प्राचीन धरोहरों को बचाने नहीं हो रहा प्रयास, नष्ट हो रहे अवशेष

जगदलपुर। चाहे व नलयुगीन धरोहर हो अथवा अन्य राजवंशी शासकों के प्राचीन अवशेष हो, इनको बचाने के लिए आज की स्थिति में कोई उपाय नहीं किया जा रहा है। जिसका परिणाम यह हुआ है कि प्राचीन अवशेषों का अस्तित्व ही समाप्त हो रहा हैं और आने वाले समय में बस्तर जिले के अंतर्गत 5वीं व 6 वीं शताब्दी के नलयुगीन अवशेष सहित कोण्डागांव जिले के जंगलों में स्थित कुछ मंदिरों के अवशेष केवल कागजों में ही रह जायेंगे।
उल्लेखनीय है कि बस्तर जिले की उड़ीसा सीमा के पास के क्षेत्रों में ग्राम पाथरी या प्राचीन नाम पार्वतीपुर तथा कोण्डागांव के पास स्थित मुलमुला जंगल के अंतर्गत पाये जाने वाले प्राचीन पुरातात्विक अवशेष संरक्षण के अभाव में अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। इन दोनों स्थानों में ईट निर्मित मंदिरों के ध्वस्त अवशेष तो पाये ही जाते हैं साथ ही यहां पर ये अस्तित्व में हैं। वहां कि भूमि में यदि खुदाई की जाये तो कई महत्वपूर्ण अवशेष अभी भी प्राप्त हो सकते हैं। अब इन अवशेषों के आस-पास की भूमि में लोगों द्वारा धड़ल्ले से खेती की जा रही हैं। जिसके चलते अवशेषों को भी नुकसान पहुंच रहा हैं। इस संबंध में इस भूमि पर खेती करने वाले ग्रामीणों के द्वारा यह कोशिश की जाती है कि प्राचीन अवशेषों को किसी प्रकार नुकसान न पहुंचे। लेकिन लाख कोशिशों के बाद भी प्राचीन धरोहरों को भी नुकसान पहुंच रहा हैं।
उल्लेखनीय है कि संभागीय मुख्यालय से लगभग 50-55 किमी दूर बकावंण्ड विकासखण्ड के ग्राम पाथरी का प्राचीन नाम पार्वतीपुर भी रहा हैं। इस गांव के आस-पास के क्षेत्रों में 17 से अधिक ऐसे मिट्टी के टीले विद्यमान हैं। जिनमें से कुछ चीजों में की गई खुदाई में कुछ प्राचीन मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुए हैं। यह सिलसिला पिछले 20 वर्षो से चल रहा है। इन्हीं में से कुछ टीलों में शिवलिंग भी लगातार निकलते ही जा रहे हैं। इसके अलावा कुछ वर्ष पहले मां पार्वती की एक पाषाढ़ प्रतिमा भी प्राप्त हुई थी। जो आज भी पुरातात्विक संग्राहलय में रखी हुई है।