छत्तीसगढ़

नहाय-खाय के साथ छठ पूजा शुरू… महिलाएं 36 घंटे का निर्जला उपवास रखेंगी… उगते सूरज को अर्घ्य देकर व्रत तोड़ा जाएगा…

रायपुर। छठ पूजा का पारंपरिक पर्व नहाय-खाय के साथ आज से प्रारंभ हो गया। दीपावली के छठवें दिन से उत्तर भारत के राज्यों सहित विश्व के अनेक देशों में यह पर्व मनाया जाता है। छठ पूजा का मुख्य उद्देश्य महिलाओं द्वारा अपनी संतान एवं पति की सुख-समृद्धि के लिए सूर्य पूजा कर वरदान मांगने की रही है। डूबते सूर्य को अध्र्य देकर छठ पूजा की जाती है।

छठ पूजा की शुरूआत नहाय-खाय की रस्म के साथ आज से शुरू हो गई है। 13 नवंबर को डूबते सूरज को सूपे और टोकनी में विविध पकवानों एवं फलों के साथ विधिवत पूजा कर महिलाओं द्वारा बिना सिले वस्त्रों को धारण कर अध्र्य दिया जाएगा।

पूजन की सामग्री के लिए गेहू धोकर जाता में पीसकर शुद्ध घी में आटा को सेंककर पकवान बनाया जाता है। साथ ही आम की लकड़ी मिट्टी के चूल्हे में बनाकर पूजन एवं भोग सामग्री तैयार की जाती है।



रायपुर में व्यास तालाब, महादेव घाट, महाराजबंद तालाब एवं भिलाई में टंकी मरौदा, शीतला मंदिर तालाब, रिसाली गांव तालाब, मानव मेंट तालाब, नेवई डैम, खारून नदी, शिवनाथ नदी, दुर्ग भागड़ा बांध एवं बिलासपुर में अरपा नदी के तट पर विधिवत सुबह से ही नहाय-खाय की रस्म के साथ पूजा प्रारंभ हो गई है।

पूजा के दौरान महिलाओं द्वारा सोमवार को खरना की रस्म पूरी की जाएगी। छठ पूजा के साथ ही 36 घंटे का निर्जला उपवास भी प्रारंभ हो गया है। व्रतियों द्वारा यह उपवास बुधवार सुबह उगते सूरज को अध्र्य देकर तोड़ा जाएगा।

छठ की पूजा विधि…
यह पर्व चार दिनों तक चलता है। इसकी शुरुआत कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होती है और सप्तमी को अरुण वेला में इस व्रत का समापन होता है। कार्तिक शुक्ल चतुर्थी को नहाय-खाय के साथ इस व्रत की शुरुआत होती है।



इस दिन से स्वच्छता की स्थिति अच्छी रखी जाती है। इस दिन लौकी और चावल का आहार ग्रहण किया जाता है। दूसरे दिन को लोहंडा-खरना कहा जाता है। इस दिन उपवास रखकर शाम को खीर का सेवन किया जाता है।

खीर गन्ने के रस की बनी होती है। इसमें नमक या चीनी का प्रयोग नहीं होता। तीसरे दिन उपवास रखकर डूबते हुए सूर्य को अघ्र्यअर्घ्य दिया जाता है। साथ में विशेष प्रकार का पकवान ठेकुवा और मौसमी फ ल चढाएं।

अर्घ्य दूध और जल से दिया जाता है। चौथे दिन उगते हुए सूर्य को अंतिम अघ्र्य दिया जाता है। इसके बाद कच्चे दूध और प्रसाद को खाकर व्रत का समापन किया जाता है। इस बार पहला अर्घ्य 13 नवंबर को संध्या काल में दिया जाएगा और अंतिम अर्घ्य 14 नवंबर को अरुणोदय में दिया जाएगा।

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