रायपुर। छत्तीसगढ़ के डीजीपी डीएम अवस्थी हर सप्ताह अपने दफ्तर में राज्य के पुलिस कर्मियों और उनके परिजनों से मिलकर उनकी समस्याएं सुन रहे हैं। पिछले दो सप्ताह तक समस्याएं सुनने के बाद ये तथ्य सामने आया कि शिकायतें और समस्याएं बहुत ज्यादा है।
सबसे बड़ी समस्या तो यही रही है कि पुलिस जवानों को सुनने की कभी कोशिश ही नहीं की गई। बेहद तनाव में वे ड्यूटी करते रहे और सरकार तथा अफसरों को उनकी पीड़ा समझने की फुर्सत नहीं रही।
लेकिन अब नक्सल प्रभावित जिलों के कुछ एसपी लगातार जवानों से संवाद स्थापित करने में लगे हुए हैं। इसी दौरान यह तथ्य सामने आया कि नक्सल इलाकों में पदस्थ जवानों के लिए वीकली ऑफ तो बेमानी है।
दरअसल जंगल में बैरकों में रह रहे जवान बीमार होने पर भी वहां से निकलने के लिए फोर्स की तैनाती का इंतजार करते हैं। जगरगुंडा और पामेड़ जैसे थानों से तो कई बार हेलीकॉप्टर से उन्हें निकालना पड़ता है।
किसी एक जवान को छुट्टी पर जाना हो तो रोड ओपनिंग पार्टी से लेकर बम स्क्वायड तक लगाना पड़ता है तो अगर एक दिन की छुट्टी मिली तो वे बैरक में ही रह जाएंगे। फिर छुट्टी का मतलब क्या होगा। इसीलिए नक्सल मोर्चे के पुलिस कर्मियों ने मांग की है कि उनके लिए महीने के चार हफ्तों की छुट्टी एकमुश्त चार दिन के लिए दी जाए।
अगर चार दिन की छुट्टी मिलती है तो वे पैदल चलकर निकल पाएंगे और एक-दो दिन के लिए परिवार से भी मिल पाएंगे। हालांकि पुलिस कर्मियों के कल्याण के लिए बनी कमेटी वीकली ऑफ पर क्या निर्णय देती है यह देखा जाना बाकी है। पुलिस कमेटी के निर्णय के बाद यह देखा जाएगा कि नक्सल मोर्चे के जवानों के लिए अलग से क्या किया जा सकता है।
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