छत्तीसगढ़

चुनावी शोरगुल के बाद अनियमित कर्मचारी आंदोलन के मूड में…नियमितीकरण के लिए समिति तो बनी…पर संशय की स्थिति…

रायपुर। प्रदेश में कार्यरत 1 लाख 80 हजार अनियमित कर्मचारियों की मांग लोकसभा चुनाव के शोरगुल में नदारद हो गई थी। कांग्रेस सरकार ने इनके नियमितीकरण के लिए आचार संहिता के पूर्व समिति तो गठित की है लेकिन पूर्व के अनुभव से अनियमित कर्मचारी अभी भी संशय में है

कि ये समिति भी पिछले समितियों की तरह वर्षों न ले मांग पूरी करने या रिपोर्ट सौंपने में विगत 15 वर्षों में संविदा, दैनिक वेतन भोगी एवं आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की मांग के लिए बहुत सी समितियां बनी लेकिन है समिति किसी भी प्रकार के ठोस निर्णय पर नहीं पहुंच पाई।




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आचार संहिता के बीच में विभिन्न केंद्र प्रवर्तित योजनाओं में कार्यरत संविदा कर्मचारियों पर वार्षिक कार्यमूल्यांकन के नाम पर एक बार फिर तलवार लटक गई है। अवगत हो कि विगत वर्षों में केंद्र प्रवर्तित योजनाओं के हजारों कर्मचारियों को मूल्यांकन के आधार पर उनके सेवा से पृथक किया गया है

जबकि ये कर्मचारी विगत 10 वर्षों से अपनी सेवाएं दे रहे थे। सर्वाधिक पृथक किए गए कर्मचारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन,मनरेगा में कार्यरत थे यही नहीं इस वर्ष भी मार्च के पूर्व ही अधिकरियों के कोपभाजन का शिकार कई अनियमित कर्मचारी हुए है।

14 फरवरी को छत्तीसगढ़ संयुक्त अनियमित कर्मचारी महासंघ के कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने नियमितीकरण के संबंध में ठोश आस्वासन तो दिया था लेकिन इसके विपरीत अधिकरियों के तानासाही रवैये के भेंट सैंकड़ों कर्मचारी चढ़ गए।

अनियमित कर्मचारियों की चार सूत्रीय प्रमुख मांगों में एक महत्वपूर्ण मांग जॉब सिक्योरिटी की है। इसी मांग को लेकर अब अनियमित कर्मचारी लोकसभा चुनाव के बाद कड़ी रणनीति बनाने में जुट गए हैं।

कांग्रेस सरकार के ऊपर अनियमित कर्मचारियों की मांग पूरी करने का दबाव है एक तरफ घोषणा पत्र में इनके नियमितीकरण,किसी की छटनी नहीं की जाएगी ऐसे लोक लुभावने वायदे तो कांग्रेस ने किए थे लेकिन इनकी एक भी मांग अभी तक सरकार के द्वारा पूरी नही की गई है जिससे अनियमित कर्मचारियों में सरकार के प्रति रोष उत्पन्न हो रहा है।

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