दिल्ली। दिवाली पर देशभर में लोगों ने जमकर आतिशबाजी की। पिछले कुछ वर्षों से सरकार, अदालतें और पर्यावरण से जुड़े कई संगठन और लोग आतिशबाजी कम करने की अपील कर रहे हैं। कई रिपोर्ट्स में ऐसा दावा भी किया गया है कि इस बार दिवाली पर पिछले वर्ष के मुकाबले कम पटाखे जलाए गए हैं।
लेकिन बावजूद इसके दिल्ली-एनसीआर में स्मॉग और प्रदूषण कम नहीं हुआ है। दिवाली की अगली सुबह धुंधभरी थी। दो दिन बाद भी हवा सांस लेने लायक नहीं है।बंगलूरू में रहने वाले अभिषेक ने अपने दोस्तों के साथ सोमवार रात किसी खुले स्थान पर दिवाली की छुट्टी मनाने की योजना बनाई।
उन्होंने तय किया था कि वो अपने दोस्तो के साथ बाहर जाएंगे, लेकिन पटाखों के धुएं की वजह से घर के अंदर रहने को मजबूर हो गए। उन्होंने कहा मुझे लगा लोगों ने पटाखों को लेकर अपने ख्याल को बदल लिया है, लेकिन इसके बावजूद भी धुंध और धुएं का गुबार रविवार के मुकाबले सोमवार को ज्यादा था।
यही हाल देश के लगभग हर मुख्य शहर का है। दिल्ली में वायु प्रदूषण पिछले साल के मुकाबले कम रहा, लेकिन इसके बाद भी चारों ओर धुंध और धुएं का गुबार छाया हुआ है। केवल मुंबई ही एक ऐसा शहर रहा जहां की हवा की स्थिति बेहतर बनी हुई है।
दूसरी ओर, बंगलूरू की हवा अभी गुणवत्ता के मानकों पर मध्यम बनी हुई। दिल्ली की हवा गंभीर श्रेणी में बनी हुई है। बंगलूरू के निवासियों को सोमवार को वायु प्रदूषण की वजह से गले में धुएं की जलन महसूस हुई।
देशभर के अधिकांश शहरों में, पीएम 10 और पीएम 2.5 की रीडिंग मौसम की स्थिति के कारण दिवाली के एक दिन बाद तेजी से बढ़ी। प्रदूषण विरोधी सभी अभियानों के बावजूद लोगों ने पटाखे जलाना जारी रखा।
जबकि दक्षिण और पश्चिम भारत के शहर, जहां लगातार बारिश हो रही है की स्थिति तुलनात्मक रूप से अच्छी कही जा सकती है। क्योंकि बारिश के चलते यहां के लोग शुद्ध हवा में सांस ले पा रहे हैं।
राजधानी दिल्ली अभी भी दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में से एक बनी हुई हैं। जहां हवा की गुणवत्ता का सूचकांक (एक्यूआई) तेजी से बढ़ रहा है। इस साल, 2018 की तुलना में सर्दियां देरी से शुरू हो रही हैं।
इस कारण दीवाली की अगली सुबह में देश के अधिकांश शहरों में हवा की गुणवत्ता मामूली रूप से बेहतर रही। पर्यावरण के हितैषियों और जानकारों का मानना है कि गंदे औद्योगिक ईंधनों को खत्म करना होगा।
सार्वजनिक परिवहन प्रणाली में सुधार करना होगा और अपशिष्ट जलाने और धूल कम करने के लिए दीर्घकालिक प्रणालीगत योजना पर काम करना होगा। तभी इसका प्रदूषण कम करने में प्रभाव देखने को मिलेगा। अगर ऐसा नहीं होता है तो, दिल्ली-एनसीआर इस सर्दियों में भी लंबे समय तक धुंध में ही डूबा रहेगा।
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