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बोर्ड परीक्षा में आठ लाख बच्चे हिंदी में फेल, दुखद… भयावह… शिक्षक बोले- बड़े बदलाव की जरूरत…

यूपी बोर्ड की परीक्षा में आठ लाख बच्चे हिंदी में फेल हो गए। दुखद…। भयावह…। हिंदी भाषी प्रदेश में हिंदी का यह हाल? क्यों…? कैसे…? कौन जिम्मेदार है…? ये सवाल नए नहीं। पहले भी उठते रहे हैं। आज भी उठ रहे हैं। पर, कुछ ज्यादा तीखे…। तीखे होने भी चाहिए। क्योंकि सवाल एक विषय में फेल हो जाने भर का नहीं है।

क्या हिंदी महज हमारे लिए एक भाषा भर है? कतई नहीं। यह हमारी संस्कृति की संवाहक है। हमें अपनी जड़ों से जोड़ती है। अब खुद से सवाल कीजिए। हम अपनी जड़ों से कैसे कट रहे हैं? क्यों कट रहे हैं? ….क्योंकि हम अपनी चीजों पर गर्व करना भूल गए। कमतरी का यह एहसास मिटाना होगा… अपनी भाषा अपनी संस्कृति पर गर्व करना होगा… हालात खुद-ब-खुद बदल जाएंगे।



यूपी बोर्ड की परीक्षा में इस वर्ष आठ लाख परीक्षार्थी हिंदी विषय में फेल हो गए। हिंदी भाषी प्रदेश में ही नई पीढ़ी में हिंदी को लेकर इस तरह का लचर प्रदर्शन हमें हिंदी के भविष्य को लेकर चिंतित होने पर मजबूर करता है। हिंदी की इस दुर्दशा के लिए आखिर कौन जिम्मेदार है? यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है।

क्या अंग्रेजी मीडियम स्कूलों की बाढ़ इसके लिए जिम्मेदार हैं? या फिर  समाज में उस धारणा के गहरे पैठ कर जाना जो अंग्रेजी को एक स्टेटस सिंबल मानती है। या फिर यह धारणा कि अंग्रेजी रोजगार की भाषा है? यूपी बोर्ड के नतीजेे से एक बात तो बिल्कुल साफ है कि हिंदी महज परीक्षा पास करने का विषय बनकर रह गई है।



पाठ्यक्रम जटिल, शिक्षकों की कमी तो कैसे समझ में आए हिंदी
विशेषज्ञों के मुताबिक, यूपी बोर्ड में हाईस्कूल और इंटरमीडिएट का हिंदी पाठ्यक्रम अन्य बोर्डों की तुलना में काफी जटिल है। इसमें अवधी व ब्रज भाषाओं के कवि, लेखक व उनकी कृतियां शामिल हैं। ये भाषाएं अब चलन में नहीं हैं। पांच-छह सौ वर्ष पुरानी ये भाषाएं छात्रों को कठिन लगती हैं जिन्हें पढ़ाने के लिए विषय विशेषज्ञों की आवश्यकता होती है।

सूर, तुलसी, कबीर, रसखान, मीराबाई के साथ संस्कृत व व्याकरण समझना बच्चों के लिए आसान नहीं है। वहीं दूसरी ओर कॉलेजों में हिंदी के शिक्षकों की भारी कमी है तो ऐसे में भला छात्र-छात्राएं कैसे उसे अच्छी तरह से समझ सकेंगे।



कैसे सुधरे हिंदी जब राजकीय कॉलेजों में ही 1300 शिक्षकों के पद खाली
राजकीय शिक्षक संघ के प्रदेश अध्यक्ष पारसनाथ पांडेय का कहना है कि प्रदेश में राजकीय कॉलेजों की संख्या 2383 है। इनमें सात हजार शिक्षक कार्यरत हैं जबकि 18 हजार पद खाली हैं। खाली पड़े पदों में 1300 हिंदी के शिक्षकों के हैं। लखनऊ की बात करें तो यहां 51 राजकीय कॉलेज हैं।

इनमें 1200 शिक्षक पढ़ाते हैं। यहां हिंदी के शिक्षकों के करीब 80 पद रिक्त पड़े हैं। ऐसे में खुद अंदाजा लगाया जा सकता है कि यहां हिंदी शिक्षा की हालत कैसी होगी। एडेड विद्यालयों का हाल भी बहुत खराब है जहां हिंदी शिक्षकों की कमी है।

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