तिहाड़ जेल में तड़के 05.30 बजे निर्भया रेप केस के चार गुनहगारों को फांसी पर लटका दिया गया. इस मामले में छह लोग दोषी थे, जिसमें एक ने जेल में ही खुदकुशी कर ली जबकि एक और दोषी तब नाबालिग था. इस वजह से उसे जुवेनाइल कोर्ट से केवल तीन साल की सजा हुई. करीब पांच साल पहले वो वहां से रिहा हो गया. बताया जाता है कि वो किसी एनजीओ की मदद से छोटा-मोटा काम कर रहा है. उसकी पहचान गुप्त रखी जाती है.
यही वो अकेला दोषी है, जिसका चेहरा ना तो दुनिया के सामने आया. ना ही दुनिया उसका नाम भी जानती है. आखिर कहां है देश को हिला देने वाले इस गैंगरेप का वो गुनाहगार, जो तब नाबालिग होने के कारण बच निकला था. अन्यथा आज वो भी फांसी पर लटक गया होता. जानते हैं कैसी जिंदगी बिता रहा है वो
वो दिल दहलाने वाला हादसा
सात साल पहले 16 दिसंबर 2012 को एक पैरामेडिकल छात्रा के साथ घटे हादसे ने देश की राजधानी पर बदनुमा दाग लगा दिया था. 16 दिसंबर की रात निर्भया एक दोस्त के साथ फिल्म देखकर लौट रही थी. रास्ते में दोनों ने मुनिरका से एक बस ली. इस बस में उनके अलावा 6 लोग थे. जल्द ही उन लोगों ने निर्भया से छेड़खानी शुरू कर दी, जो रेप में बदल गई.
इस बीच निर्भया के दोस्त को दोषियों ने पीटकर बेहोश कर दिया था. बर्बर गैंग रेप के बाद उन लोगों ने खून से लथपथ निर्भया और उसके दोस्त को वसंत विहार इलाके में चलती बस से फेंक दिया. आंतों और पूरे शरीर में गंभीर इंफेक्शन के बाद एयरलिफ्ट कर निर्भया को सिंगापुर के अस्पताल ले जाया गया, जहां 29 दिसंबर की देर रात उसने दम तोड़ दिया.
नाबालिग ने की थी सबसे ज्यादा दरिंदगी
वारदात में शामिल सभी छह आरोपी जल्दी ही गिरफ्त में आ गए. जिनमें ड्राइवर राम सिंह ने जेल में खुदकुशी कर ली. नाबालिग आरोपी को जुवेलाइल जस्टिस के तहत सजा हुई. उसे बाल सुधार गृह में तीन साल बिताने के बाद 20 दिसंबर 2015 को रिहाई मिल गई.
सभी दोषियों के बयान के बाद ये माना गया कि इसी नाबालिग ने निर्भया और उसके दोस्त को आवाज देकर बस में बुलाया. जबकि वो एक स्कूल बस थी, न कि पब्लिक ट्रांसपोर्ट. निर्भया के बैठने के बाद उसी ने छेड़छाड़ शुरू की. उसी ने साथियों को रेप के लिए उकसाया. यही वो दोषी था, जिसने निर्भया के शरीर में लोहे की रॉड घुसाई, जिससे फैला इंफेक्शन 23 साल की छात्रा की मौत की वजह बना.
घर से भागकर दिल्ली आया था नाबालिग
जानकारी के अनुसार वो नाबालिग दोषी उत्तरप्रदेश का रहने वाला है. वो 11 साल की उम्र में घर की तंग हालत की वजह से भाग गया. दिल्ली आ गया. फुटपाथ पर कई दिन गुजारने के बाद उसकी मुलाकात बस ड्राइवर राम सिंह से हुई. तब से वो राम सिंह के लिए क्लीनर का काम करने लगा.
वारदात के वक्त उसकी उम्र 17 साल 6 महीने थी. यानी वयस्क होने में सिर्फ 6 महीने कम.
अब वो कुक का काम करता है
इस दोषी के खिलाफ पूरे देश में इतना गुस्सा था कि सुरक्षा गृह में भी उसे गहन सुरक्षा में अलग रखा गया. उस दौरान एक एनजीओ ने उसकी मानसिक सेहत ठीक रखने के लिए उसे कमरे में टीवी मुहैया कराया. नाबालिग ने कड़ी निगरानी में सिलाई का काम सीखा. बाद में खाना पकाने में दिलचस्पी दिखाई, जिससे उसे कुकिंग का काम भी सिखाया गया.
आफ्टर केयर से रिहाई के बाद उसे दक्षिण भारत में रखा गया है. उसके लिए अब भी लोगों में काफी गुस्सा है. उसे सुरक्षित रखने के लिए बार-बार उसका नाम तक बदला गया. वो बदले हुए नाम के साथ रेस्टॉरेंट में काम करता है. उसके काम की जगह भी कुछ समय बाद बदल दी जाती है ताकि किसी पर उसकी असल पहचान जाहिर न हो सके.
बाद में कानून में हुए बदलाव
निर्भया मामले के बाद देश में बलात्कार की परिभाषा में काफी बदलाव हुए. इससे पहले सेक्सुअल पेनिट्रेशन को रेप माना जाता था, लेकिन इस घटना के बाद छेड़छाड़ और दूसरे तरीकों से यौन शोषण को भी बलात्कार में शामिल किया गया.
पार्लियामेंट में नया जुवेनाइल जस्टिस बिल पास हुआ, जिसमें बलात्कार, हत्या और एसिड अटैक जैसे क्रूरतम अपराधों में 16 से 18 साल के नाबालिग आरोपियों पर भी वयस्क कानून के तहत आम अदालतों में केस चलता है. नए कानून के तहत 16 से 18 साल के नाबालिग को इन अपराधों के लिए बाल संरक्षण गृह में रखा जाने की बजाए सजा हो सकती है, हालांकि ये सजा अधिकतम 10 साल की ही हो सकती है और फांसी या उम्रकैद नहीं दी जा सकेगी.
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