चेन्नई। मद्रास हाईकोर्ट ने शुक्रवार को कहा है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के तहत दिए जाने वाले मुफ्त चावल और ऐसी अन्य सरकारी लाभों ने लोगों को आलसी बना दिया है। अब जनता सरकार से सब कुछ मुफ्त पाने की उम्मीद करने लगे हैं। जस्टिस एन. कृपाकरण और जस्टिस अब्दुल कुद्दोस की पीठ ने यह भी कहा कि मुफ्त चावल जैसी योजनाओं को केवल गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों (बीपीएल) तक सीमित किया जाना चाहिए।
मद्रास हाईकोर्ट में शुक्रवार को चावल तस्करी के मामले के अभियुक्त की बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई चल रही थी। इसी दौरान पीठ ने उपरोक्त बाते कहीं। पीठ ने कहा है कि गरीबों को चावल व अन्य जरूरी सामग्री उपलब्ध कराना सरकार के लिए बाध्यकारी है लेकिन राजनीतिक लाभ के लिए सरकारें लगातार गरीब तबके के अलावा अन्य लोगों को भी ऐसे लाभ देती रहीं। इसका नतीजा यह हो रहा है कि लोग आलसी हो गए और छोटे-छोटे कामों के लिए बाहर से मजदूरों (उत्तर भारतीय) को बुलाना पड़ रहा है।
पीठ ने कहा कि 2017-18 में चावल वितरण के लिए 2110 करोड़ रुपए खर्च किए गए। यह बहुत बड़ी राशि है जिसका इस्तेमाल विवेक संगत बुनियादी संरचना के निर्माण में होना चाहिए था।
पीठ ने सरकार से रिपोर्ट मांगी है कि क्या उसने बीपीएल परिवारों की पहचान के लिए कोई सर्वे कराया है? अगर है तो उसके हिसाब से तमिलनाडु में कितने परिवार गरीबी रेखा के नीचे है? एडवोकेट जनरल ने सरकार का पक्ष रखने के लिए मोहलत मांगी कि क्या मौजूदा योजना संशोधित कर बीपीएल से ऊपर वालों को हटाया जाए? सुनवाई 30 नवंबर को होगी।
सेंटर आफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के अध्ययन के अनुसार तमिलनाडु में हुए पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान 70 प्रतिशत मतदाता या तो खुद को मिले मुफ्त उपहारों व पैसे के बारे में बात कर रहे थे या ऐसा लाभ लेने वाले दूसरे मतदाताओं की बात कर रहे थे। देश में मुफ्त उपहार देने में कोई पार्टी पीछे नहीं। मुफ्त उपहारों की सूची में लैपटॉप, स्मार्टफोन, इंटरनेट, मुफ्त एलपीजी, इंडक्शन स्टोव, मिक्सर-ग्राइंडर, पंखों के अलावा चीनी और सस्ता मक्खन भी शामिल है।
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