका के अध्याधीन है। केंद्र द्वारा आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तय है। उसने 10 प्रतिशत और ओबीसी वर्ग के लिए अलग से आरक्षण का ऐलान भी किया है। 2012 तक प्रदेश में एसटी को 20, एससी को 16 और ओबीसी को 12 फीसदी आरक्षण दिया जा रहा था। मालूम हो कि आरक्षण की स्थिति को लेकर राज्य सरकार ने मनोज पिंगुआ कमेटी का गठन किया था। इस कमेटी ने पहले ही अपनी रिपोर्ट दे दी है।
ये रिपोर्ट शासन को यानी जीएडी को प्रस्तुत की गई। तब बताते हैं कि संबंधित पक्षों ने इसे अंग्रेजी में अनुवाद कर देने की मांग की। फिर शासन इसका अंग्रेजी में अनुवाद करवा रहा था। सरकारी विभागों में पदोन्नति में आरक्षण एसटी-एससी व ओबीसी के पदों को लेकर क्या भूमिका होगी इसका रिपोर्ट में जिक्र है। कमेटी ने सात बिन्दुओं पर एसटी- एससी व ओबीसी के लिए क्वांटीफायेबल डाटा एकत्र किया। रिपोर्ट करीब 210 पेज की है।
इसे बनाने में ट्राइबल पर शोध करने वाले सरकारी विंगों की भी मदद ली गई। सरकारी विभागों में आरक्षित पदों के लिए कितने पद मंजूर व खाली हैं। ये पद तय आरक्षण के अनुसार हैं या नहीं? यदि इनमें से खाली पदों पर संबंधित वर्गों को निर्धारित आरक्षण दिया जाता है उससे इनके प्रतिनिधित्व व सरकारी कामकाज की क्षमता पर क्या असर पड़ेगा। इसका आंकलन किया गया है। जैसे डिप्टी कलेक्टर के पद पर 50 फीसदी पद पदोन्नति से भरे जाने हैं।
इसे ऐसे समझें
जानकारों के मुताबिक हाईकोर्ट के आदेश के बाद 72 प्रतिशत आरक्षण वाला नया अध्यादेश स्वयमेव ही निरस्त हो गया, क्योंकि इसे लागू करने की अवधि छह महीने रहती है। छत्तीसगढ़ में अधिकारियों-कर्मचारियों को पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए वर्ष 2003 में नियम बनाए गए थे। इसके एसटी – एसी के अधिकारियों व कर्मचारियों को सीधी भर्ती के साथ ही पदोन्नति में भी आरक्षण 2019 तक मिल रहा था। छत्तीसगढ़ राज्य विद्युत मंडल के कुछ अनारक्षित कर्मचारियों ने 4 फरवरी 2019 को करीब 27 पिटीशन बिलासपुर हाईकोर्ट में दायर की।
छत्तीसगढ़ पदोन्नति नियम 2003 के तहत अनुसूचित जाति एवं जनजाति को पदोन्नति में आरक्षण प्राप्त होता है, उसे अपास्त कर दिया गया। हाईकोर्ट ने फैसले में सुप्रीम कोर्ट के जनरैल सिंह प्रकरण में आए फैसले का पालन करते हुए राज्य के पिछड़ेपन (क्वांटीफायेबल) डाटा एकत्रित कर आरक्षित वर्ग के सेवकों के पदोन्नति हेतु नए नियम व एक्ट फ्रेम करने को कहा। राज्य में पदोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार नए नियम जारी होने तक पदोन्नति पर रोक लगा दी गई।
इन पदों पर भर्ती
शिक्षक- 1400
असिस्टेंट प्रोफेसर- 1500
पटवारी- 800
सिविल जज- 250
चतुर्थ श्रेणी- 1000
2019 से हो गया था 72 फीसदी
राज्य सरकार ने 15 अगस्त 2019 को नया आरक्षण रोस्टर अध्यादेश के जरिए लाया। इसमें आरक्षण की स्थिति इस प्रकार हो गई थी।
एसटी – 32 प्रतिशत एससी – 13 प्रतिशत
ओबीसी – 27 प्रतिशत कुल – 72 प्रतिशत
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