…तब स्तन ढंकने के लिए टैक्स चुकाती थीं दलित महिलाएं, पढ़ें-200 साल पुरानी कुप्रथा और उससे मुक्ति की कहानी

कोई बहुत ज्यादा समय नहीं गुजरा, 150-200 वर्ष पहले की बात है. केरल का समाज सामंतवाद की चक्की में बुरी तरह पिस रहा था. केरल तब त्रावणकोर की रियासत का हिस्सा था. समाज में जातियां खानों की तरह बंटी हुई थी. जातिवाद और अमीरी-गरीबी का विभाजन बड़ा क्रूर और वीभत्स था. त्रावणकोर का राजा निचली जातियों के लोगों पर बड़ी सख्ती और क्रूरता से टैक्स पर टैक्स लादे जा रहा था.
इस टैक्स की तफ्सीलात सुन आप हैरान रह जाएंगे. मूंछ रखने पर टैक्स, मछली का जाल रखने पर टैक्स, आभूषण पहनने पर टैक्स, नौकर या दास रखने पर टैक्स और तो और स्तन ढंकने पर भी टैक्स. निचली जाति की महिलाओं द्वारा चुकाये जाने वाले इस कर का नाम था ब्रेस्ट टैक्स यानी की स्तन कर. जी हां- ठीक सुना आपने मात्र 200 साल पहले भारत में गरीब और निचली जाति की महिलाओं को अपने स्तन का ऊपरी हिस्सा ढंकने की मनाही थी.
वो जमाना, जब स्तन ढंकने के लिए पड़ता था चुकाना…
अगर इन महिलाओं को अपना वक्ष ढंकना ही था तो इसके लिए उन्हें राजा को कर चुकाना पड़ा था. इस कर का नाम मलयालम में था मुलक्करम यानी की स्तन कर. राजा की ओर से नियुक्त टैक्स कलेक्टर बाकायदा दलितों के घर आकर इस कर की वसूली करता था. ये बात 19वीं सदी की है.
इस स्तन कर को लेकर न जाने कितनी किंवदंतियां हैं, जो समय के साथ पूर्वाग्रहों और श्रुति परंपरा में पककर कहानियों में ढलती गईं. लोककथाओं के अनुसार स्तन के आकार, उसमें आकर्षकता का पुट के आधार पर टैक्स की रकम तय की जाती थी. हालांकि औपचारिक इतिहास में इसे लेकर परस्पर विरोधी विचार मिलते हैं.
स्तन ढंकने के लिए लगाए इसी टैक्स के खिलाफ क्रांतियों के देश भारत में 1822 में एक क्रांति हुई जब गरीब महिलाओं ने इस शासनादेश के खिलाफ बगावत कर दिया. इसके बाद एक के बाद एक कुल तीन विद्रोह हुए. पहला 1822 से 1823 दूसरा 1827 से 1829 और तीसरा 1858 से 1859. इस क्रांति की नायिका थी नांगेली नाम की एक साधारण महिला. इस प्रथा के खिलाफ विद्रोह जताने के लिए नांगेली ने जो किया वो स्तब्ध कर देने वाला है. क्रोध से तपती नांगेली ने अपना स्तन ढंकने के लिए टैक्स मांगने वाले राजा से खतरनाक प्रतिशोध लिया. मगर कैसे? ऐसे- नांगेली ने टैक्स वसूलने आए अधिकारी को अपना ही स्तन काटकर भेंट कर दिया. केले के लहलहाते हरे पत्ते में. नांगेली के वक्ष से फूटता खून का फव्वारा और सामने हतप्रभ, सांप सूंघ गया अधिकारी.
आंदोलन की 200वीं वर्षगांठ मना रहे स्टालिन और विजयन
इतिहासकारों ने इस आंदोलन को नाम दिया Thol Seelai Porattam यानि की अपर क्लोथ रिवोल्ट. इसे चन्नार लहाला अथवा चन्नार क्रांति भी कहा जाता है. जिसका अर्थ था शरीर के ऊपरी हिस्से पर कपड़े पहनने का अधिकार. इसी क्रांति की 200वीं वर्षगांठ मनाने के लिए आज कन्याकुमारी के नगरकोलि में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री स्टालिन और केरल के सीएम पी विजयन एक मंच पर जमा हो रहे हैं. इन दोनों ही मुख्यमंत्रियों की राजनीतिक विचारधारा इस आंदोलन को सेलिब्रेट करने के लिए बेहद मुफीद है.
शरीर के ऊपरी हिस्से पर कपड़े पहनने का अधिकार
18वीं 19वीं सदी में केरल में नम्बूदरी, नायर और वेल्लार जातियां श्रेष्ठ और उच्च जातियों में गिनी जाती थीं. जबकि शानार जिसे बाद में नाडार कहा जाने लगा, एडवा, पुलस्य जैसी जातियों की गिनती निचले क्रम में होती थी.