
रायपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा के मानसून सत्र के अंतिम दिन शुक्रवार को कांग्रेस द्वारा रमन मंत्रिमंडल के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा सदन में चल रही है। इसी कड़ी कांग्रेस सदस्य भूपेश बघेल ने अपने वक्तव्य में कहा कि मैं आज प्रस्ताव पर बोलने के लिए खड़ा हुआ हूं तो महसूस कर रहा हूं कि यह मौजूदा विधानसभा का अंतिम सत्र है। मुख्यमंत्री के रूप में रमन सिंह का आखिरी सत्र है और मंत्रियों का मंत्री के रूप में आखिरी सत्र है। स्वाभाविक सवाल हो सकता है कि पिछले सत्र में प्रस्ताव लाने के बाद हमें फिर से प्रस्ताव लाने पर क्यों बाध्य होना पड़ा ? मैं कहना चाहता हूं कि इस प्रस्ताव की वजह सिर्फ राजनीतिक नहीं है, यह भारत की महान लोकतांत्रिक परंपरा की रक्षा का सवाल है. यह तंत्र पर लोक के विश्वास और अविश्वास का सवाल है।
श्री बघेल ने कहा कि यह प्रस्ताव सिर्फ़ विपक्षी दल के रूप में कांग्रेस की ओर से लाया प्रस्ताव नहीं है. दरअसल यह राज्य की उस जनता की ओर से लाया गया प्रस्ताव है, जिसकी इस राज्य में पिछले 15 वर्षों में कोई सुनवाई नहीं हुई है। यह प्रस्ताव एक ऐसे मुख्यमंत्री के खिलाफ लाया गया प्रस्ताव है जो भ्रष्टाचार का आक्टोपस हो गया है। जो धीरे-धीरे इतना निर्लज्ज हो गया है कि वह किसी भी स्तर का असत्य बयान कर सकता है। वह इतना निष्ठुर हो गया है कि अपने प्रतिद्वंद्वियों को निपटाने के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। यह प्रस्ताव हर उस किसान की ओर से भी लाया गया प्रस्ताव है जो पिछले 15 वर्षों में सिर्फ़ ठगा गया है और कदम कदम पर प्रताड़ित किया गया है। केंद्र की भाजपा सरकार ने दो दिन पहले ही धान के समर्थन मूल्य में 200 रुपए की वृद्धि की घोषणा की है। मुख्यमंत्री ने घोषणा की है कि वे समर्थन मूल्य में इस बढ़ोत्तरी पर राज्य में उत्सव मनाएंगे। किस बात का उत्सव. जिस सरकार को अपना वादा तोडऩे पर शर्मिंदा होना चाहिए वह उत्सव मनाने की बात कर रही है।
उन्होंने कहा कि पिछले चुनाव में भाजपा ने घोषणा की थी वह किसानों को 2100 रुपए समर्थन मूल्य दिलाएगी। चुनाव को चार साल बीतने के बाद भी किसानों को सिर्फ़ 1550 रुपए का समर्थन मूल्य मिलता रहा। अब 1750 रुपए मिलेंगे. यानी 2100 रुपए में अभी भी किसानों को 350 रुपए कम मिलेंगे। केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा सरकार होने के बावजूद अगर किसानों से किया हुआ वादा पूरा नहीं हो पा रहा है तो यह शर्मिंदगी का विषय है या उत्सव का ? इतना भर नहीं है, किसानों से वादा दाना-दाना खऱीदी का था, लेकिन सरकार बनते ही इसे 10 क्विंटल प्रति एकड़ कर दिया गया। अगर कांग्रेस ने आंदोलन खड़ा न किया होता तो यह 15 क्विंटल भी नहीं होता। हर साल 300 रुपए बोनस देने का वादा था लेकिन तीन साल तक बोनस का अता पता नहीं था। जब हमने लगातार आंदोलन किए, किसान ख़ुद सड़कों पर उतर आए और चुनाव सर पर आ गए तो रमन सिंह को बोनस देने पर मजबूर होना पड़ा. तीन साल का जो बोनस बकाया है उसका भुगतान कौन करेगा?
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