शाह के गृहमंत्री बनते ही मिशन कश्मीर पर शुरू हो गया था काम…सिर्फ इन लोगों को थी योजना की जानकारी…

नई दिल्ली। इस आम चुनाव में शानदार जीत के बाद आरएसएस और भाजपा के भीतर तमाम विरोधाभास के बावजूद अमित शाह को गृहमंत्री बनाया जाना जम्मू-कश्मीर में धारा 370 को हटाए जाने और राज्य को बांटकर दो केंद्र शासित प्रदेश बनाने की योजना का पहला कदम था।
अमित शाह ने गृहमंत्री की कुर्सी संभालने के बाद ही इस योजना पर काम करना शुरू कर दिया था। इसकी जानकारी शाह के अलावा पीएम नरेंद्र मोदी और प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के चुनिंदा शीर्ष अधिकारी, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) अजीत दोभाल और कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद के अलावा शायद ही किसी को थी। उच्चपदस्थ सूत्रों के मुताबिक जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सत्यपाल मलिक को इसकी पूरी जानकारी तब हुई जब पिछले हफ्ते अजीत दोभाल ने कश्मीर का गुप्त दौरा किया।
सूत्रों केमुताबिक राज्यपाल के मुख्य सचिव बी वी आर सुब्रमन्यम पीएमओ के प्वायंट पर्सन रहे जिन्हें इस योजना की जानकारी थी। इस योजना पर ठोस फैसला हो जाने के बाद केंद्र ने घाटी में अर्धसैनिक बल भेजने का आदेश जारी किया तो अफवाहों का दौर शुरू हो गया।
इस अफवाह के प्रबंधन और भ्रम की स्थिति बनाए रखने के लिए भी व्यापक योजना तैयार की गई। फोर्स भेजे जाने के बाद सूचना-प्रसारण मंत्री प्रकाश जावेड़कर ने दिल्ली में पत्रकारों के साथ बैकग्राउंड ब्रिफिंग कर बताया कि अक्टूबर-नवंबर में राज्य विधानसभा चुनाव से पहले सरकार 35ए और 370 को लेकर कोई पहल नहीं करने जा रही है। इसके अलावा 15 अगस्त को हरेक पंचायत में तिरंगा फहराने की बात भी कही गई।
सरकारी सूत्र बताते रहे कि तिरंगा फहराने के दौरान हिंसा की आशंका के मद्देनजर फोर्स भेजा जा रहा है। इसी बीच सरकार ने अमरनाथ यात्रियों और पर्यटकों को घाटी खाली करने का आदेश जारी किया। इसकी वजह आतंकी हमले की आशंकी बताई गई। आतंकी हमले की खतरे की खबर में उलझी थी कि राज्यपाल सत्यपाल मलिक की तरफ से बयान आया कि राज्य में किसी भी संवैधानिक बदलाव का फैसला नहीं होने जा रहा है।
लेकिन उन्होंने साथ यह भी कहा कि अगर ऐसा कुछ होने जा रहा है तो इसकी जानकारी उन्हें नहीं है। ऐसे में पूरी तरह भ्रम की स्थिति बनी रही।उधर कश्मीर के केंद्रीय शिक्षण संस्थानों के होस्टलों के खाली कराया जा रहा था। देश के दूसरे भाग से गए मजदूरों को भी घाटी छोडऩे को कह दिया गया।
को यह आशंका जरूर थी कि इस फैसले से कश्मीर की जनता सड़क पर उतर सकती है। रविवार देर रात राज्य की दो मुख्य राजनीतिक पार्टी पीडीपी और एनसी के महबूबा मुफ्ती और फारुख अब्दुल्ला को नजरबंद कर दिया गया।
इंटरनेट को बंद करने और पब्लिक मीटिंग पर पाबंदी के साथ पूरी घाटी को सुरक्षा बलों से पाट दिया गया। सोमवार को इससे पहले कि लोगों में कोई प्रतिक्रिया होती अमित शाह ने योजना के तहत राज्यसभा में इस फैसले का एलान कर दिया।
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