काले कपड़े से लेकर आखिरी इच्छा तक…फांसी के फंदे पर लटकाने से ठीक पहले क्या कुछ होता है दोषी के साथ…

नई दिल्ली। निर्भया केस (Nirbhaya case) के सभी चारों दोषियों का अदालत (Court) ने डेथ वारंट जारी (Death Warrant) कर दिया है। चारों दोषियों मुकेश सिंह (32), अक्षय कुमार सिंह (31), विनय शर्मा (26) और पवन गुप्ता (25) को बुधवार 22 जनवरी को सुबह 7 बजे फांसी दी जाएगी। चारों दोषियों को अदालत की तरफ से जारी किए गए डेथ वारंट की एक-एक फोटोकॉपी रात को ही मुहैया करा दी गई है।
1-फांसी का वक्त सुबह इसलिए मुकर्रर किया जाता है कि क्योंकि जेल मैन्युअल के मुताबिक जेल के सभी काम सूर्योदय के बाद ही किए जाते हैं। फांसी के कारण जेल के कोई और काम प्रभावित न हों इसलिए सुबह के समय ही दोषियों को फांसी दी जाती है।
2- जिस दिन किसी भी दोषी फांसी दी जाती है, उस दिन सुबह 4:30 या 5 बजे के करीब अपराधी को चाय पीने को दी जाती है। अपराधी अगर नहाना चाहे तो उसे नहाने दिया जाता है और नाश्ता करना चाहे तो उसे नाश्ता भी करवाया जाता है।
3-नाश्ते के बाद दोषी के पास मजिस्ट्रेट जाते हैं और उससे किसी वसीयत आदि के बारे में पूछते हैं। बता दें कि वह एक्जीक्यूटिव मजिस्ट्रेट होते हैं। इस दौरान अपराधी अपनी जायदाद किसी विशेष के नाम करना चाहता है तो कर सकता है।
4-अपराधी की वसीयत रिकॉर्ड हो जाने के बाद जल्लाद अपराधी के पास आता है और उसे काले रंग की पोशाक पहनाता है। इस दौरान अपराधी के हाथ पीछे की ओर बांध दिए जाते हैं और फांसी देने वाली जगह पर खड़ा कर दिया जाता है।
5-इसके बाद जल्लाद अपराधी के गले में रस्सी की गांठ को सतर्कता से कस देता है। इस बाद जैसे ही सुपरिटेंडेंट इशारा करता है जल्लाद बोल्ट हटा लेता है। इस पूरी प्रक्रिया के दौरान सुपरिटेंडेंट जैसे ही इशारा करता है वैसे ही जल्लाद लिवर खींच देता है।
6-लीवर खींचते ही तख्ते को वेल में गिरा दिया जाता है और अपराधी रस्सी से लटक जाता है। लीवर खींचने के दो घंटे बाद डॉक्टर को यह सुनिश्चित करना होता है कि अपराधी की मौत हो चुकी है। इसके बाद शव को पोस्टमार्टम के लिए भेजा जाता है।
7- बता दें कि कैदी के वजन के हिसाब से 1।830 मीटर से लेकर 2।440 मीटर तक ड्रॉप यानी नीचे रस्सी से लटकाया जाना होता है। फांसी की तारीख से चार दिन पहले मेडिकल ऑफिसर को रिपोर्ट में बताना होता है कि अपराधी को कितना ड्राप देना है।
8-फांसी के दौरान जेल को पूरी तरह से बंद कर दिया जाता है। जेल मैन्युअल के मुताबिक जब फांसी की प्रक्रिया पूरी हो जाती है उसके बाद दोबारा जेल को खोल दिया जाता है।
9-सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के मुताबिक फांसी के बाद शव का पोस्टमार्टम कराना जरूरी होता है। इसके बाद शव को परिजनों को सौंपा जाए या नहीं यह जेल सुपरिटेंडेंट के ऊपर होता है। अगर जेल सुपरिटेंडेंट को लगता है कि अपराधी के शव का गलत इस्तेमाल हो सकता है तो वह परिजनों को शव देने से इनकार कर सकता है।
10- यहां पर यह भी जानना जरूरी है कि क्या अपराधी की हर आखिरी ख्वाहिश पूरी की जाती है। ऐसा बिल्कुल भी नहीं है। जेल मैन्युअल के मुताबिक ही अपराधियों की ख्वाहिश पूरी की जा सकती है। अगर कोई आखिरी ख्वाहिश में फांसी से छूट मांग ले तो उसे पूरा नहीं किया जा सकता है।
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