जगदलपुर। मौसम की स्थिति और संभावित बारिश की जानकारी प्राप्त करने आधुनिक संसाधनों से परिपूर्ण मौसम विज्ञान से लेकर अंतरिक्ष में सेटेलाइट्स काम कर रहे हैं। इन सब के बावजूद बस्तर के किसान अपनी पुरानी परंपरा और अनुभव के आधार पर बारिश और फ सल का अनुमान लगा लेते हैं। इसके लिए वे सोनरली (अमलताश) में फू लों के आने के समय और कौंआ द्वारा तिनका उठाने की स्थिति को गौर करते हैं।
बारिश और आगामी फ सल की स्थिति को जानने की उत्सुकता हजारों साल से हमारे कृषि प्रधान देश के किसानों में रही है, इसलिए अलग-अलग क्षेत्र में आंकलन की स्थिति भी भिन्न-भिन्न है। इस कार्य के लिए बस्तर के किसान अमलताश के फू लों और कौंआ द्वारा तिनका उठाने की स्थिति को गौर करते आए हैं।
ग्राम जाटम के किसान तुलाराम देवांगन, बड़े मुरमा के धनसाय ठाकुर, दिलीप सेठिया, अखिलेश ठाकुर बताते हैं कि अमलताश को बस्तर में सोनरली तो छग के मैदानी इलाके में धनबोहार कहते हैं। लोक मान्यता है कि जितनी जल्दी सोनरली के पेड़ों में फूल आएंगे, उतनी ही जल्दी बारिश आती है, इसलिए यहां के किसान सोनरली फूलों को देखकर किसानी कार्य प्रारंभ कर देते हैं। इधर ग्राम भाटीगुड़ा के ऋ षि यादव, ललित नेगी, महेश सेठिया, पोड़ागुड़ा के खगेश देवांगन बताते हैं कि आमतौर पर बारिश के पूर्व पक्षी अपना घोसला बनाने या उन्हें सुधारने में लग जाते हैं।
पुरानी मान्यता है कि कौआ द्वारा उठाए गए तिनके का झुकाव जितना ज्यादा होगा सूखा की स्थिति भी वैसी रहेगी, इसलिए ग्रामीण इस बात को गौर करते हैं कि कौआ तिनके को अपनी चोंच में कहां से पकड़ा है? मध्य से पकड़े गए तिनके का मतलब भरपूर बारिश और किनारे से पकडऩे का मतलब कम बारिश निकालते हैं, लेकिन वे इस साल की बारिश के बारे में खुलकर कुछ भी नहीं कह पा रहे हैं। ग्रामीणों का यह भी मानना है कि जिस साल टेसू में फ ूल कम आते हैं उस साल बारिश भी कम होती है।
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