छत्तीसगढ़

श्री कृष्ण लोक-रक्षक और लोक-पुरूष के रूप में सदैव पूजे जाएंगे

ललित चतुर्वेदी
छत्तीसगढ़ में जन्माष्टमी का पर्व बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता है। श्री कृष्ण कीे एक लोक-रक्षक और लोक-पुरूष के रूप में मान्यता है। जब-जब समाज पर विपत्ति आती है तब वे हमारी रक्षा करते हैं वहीं वे जननायक के रूप में हमें कर्म करने का रास्ता दिखाते हैं और असहायों की रक्षा करते हैं। वस्तुतः वे लोक की शक्ति को स्थापित करने वाले नायक हैं।

पौराणिक मान्यता है कि भगवान कृष्ण ने दुष्ट आततायी अपने मामा मथुरा नरेश कंस के वध के लिए देवकी के गर्भ से जन्म लिया था। जन्माष्टमी की रात श्रीकृष्ण की बालमूर्ति की झांकी सजाकर पूजा-प्रार्थना की जाती है, फिर दूसरे दिन श्रीकृष्ण की बालमूर्ति का बाजे-गाजे के साथ जुलूस निकाला जाता है। गांव की गलियों-चौराहों पर दूध-दही के मटके लटकाएं जाते हैं, जिसमें ग्वालबालों की टोली के स्वरूप में जनसमूह द्वारा दही लूटा जाता है।



छत्तीसगढ़ की परम्परा के अनुसार गड़वा बाजा के साथ रंग-बिरंगी पोषाकों में राउत नाचा और उसका मनोहारी नृत्य गांवों में गोकुल-वृन्दावन का कृष्णमय दृश्य प्रदर्शित होता है। दही हांड़ी और दही लूट प्रतियोगिताओं में युवाओं का उत्साह देखते बनता है।

यह पर्व लोक संस्कृति का हिस्सा है यहां शहरों और गांवों में कृष्ण भक्ति के कार्यक्रमों का भी आयोजन होता है। यादव समाज के लोग परम्परागत वेशभूषा में रंगबिरंगे पोषाकों में सज-धज कर भगवान कृष्ण की शोभा यात्रा निकालते हैं। आज भी कृष्ण जन्म की भावना के अनुरूप शिशु के जन्म लेने पर धान से भरे सूपा में शिशु को सुखाया जाता है और बाद में वह धान प्रसव कार्य कराने वाली दाई माँ को दे दिया जाता है।
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आठे कन्हैया लोक संस्थापक श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव का केवल प्रतीक मात्र ही नहीं अपितु समूह की शक्ति को प्रतिस्थापित करने का पर्व है। उन्होंने हठी इन्द्र के मान-मर्दन और लोक रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया था, तब ग्वालबालों के समूह ने जिस शक्ति, शौर्य और सहयोग का प्रदर्शन किया था।

आज उसी शक्ति शौर्य और सहयोग की आवश्यकता है। यादव इसी लोक संगठक के रूप में श्रीकृष्ण लोक में ज्यादा पूज्य है। छत्तीसगढ़ के लोक जीवन में आठे कन्हैया के प्रति अगाध प्रेम-आस्था है। बच्चे, बूढ़े और स्त्री-पुरूष सभी इस दिन उपवास रखकर श्रीकृष्ण की जन्म बेला में आठे कन्हैया भित्ती चित्र की पूजा करते हैं।



जन्माष्टमी के अवसर पर हमें उनकी शिक्षाओं और जीवनसूत्रों को जीवन में अपनाना चाहिए। उन्होंने मानव जाति को नया जीवन दर्शन दिया। श्री कृष्ण ने संवेदना, संघर्ष, प्रतिक्रिया और विरोध के प्राण फंूके। महाभारत का युद्ध तो लगातार चलने वाली लड़ाई का चरम था।

श्रीकृष्ण ने हर युग और समाज के सवालों का जवाब दिया और तारनहार बने। आज भी वही सवाल मुंह बाए खड़े है। ऐसे में श्रीकृष्ण के वंदनीय पक्ष की जगह अनुकरणीय पक्ष की ओर ध्यान दिया जाए।

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