त्योहारी सीजन में कंपनियों की तरफ से अपनी बिक्री बढ़ाने के लिए कई तरह की मार्केटिंग ट्रिक्स का इस्तेमाल करती हैं, जिससे ज्यादा से ज्यादा ग्राहक उनके सामान को खरीदें।
इस सीजन में सभी तरह के उत्पादों जैसे कि अपैरल, गैजेट्स, कार और घर पर विशेष ऑफर और भारी छूट मिलती है लेकिन इन ऑफर और छूट के चक्कर में कई बार लोग अपने बजट से ज्यादा पैसा खर्च कर देते हैं।
आज हम आपको वो ही मार्केटिंग ट्रिक्स बता रहे हैं, जिनसे बचकर रहना चाहिए क्योंकि इसके चक्कर में आपकी गाढ़ी कमाई बर्बाद नहीं होगी। विज्ञापनदाता इस सीजन में हमेशा लोगों को भावनात्मक तरीके से सामान खरीदने पर जोर देते हैं।
इस समय लाखों ऐसे विज्ञापन और मार्केटिंग कैंपेन हैं जिनके जरिए लोगों को इस तरह से सामान खरीदने का लालच दिया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि त्योहार के वक्त ही हम ज्यादा पैसा खर्च करके खुशियां मनाने की सोचते हैं। ऐसा करने के लिए समाज भी हमें प्रेरित करता है।
दुकानदारों व ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा इस दौरान दी जाने वाली 50 फीसदी छूट भी एक तरह का छलावा होती है। ऐसा इसलिए क्योंकि बिक्री बढ़ाने के लिए यह छूट कुछ ऐसे उत्पादों पर दी जाती है, जिनको आप खरीदना भी पसंद नहीं करेंगे।
वहीं जिन उत्पादों को आप खरीदना चाहते हैं, उन पर किसी तरह की कोई छूट नहीं होती है। ज्यादातर कंपनियां फेस्टिव सीजन में ही कैशबैक का ऑफर लेकर के आती हैं। ये इसलिए होता क्योंकि साल भर के मुकाबले अक्टूबर से लेकर के दिसंबर के बीच ज्यादा सेल होती है।
कंपनियों का साल भर का पूरा ऐवरेज इन तीन महीनों में निकल जाता है। सेल को बढ़ाने के लिए यह ऑफर निकाले जाते हैं और इसके लिए प्रचार-प्रसार भी खूब किया जाता है।
कैशबैक के चक्कर में लोग ज्यादा सामान भी खरीद लेते हैं, जिनकी उन्हें जरुरत भी नहीं होती है। उदाहरण के तौर पर 5 हजार रुपये का सामान खरीदने पर 500 का कैशबैक ऑफर आता है या फिर कंपनियां डिनर सेट और अन्य प्रकार के गिफ्ट भी रखती हैं।
इससे लोगों को लगता है कि वो ज्यादा खरीददारी करके एक जरुरत का सामान फ्री में घर ले जा सकेंगे। लेकिन अगर आप उस उत्पाद की वास्तविक कीमत को चेक करेंगे तो हकीकत में उतना सामान खरीदने की जरुरत नहीं पड़ेगी।
ई-कॉमर्स कंपनियां, डिपार्टमेंटल स्टोर्स, रिटेल शॉप से बैंकिंग और फाइनेंस कंपनियां अपनी सेल बढ़ाने के लिए कैश-बैक ऑफर को लेकर टाईअप करती है। इसके पीछे जो एजेंडा होता है कि उपभोक्ताओं से अधिक खर्च कराना।
इसके एवज में कंपनियां एक निश्चिचत फीसदी रकम उस बैंक या फिर एनबीएफसी कंपनियों को देती हैं जिससे उपभोक्ता खरीददारी करते हैं। इससे कंपनी और बैंक दोनों का फायदा होता है।
कंपनी की अधिक से अधिक खरीददारी होती है और उससे बैंक को एक फिक्स कमीशन मिल जाता है। बैंक इसमें से कुछ भाग कार्ड होल्डर को रिवार्ड प्वाइंट या कैश-बैक के तौर पर पास कर देती है।
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