नई दिल्ली। धोनी के दस्तानों पर बलिदान बैज के निशान को लेकर चर्चाओं ने जोर पकड़ लिया है। बुधवार को साउथेम्प्टन में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ भारत के पहले मैच के दौरान धोनी को बलिदान बैज के साथ विकेटकीपिंग करते देखा गया था। आईसीसी ने धोनी को अपने दस्ताने से यह निशान हटाने को कहा था लेकिन धोनी ने अपने ग्लव्स से इस निशान को हटाने से मना कर दिया।
दूसरी तरफ इंडियन आर्मी धोनी के ग्लव्स पर लगे इस निशान को बलिदान बैज नहीं मानती। इंडियन आर्मी के सूत्रों के मुताबिक यह स्पेशल फोर्सेज का प्रतीक चिह्न है जो मरून रंग में होता है और इसे हिंदी में लिखा जाता है। यह हमेशा छाती पर पहना जाता है। धोनी के दस्ताने पर निशान पैरा स्पेशल फोर्सेज का प्रतीक चिह्न है।
आईसीसी ने धोनी को अपने दस्ताने से यह निशान हटाने को कहा था। जिसके बाद बीसीसीआई माही के समर्थन में उतरी है। बीसीसीआई के कोए चीफ विनोद राय ने कहा- हम आईसीसी को एमएस धोनी को उनके दस्ताने पर बालिदान पहनने के लिए अनुमति लेने के लिए पहले ही चिठ्ठी लिख चुके हैं।
बीसीसीआई के बाद खेल मंत्रालय ने भी धोनी का समर्थन किया है। खेल मंत्री किरण रिजिजू ने कहा-खेल निकायों के मामलों में सरकार हस्तक्षेप नहीं करती है, वे स्वायत्त हैं लेकिन जब मुद्दा देश की भावनाओं से जुड़ा होता है, तो राष्ट्र के हित को ध्यान में रखना होता है। मैं बीसीसीआई से आईसीसी में इस मामले को उठाने का अनुरोध करना चाहूंगा।
आईसीसी सूत्रों के मुताबिक अगर एमएस धोनी और बीसीसीआई आईसीसी को यह सुनिश्चित करे कि बलिदान बैज में कोई राजनीतिक, धार्मिक या नस्लीय संदेश नहीं है, तो आईसीसी इस अनुरोध पर विचार कर सकता है।
धोनी ने क्यों पहना बलिदान बैज
भारतीय टीम के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को क्रिकेट में उनकी उपलब्धियों के कारण 2011 में प्रादेशिक सेना में मानद लेफ्टिनेंट कर्नल की रैंक दी गई थी। धोनी यह सम्मान पाने वाले कपिल देव के बाद दूसरे भारतीय क्रिकेटर हैं।
धोनी को मानद कमीशन दिया गया क्योंकि वह एक युवा आइकन हैं और वह युवाओं को सशस्त्र बलों में शामिल होने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। धोनी एक प्रशिक्षित पैराट्रूपर हैं। उन्होंने पैरा बेसिक कोर्स किया है और पैराट्रूपर विंग्स पहनते हैं।
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