कोरबा। पौराणिक कथाओं में गुरु द्रोणाचार्य की मूर्ति बनाकर उनके सामने रोज लक्ष्यभेदन का अभ्यास कर एकलव्य ने महारत हासिल की। कुछ इसी तर्ज पर पवन ने ब्रुसली को अपना गुरु माना व उनकी मूवी, यू-ट्यूब पर दिखाई जाने वाली कलाबाजियां एवं ऑनलाइन पुस्तकों के जरिए सीख-सीखकर आज कराटे का चैम्पियन बन गया। नेपाल में उसने बेहतर प्रदर्शन कर देश के लिए रजत जीता।
कोरबा निवासी एवं मार्शल आर्ट व कराटे के कुशल खिलाड़ी पवन तिवारी के जज्बे ने आत्मरक्षा वाले इस खेल में उसकी अलग पहचान बनाकर कोरबा ही नहीं बल्कि छत्तीसगढ़ का भी नाम रौशन किया है।
26 वर्षीय पवन ने 15 साल की उम्र से अभ्यास शुरू किया। प्रारंभ में उसकी इच्छा सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करना रहा। इसी से ओतप्रोत होकर मार्शल आर्ट सीखने को मकसद बनाया।
प्रशिक्षक के अभाव में स्वयं ही घर में झूले के किनारे बोरी को लटका कर उसे प्रतिद्वंदी का आकार देकर, ट्रक टायर के ट्यूब काटकर उसमें रेत भरकर अभ्यास का जो सिलसिला शुरू किया तो खरा सोना बनकर उभरा।
अभ्यास के पांच साल बाद रायपुर में उसे प्रदर्शन के आधार पर मार्शल आर्ट-कराटे खेल क्लब से जुडऩे का मौका मिला। रायपुर में आयोजित जिला स्तरीय मार्शल आर्ट प्रतियोगिता में अपने जीवन का पहला सिल्वर मेडल जीता।
इसके बाद क्लबों के जरिए रायपुर, बिलासपुर, भिलाई में आयोजित राज्य व राष्ट्र स्तर के प्रतियोगिताओं में शामिल होकर तीन बार गोल्ड मेडल, चार बार सिल्वर मेडल जीता। हाल ही में नेपाल में नेपाल इंटरनेशनल क्योकुशिनकाई कराते संघ द्वारा आयोजित फुल कान्टेक्ट चैम्पियनशिप 2019 में पवन ने भारत का प्रतिनिधित्व किया। भारत के अलावा पाकिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, म्यान्मार देश के 200 प्रतिभागी इसमें शामिल हुए। पवन ने बेहतर प्रदर्शन करते हुए देश के लिए सिल्वर मेडल जीता।
प्रारंभिक शिक्षा दर्री के प्रगतिनगर शिशु मंदिर में करने उपरांत पवन ने छत्रपति शिवाजी टेक्निकल यूनिवर्सिटी, रायपुर से बीई मैकेनिकल की डिग्री हासिल की है। यूनिवर्सिटी स्तर पर आयोजित बॉस्केटबाल, हैण्डबाल, बैडमिंटन व शतरंज की प्रतियोगिताओं में वह शामिल होता रहा और गोल्ड मेडल जीतकर अलग पहचान बनाई।
पवन बताते हैं कि उनके पिता राजेश तिवारी जो कि कोरबा जिला पुलिस बल में एएसआई एवं वर्तमान में सिटी कोतवाली में पदस्थ हैं, के हार्ड वर्क से प्रेरणा मिलती रही है। जब वह कक्षा तीसरी में था, तब पिता से शतरंज खेलना सीखा और यूनिवर्सिटी में शतरंज का गोल्ड मेडल जीता। सेना में तो भर्ती नहीं हो सका लेकिन एसआई की तैयारी इन दिनों कर रहा है।
मार्शल आर्ट व कराटे जैसे खेल के लिए कड़ी मेहनत करने वाले पवन का एक दूसरा पहलू कोमल हृदय वाला भी है। रायपुर में ध्यान योग (मेडिटेशन) की शिक्षिका श्रीमती रोज के संपर्क में वह आया। चूंकि पवन एक अच्छा बांसुरीवादक भी है और इसके चर्चे यूनिवर्सिटी में भी रहे।
श्रीमती रोज के मेडिटेशन क्लास में पवन अपने बांसुरी वादन से सिरदर्द, माइग्रेन, दिमागी तनाव से पीडि़त लोगों को राहत देने का भी काम कर रहा है। पवन के मुताबिक अलग-अलग बीमारियों के लिए बांसुरी की अलग-अलग धुन एक बेहतर दवा का काम करती है।
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