ब्रिटेन में कोरोना वायरस के एक नए वेरिएंट यानी अलग तरह के लग रहे एक वायरस से बहुत ज्यादा लोग बीमार पड़ रहे हैं। इसकी वजह से वहां महामारी के बाद से किसी एक दिन में अब तक संक्रमण का सबसे बड़ा आंकड़ा दर्ज किया गया है। इसके बाद से बहुत सारे देशों ने ब्रिटेन आने-जाने पर पाबंदियां लगा दी हैं। ब्रिटेन में भी अब तक की सबसे सख्त पाबंदियां लगाई गई हैं। ये बदलता वायरस बेहद कम दिनों में इंग्लैंड के कई हिस्सों में सबसे आम हो गया है। ब्रिटेन सरकार के सलाहकारों को लगता है कि ये वाला वेरिएंट दूसरे वेरिएंट के मुकाबले ज्यादा संक्रामक है। दरअसल वायरस हमेशा अपना रूप बदलते रहते हैं यानी वो हमेशा म्यूटेट करते रहते हैं, इसलिए उसके व्यवहार में आ रहे बदलाव पर वैज्ञानिक पैनी नजर रखते हैं। लेकिन अब तक इसके बारे में जो जानकारी मिली है वो कम है, इसे लेकर कई सवाल हैं और कुछ भी फिलहाल पुख्ता नहीं है।
इससे चिंता क्यों बढ़ गई है?
तीन बातों की वजह से ये सबका ध्यान अपनी ओर खींच रहा है।
ये तेजी से वायरस के दूसरे प्रकारों की जगह ले रहा है।
हो सकता है कि वायरस के उन हिस्सों में बदलाव हो रहा है जो महत्वपूर्ण होते हैं।
कुछ म्यूटेशन्स के साथ लेबोरेटरी में प्रयोग में देखा गया है कि उनकी मानव कोशिका को संक्रमित करने की क्षमता बढ़ जाती है।
ये सभी इस ओर इशारा करते हैं कि ये वेरिऐंट पहले से अधिक तेजी से फैल सकता है। हालांकि, निश्चित तौर पर अभी इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता।
वायरस का ये नया प्रकार बहुत सामान्य हो जा सकता है कि अगर वो सही समय पर सही जगह पहुंच जाए। लंदन एक उदाहरण माना जा सकता है जहां अभी तक बहुत सख्त प्रतिबंध नहीं लगाए गए थे। कोविड-19 जीनोमिक्स यूके कंसोर्टियम के प्रोफेसर निक लोमन ने बताया, ‘लेबोरेटरी टेस्ट की जरूरत होती है ये बात सच है, लेकिन क्या कोई कदम उठाने से पहले आप हफ्तों या महीनों नतीजों का इंतजार करना चाहते हैं। मुझे नहीं लगता कि इन हालातों में इंतजार किया जा सकता है।’
ब्रिटेन में ये कितनी तेजी से फैल रहा है?
कोरोना के इस नए प्रकार का पता सबसे पहले सितंबर में चला था। नवंबर में लंदन में कोरोना संक्रमण के एक चौथाई मामलों में ये वायरस वजह था। मगर दिसंबर का मध्य आते-आते दो तिहाई मामलों में संक्रमण की वजह यही वेरिएंट पाया गया। ब्रितानी प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने शनिवार को कहा था कि वायरस के नए वेरिएंट को लेकर ‘फिलहाल पुख्ता जानकारी नहीं है’, लेकिन ये कोविड-19 बीमारी का कारण बनता है और पहले की अपेक्षा 70 फीसदी अधिक संक्रामक हो सकता है।
70 फीसदी का ये आंकड़ा लंदन के इंपीरियल कॉलेज के डॉक्टर एरिक वोल्ज ने पिछले शुक्रवार को दिया था। उन्होंने कहा था, ‘अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी, मगर अभी तक हमने जो देखा उससे यही लगता है कि ये बहुत जल्दी और पहले के प्रकारों की तुलना में तेजी से फैल रहा है, मगर इसपर नजर रखना जरूरी है।’
कहां-कहां फैला है ये बदला वायरस
समझा जाता है कि वायरस का ये नया प्रकार या तो ब्रिटेन में किसी रोगी में आया या फिर ऐसे किसी देश से आया, जहां कोरोना के म्यूटेशन यानी बदलाव पर नजर रखने की वैसी सुविधा नहीं थीं। ये नया वेरिएंट नॉर्दर्न आयरलैंड को छोड़ पूरे ब्रिटेन में फैला है। मगर लंदन, दक्षिण-पूर्व इंग्लैंड और पूर्वी इंग्लैंड में इसके ज्यादा संक्रमण पाए गए हैं।
दुनियाभर में वायरसों के जेनेटिक कोड पर नजर रखने वाली संस्था नेक्स्टस्ट्रेन के आंकड़ों से पता चलता है कि डेनमार्क और ऑस्ट्रेलिया में भी ये बदला वायरस मिला है, मगर उन जगहों पर ये वायरस ब्रिटेन से आए लोगों से ही पहुंचा। नीदरलैंड्स में भी इस वायरस के कुछ मामले मिले हैं। दक्षिण अफ्रीका में भी इससे मिलता-जुलता एक वायरस का प्रकार मिला है, मगर उसका ब्रिटेन में मिले वायरस से कोई संबंध नहीं है।
क्या ऐसा पहले भी हुआ है?
