
जगदलपुर। नगर पालिका निगम जगदलपुर के नगर सत्ता में निगम बनने के बाद कांग्रेस पहली बार बहुमत हासिल करने में सफलता पाई है। कांग्रेस के 28 पार्षदों एवं 01 निर्दलीय के साथ 48 वार्ड में 29 पार्षदों का बहुमत होने के बावजूद महापौर के लिए दावेदारों में गुटबाजी से कांग्रेस की परेशानी बढ़ गई है।
महापौर के 04 से 05 दावेदारों में से किसी एक को कांग्रेस तय करेगी लेकिन गुटबाजी का आलम यह है कि बस्तर के एक मंत्री को पर्यवेक्षक के पद से अपने आप को अलग करना पड़ गया और नया पर्यवेक्षक बनाना पड़ा।
मंत्री कवासी लखमा के पर्यवेक्षक के हटने को भले ही बहुत हल्के ढंग से लिया गया हो, लेकिन मंत्री कवासी लखमा के हटने के पीछे का कारण कांग्रेस में महापौर को लेकर बढ़ रही गुटबाजी ही है। अपने भविष्य को दांव पर नहीं लगाने को लेकर कवासी लखमा पर्यवेक्षक पद से हट गए लेकिन उसके बाद भी गुटबाजी का बवाल थमने की बजाय बढ़ता चला जा रहा है।
नगरीय निकाय चुनाव के परिणाम बीते 24 दिसंबर को आने के बाद कांग्रेस जिलाध्यक्ष राजीव शर्मा, विधायक रेखचंद जैन की अगुवाई में कांग्रेस के निगम पार्षदों को यह कहकर रायपुर ले जाया गया कि उन्हें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने मुलाकात के लिए बुलाया है, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। बताया जा रहा है कि जिला संगठन अपने लोगों को महापौर के पद पर आसीन करना चाहता है। वहीं सांसद गुट अपने चेहरे को निगम की सत्ता पर बिठाना चाहते हैं।
यह विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। कांग्रेस के पार्षद इस समय राजधानी में एक होटल में ठहराए गए हैं। दरअसल महापौर पद के लिए 04 से 05 दावेदार हैं, इनमें से एक नाम तय करना पार्टी के लिए परेशानी का सबब बन गया है।कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी के चलते अब तक यह तय नहीं हो पाया है कि कांग्रेस के महापौर का प्रत्याशी कौन होगा। अंतिम समय तक महापौर के दावेदारों को भी पता नहीं होगा कि कौन महापौर का प्रत्याशी होगा।
ऐसी स्थिति में भाजपा अपने अवसर तलाशने के लिए कांग्रेस के गुटबाजी पर नजर बनाये हुए हैं। यदि कांग्रेस के 06 से अधिक असंतुष्ट पार्षद भाजपा के पक्ष में मतदान के लिए तैयार हो जाते हैं तो जगदलपुर निगम का परिणाम बदल भी सकता है। जिसे कांग्रेस होने देना नहीं चाहेगी। इसीलिए कांग्रेस के सभी पार्षदों को जगदलपुर से बाहर ले जाकर अज्ञात स्थान में रखा गया है।
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