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निर्भया कांड में इंसाफ के लिए 7 साल लंबा इंतजार क्यों?…

पूरे सात साल हो गए निर्भया केस को। वो 16 दिसंबर 2012 था। आज 17 दिसंबर 2019 है। इन सात लंबे सालों में निर्भया के गुनहगार तो अपने अंजाम तक नहीं पहुंच पाए। अलबत्ता सोमवार को उन्नाव रेप मामले में विधायक कुलदीप सेंगर को दिल्ली की एक अदालत ने रेप और अपहरण का दोषी जरूर करार दे दिया।

अब सजा का एलान मंगलवार को होगा। पर निर्भया केस का क्या होगा? आखिर निर्भया के गुनहगारों की फांसी कहां लटकी है। तो आइए निर्भया केस के सात साल पूरे होने के मौके पर इन सात सालों का हिसाब-किताब देखते हैं।

16 दिसंबर 2012 से 17 दिसंबर 2019
कहां तो तब ऐसा लग रहा था कि बस अब इंसाफ हुआ कि तब इंसाफ हुआ। बातें हो रही थीं कि देख लेना साल भर के अंदर लटका दिए जाएंगे सारे। मगर साल दर साल बीतता गया। सातवां साल आ गया। शायद ये साल भी बीत जाता। क्या पता बीत भी जाए।

वो तो हैदराबाद की डाक्टर और उन्नाव की उस लड़की ने एक बार फिर देश को गुस्सा दिलाया तब जाकर हमें याद आया कि अरे निर्भया के गुनहगारों की तो अब तक फांसी नहीं हुई है। बस फिर क्या था याद आते ही अब फांसी, फांसी के तरीके, पांसी के कानून, फांसी की तारीख फांसी की रस्सी, पांसी का फंदा सब पर बातें होने लगीं।



क्यों लगा इतना वक्त
निर्भया केस किस रफ्तार से आगे बढ़ा, पिछले सात सालों में कब क्या हुआ। साल-दर साल इसकी पड़ताल करें उससे पहले जरूरी है। जरूरी है कि इस वक्त केस किस मोड़ पर खड़ा है। आगे क्या होगा। कब तक फांसी होगी।

किस तारीख तक फांसी हो सकती है। किस दिन ब्लैक वॉरंट जारी होगा। इन कानूनी पहलुओं को जान और समझ लें। फिलहाल निर्भया के चारों गुनहगार यानी मुकेश, पवन, अक्षय और विनय की फांसी के बीच पांच कानूनी अड़चनें हैं।

पहली क़ानूनी अड़चन
निर्भया की मां ने फांसी में हो रही देरी को लेकर इसी साल अक्तूबर में पटियाला हाउस कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। उस याचिका पर सुनवाई करते हुए पटियाला हाउस अदालत ने तिहाड़ जेल के डीजी को नोटिस जारी कर चारों कैदियों के केस की ताजा रिपोर्ट मांगी। 13 दिसंबर को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए चारों दोषियों से बातचीत करने के बाद अदालत ने 18 दिसंबर को सुनवाई की अगली तारीख रखी है।



दूसरी क़ानूनी अड़चन
दूसरी अड़चन ये है कि 10 दिसंबर को एक और गुनहगार अक्षय ने सुप्रीम कोर्ट में फांसी की सजा को लेकर रिव्यू पिटिशन दाखिल कर दिया था। उस याचिका पर सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट ने 17 दिसंबर दोपहर दो बजे का वक्त दिया है।

तीसरी क़ानूनी अड़चन
तीसरी अड़चन ये है कि 17 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद भी 18 दिसंबर को पटियाला कोर्ट में सुनवाई होगी। फिर पटियाला हाउस कोर्ट कैदियों के आगे की हक के बारे में कोई फैसला दे सकता है।

चौथी क़ानूनी अड़चन
चौथी अड़चन ये है कि मुकेश और पवन कहीं अदालत के सामने कह दें कि वो भी राष्ट्रपति से रहम की अपील करेंगे तो बहुत मुमकिन है कि उन्हें भी ये मौका मिल जाए। इससे फांसी कुछ और दिन टल सकती है। हालांकि ये भी हो सकता है कि 18 दिसंबर को अदालत ये साफ कर दे कि इतने वक्त तक आप लोगों ने राष्ट्रपति से रहम की अपील क्यों नहीं की?

और इस बिनाह पर उसकी अर्जी नामंजूर कर दे। या ये भी हो सकता है कि बाकी दोनों दया के लिए राष्ट्रपति के पास जाएं ही नहीं। ऐसी सूरत में बहुत मुमकिन है कि चारों को जल्दी फांसी दे दी जाए। पर ये जल्दी भी एक-दो हफ्ते का वक्त तो ले ही लेगी।
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पांचवीं क़ानूनी अड़चन
2014 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के तहत दया याचिका खारिज होने और ब्लैक वारंट जारी होने पर भी फौरन फांसी नहीं दी जा सकती। सुप्रीम कोर्ट कहता है कि ब्लैक वारंट जारी होने के बाद फांसी पर चढ़ाए जाने वाले शख्स को कम से कम 14 दिन का वक्त दिया जाना चाहिए।

ताकि इस दौरान वो अपने सारे अधूरे काम जिनमें वसीयत करने से लेकर रिश्तेदारों से मिलना शामिल है, वो सब पूरी कर सके। इस हिसाब से भी फांसी में कम से एक-दो हफ्ते का वक्त लग जाएगा।

वैसे ये सारी कानूनी अड़चनें तो अभी के लिए और अभी की हैं। अब सवाल उठता है कि निर्भया जैसे केस में जिसमें फास्ट ट्रैक कोर्ट ने सिर्फ नौ महीने के अंदर अपना फैसला सुना दिया था। उसके बाद भी फांसी देने में सात साल क्यों लग गए?



इस केस का एक और अजीब पहलू है। अब ये इत्तेफाकन है या इसके पीछे फांसी की तारीख टालने की साजिश तो नहीं। निर्भया के चारों गुनहगरों ने अभी तक अपने आखिरी कानूनी अधिकार या रहम की अपील के मानवीय अधिकार का इस्तेमाल ही नहीं किया है।

अगर एक ने पुनर्विचार याचिका दायर नहीं की तो दूसरे ने रहम की अपील ही नहीं की। एक ने तो दोनों में से अब तक कुछ भी नहीं किया। निर्भया केस का पहला फैसला फास्ट्र ट्रैक कोर्ट ने सिर्फ 9 महीने में यानी 2013 में ही सुना दिया था।

इसके बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने भी बहुत ज्यादा वक्त नहीं लिया। साल भर में हाई कोर्ट से भी फैसला आ गया। अलबत्ता सुप्रीम कोर्ट ने जरूर करीब सवा तीन साल लिए फैसला सुनाने में। मगर उसके बाद आखिरी के दो साल में इस केस में कुछ हुआ नहीं था।

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