हां। वो कोरोना वायरस जो सबसे पहली चीन के वुहान में मिला था, वो उन वायरसों से अलग है जो अभी दुनियाभर में मिल रहा है। D614G प्रकार का वायरस फरवरी में यूरोप में मिला था और अभी दुनियाभर में सबसे ज्यादा यही प्रकार मिलता है। A222V एक और प्रकार था जो यूरोप में फैला। ये उन लोगों से फैला जो स्पेन में गर्मियों की छुट्टियां मनाने गए थे।
तो ब्रिटेन में ये नया प्रकार आया कहां से?
ब्रिटेन में अभी वायरस का जो प्रकार मिल रहा है वो बहुत ज्यादा बदला हुआ है। इसकी सबसे बड़ी वजह ये हो सकती है कि ये किसी ऐसे रोगी के शरीर में बदला जिसकी प्रतिरोधी क्षमता कमजोर थी, जिससे वो वायरस को नहीं मार सका। और ऐसे रोगियों के शरीर में ही इस वायरस ने मजबूत होकर अपना रूप बदल लिया।
तो क्या इससे संक्रमण और खतरनाक हो जाएगा?
फिलहाल तो इसका कोई प्रमाण नहीं मिलता, मगर इसकी निगरानी करनी होगी। लेकिन इससे स्थिति ऐसे खराब हो सकती है कि अगर इसकी वजह से संक्रमण बढ़े तो अस्पतालों के ऊपर दबाव बढ़ेगा जहां रोगियों की संख्या बढ़ सकती है।
वायरस के नए प्रकार पर वैक्सीन का असर होगा?
ये लगभग निश्चित है कि असर होगा, कम से कम अभी तो ऐसा ही लग रहा है। ब्रिटेन में अभी जो तीन वैक्सीन हैं उनसे शरीर की प्रतिरोधी क्षमता मजबूत होती है। ऐसे में भले ही वायरस का रूप बदले मगर प्रतिरोधी क्षमता उसपर हमला कर उसे बेअसर कर सकेगी। हालांकि, कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर रवि गुप्ता का कहना है कि अगर वायरस को म्यूटेट होने दिया गया तो चिंता वाली बात हो सकती है। डॉक्टर रवि गुप्ता ने कहा, ‘वायरस वैक्सीन से बचने की कगार पर है, वो उस दिशा में कुछ कदम आगे बढ़ चुका है।’
दरअसल वायरस वैक्सीन से बचने के लिए अपना रूप बदलता है जिससे वैक्सीन पूरी तरह कारगर नहीं हो पाती और वायरस लोगों को संक्रमित करता रहता है। ऐसे में अभी जो कुछ हो रहा है वो सबसे ज्यादा चिंता की बात बन जाती है। ब्रिटेन की ग्लास्गो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डेविड रॉबर्टसन ने पिछले शुक्रवार को कहा था, ‘हो सकता है कि वायरस ऐसा म्यूटेंट बना ले जो वैक्सीन से बच जाता हो।’ और यदि ऐसा हुआ तो फिर स्थिति फ्लू के जैसी हो जाएगी, जहां वैक्सीन को नियमित रूप से अपडेट करना पड़ता है। अच्छी बात ये है कि अभी जो भी वैक्सीन हैं, उनमें बदलाव बड़ी आसानी से किया जा सकता है।
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