जगदलपुर। छत्तीसगढ़ में बस्तर जिला मुख्यालय से नौ किलोमीटर दूर स्थित ग्राम भाटीगुड़ा और इसके आस-पास के सात गांवों के सैकड़ों ग्रामीण मिलकर गत ढाई दशक याने 25 सालों से 800 एकड़ के जंगल को सहेज रहे हैं। ढाई दशक पहले जब इस जंगल पर संकट आता देख, ग्रामीण इसकी हिफ ाजत को एकजुट हो गए। तब से सभी ग्रामीण मिलकर इस जंगल का संरक्षण कर रहे हैं। वे पेड़ों की सुरक्षा के लिए चौकीदारी करते हैं, यहां पेड़ काटने पर पूरी तरह प्रतिबंध है।
ऐसा नहीं है कि ये ग्रामीण अब भी आदिमकाल में जी रहे हैं। विकास के साथ कदमताल इन्होंने भी किया है, लेकिन प्रकृति को बिना कोई नुकसान पहुंचाए बल्कि प्रकृति का संरक्षण करते हुए, साल का यह समृद्ध जंगल यहां के ग्रामीणों की जिंदगी बन चुकी है। जंगल से ही ग्रामीणों का निस्तार होता है। यही जंगल उनकी मवेशियों का चारागाह भी है। इस जंगल से ही प्रख्यात बस्तर दशहरा के रथ के लिए पहली लकड़ी लाई जाती है, चौकीदार भी रखे हैं, जिसे सालाना पारिश्रमिक देते हैं। गांव के जयराम बताते हैं कि जंगल की सुरक्षा को मजबूत करने के लिए उन्होंने चौकीदार भी रखे हैं। उन्हें सालाना आठ हजार रुपए पारिश्रमिक देते हैं, यह राशि धान बेचकर जुटाते हैं। सात गांवों के लिए नियम बना दिया गया है कि प्रतिवर्ष धान कटाई के बाद बड़े किसान 50 किलो, छोटे किसान 30 किलो, अन्य ग्रामीण 20 किलो धान कोठी में जमा करेंगे। लोग खुशी-खुशी इसमें योगदान करते हैं।
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