जगदलपुर। विश्व में सबसे अधिक लंबी अवधि 75 दिनों तक चलने वाला प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व आज पाटजात्रा विधान के साथ शुरू हो गया। पाटजात्रा विधान में लकड़ी के रथ के निर्माण के लिए मॉ दंतेश्वरी मंदिर के सामने ग्राम बिलौरी से लाई गई पहली लकड़ी का आज सुबह पूरे विधि-विधान के साथ पूजा अर्चना कर, बकरे की बलि के साथ संपन्न हुआ।
पाट जात्रा विधि-विधान ग्रामीणों के द्वारा परंपरानुसार संपन्न कराया गया। इस दौरान बड़े उमरगांव के कारीगर जिनके द्वारा रथ का निर्माण किया जाना है, वे भी मौजूद थे। परंपरा के अनुसार रथनाई पैक बढ़ाई के साथ उन्हें उनके औजारों के साथ ले आते हैं और रथ बनाने के इन औजारों की पूजा भी इस दौरान की जाती है जो संपन्न हुई।
पूजा के दौरान मोंगरी मछली, अंडा और लाई का उपयोग किया जाता है। इस दौरान बकरे को अन्न खिलाने के बाद उसकी बलि दी गई। यह केंवट जाति के द्वारा परंपरागत तौर पर लाकर पूजा के दौरान उपयोग करते हैं, जो इस वर्ष भी हुआ।
इस लकड़ी से स्थानीय बोली में टूरलू खोटला के नाम से ख्याति प्राप्त हथौड़े बनाए जाते हैं और इसी के सहारे रथ के निर्माण का कार्य शुरू करते हैं। इस पाट जात्रा के दौरान राजपरिवार के प्रतिनिधियों के अलावा मांझी-चालकी, मेंबर-मेंबरिन और गणमान्य नागरिक भी मौजूद थे। दशहरा समिति के साथ ही राजस्व विभाग के कर्मचारी एवं ग्रामीणजन उपस्थित थे।
बस्तर के 611 वर्ष पुराना बस्तर दशहरा कई मायनों में परम्परागत दशहरे से भिन्न है। यहां का दशहरा कुछ अलग ही अंदाज से मनाया जाता है। इस दशहरे में आस्था और विश्वास की डोर थामे आदिम जनजातियां अपने आराध्य देवी मॉ दंतेश्वरी के छत्र को सैकड़ों वर्षों से विशालकाय लकड़ी से निर्मित रथ में विराजमान कर रथ को पूरे शहर के परिक्रमा के रूप में खींचती हैं।
भूतपूर्व चित्रकोट रियासत से लेकर बस्तर रियासत तक के राजकीय चालुक्य राजपरिवार की की ईष्ट देवी और बस्तर अंचल के समस्त लोकजीवन की अधिशाष्ठत्री देवी मां दंतेश्वरी के प्रति श्रद्धाभक्ति की सामूहिक अभिव्यक्ति का पर्व बस्तर दशहरा है, यहां पर रावण का वध दशहरे की परम्परा में शामिल नहीं है।
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