जो कोरोनो वायरस इंफेक्शन से निकल आए हैं, क्या वो सही में रिकवर हो चुके हैं ?…

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रिकवरी के बाद पोस्ट-वायरल थकान या संक्रमण का असर जारी
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न्यूयॉर्क में पोस्ट-रिकवरी कोविड क्लिनिक्स बनाने का काम शुरू
SARS-CoV-2 वायरस और इससे फैली COVID-19 महामारी सिर्फ चार-पांच महीने पुराने हैं. बहुत कुछ ऐसा है कि डॉक्टर और वैज्ञानिक वायरस के बारे में नहीं जानते हैं. हालांकि वो इसकी तमाम भौगोलिक क्षेत्रों में अलग-अलग प्रकृति से जूझ रहे हैं. उन्हें जो पता है, वो ये है कि वायरस के कई स्ट्रेन्स और म्युटेशन्स (उत्परिवर्तन) हैं.
इसीलिए दुनियाभर में इसका असर अलग-अलग है, क्योंकि इसकी घातकता हर जगह समान नहीं है. कुछ देशों में स्ट्रेन बहुत मजबूत है, जिसकी वजह से वहां गंभीर लक्षण और ऊंची मृत्यु दर दिखती है. जबकि अन्य देशों में अधिकांश केस बिना लक्षण वाले हैं और और मृत्यु दर भी नीची है. इतने बड़े पैमाने की महामारी राष्ट्रों को गहराई से प्रभावित करेगी. COVID-19 का जिक्र हर जगह है.
सोशल मीडिया और न्यूज बुलेटिन्स में भी. इसका इंसानों पर अहम मनोवैज्ञानिक असर है. कुछ देश कोरोनो वायरस वक्र को समतल करने में कामयाब रहे, लेकिन अधिकतर अभी भी बढ़ती संक्रमण संख्या को काबू में लाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं. रिकवरी की दरें हालिया SARS (सीवियर एक्यूट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम) या MERS (मिडल ईस्ट रेस्पिरेटरी सिंड्रोम) महामारियों की तुलना में बहुत बेहतर हैं.
लेकिन फैलाव की दर इतनी अधिक है कि सक्रिय केसों का आंकड़ा लगातार ऊंचा बना हुआ है. ये सब बहुत हाल में हुआ है, इसलिए जो मरीज रिकवर हो चुके हैं, उनके आफ्टर-इफेक्ट्स (बीमारी के बाद के प्रभाव) से जुड़े अनुभवों के बारे में बहुत कम शोध या लिखे हुए पेपर्स मौजूद हैं.
भारतीय परिस्थितियां:
भारत सरकार के पास मौजूदा स्थिति में कोरोना मरीजों के फॉलोअप के लिए कोई गाइडलाइंस नहीं हैं. दिल्ली सरकार के संचालित LNJP अस्पताल के रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. पर्व मित्तल कहते हैं, ”न्यूयॉर्क ने पोस्ट-रिकवरी कोविड क्लिनिक्स बनाने शुरू कर दिए हैं, लेकिन हमें अभी ऐसा करना बाकी है.”
डॉ. मित्तल ने कहा, “जहां तक कोविड से रिकवर्ड मरीजों में आफ्टर इफेक्ट्स की बात है, तो इस पर पर्याप्त लिट्रेचर मौजूद नहीं है. हालांकि, अमेरिका में ऐसे अध्ययन किए गए हैं जो बताते हैं कि रिकवर्ड मरीज में संभावित दुष्प्रभावों में स्केलेटल मांसपेशियों की क्षति (शरीर की कमजोरी), फेफड़ों और गुर्दे में बची हुई चोट हो सकते हैं.
हालांकि रिकवरी के बाद के नुकसान का स्तर हर केस में बीमारी की गंभीरता पर निर्भर होता है.” उन्होंने कहा, “रिकवरी के बाद के डैमेज को कम करने के लिए, मैं ग्रेडेड एक्सरसाइज, फिजियोथेरेपी और फेफड़ों के व्यायाम जैसे गहरी सांस लेने, योग और प्राणायाम करने का सुझाव दूंगा.” डॉ. शशांक जोशी मुंबई के लीलावती अस्पताल से जुड़े हैं.
वे मुंबई के लिए कोविड टास्क फोर्स का भी हिस्सा हैं, जहां केस की संख्या तेजी से बढ़ रही है. उनके मुताबिक कोविड से उभरने वाले रोगियों को अपने पोषण, मानसिक स्वास्थ्य का अत्यधिक ध्यान रखने और सभी स्टैंडर्ड सावधानियों के पालन की जरूरत है. डॉ. जोशी ने कहा, “कोरोना एक नई वायरल महामारी है, जो 4 महीने से कम पुरानी है.
आठ घंटे की नींद के अलावा पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन और विटामिन लेना उपयोगी है. डिस्चार्ज के बाद मरीजों को 14 और दिनों तक आराम करना चाहिए. साथ ही अपने मेडिकल प्रोफेशनल्स के संपर्क में रहें. हाइपरटेंशन और डायबिटीज जैसी बीमारियां जिन्हें पहले से है, ऐसे लोगों पर खास ध्यान देने की आवश्यकता है. वे अन्य संक्रमणों के लिए अतिसंवेदनशील होते हैं.
खासकर मानसून के पास आने पर स्वच्छता, मास्क और डिस्टेंसिंग का हमेशा ध्यान रखें. ” भारत में, लोगों को विपत्तियों के बाद बहुत जल्दी पटरी पर लौटने की आदत है. यह बाढ़ हो, भूकंप हो या सुनामी हो, भारतीय अमूमन अपने पैरों पर जल्दी वापस आ जाते हैं. क्या इस बार भी ऐसा होगा या इससे अलग होगा? यह समय बताएगा. लेकिन इस स्थिति का हम संज्ञान लें, इसके लिए यही सही समय है.