रायपुर। ईओडब्ल्यू की टीम ने गुरूवार को छत्तीसगढ़ इंफोटेक प्रमोशन सोसाइटी (चिप्स) के दफ्तर में छापा मार कार्रवाई की। ईओडब्ल्यू टीम चिप्स के दफ्तर में टेंडर घोटाले की जांच करने पहुंची है। टीम ने चिप्स के अधिकारियों से पूछताछ करते हुए सारी फाईलों को अपने कब्जे कर खंगाला शुरू कर दिया है।
ज्ञात हो कि कैग की रिपोर्ट में चिप्स में टेंडर घोटाला उजागर हुआ था। कैग की आडिट रिपोर्ट के मुताबिक 17 विभागों के अधिकारियों द्वारा 4601 करोड़ के टेंडर में 74 ऐसे कंप्यूटर का इस्तेमाल निविदा अपलोड करने के लिए किया गया था। उसी कंप्यूटर से टेंडर भी भरा गया।
कैग की रिपोर्ट में बताया गया है कि 10 लाख से 20 लाख के 108 करोड़ के टेंडर पीडब्ल्यूडी और डब्ल्यूटीआरडी प्रणाली द्वारा जारी न कर मैन्युअली जारी किए गए। रिपोर्ट के मुताबिक जिन 74 कंप्यूटरों से टेंडर निकाले गए उसी कंप्यूटरों से टेंडर वापस भरे भी गए। ऐसा 1921 टेंडर में हुआ। यानी कि 4601 करोड़ के टेंडर अधिकारियों के कंप्यूटर से भरे गए।
जानिए क्या है पूरा मामला
नवंबर 2015 से मार्च 2017 के बीच 1459 टेंडरर्स के लिए एक ही ई-मेल आईडी का 235 बार उपयोग किया गया। जबकि सभी के लिए यूनिक आईडी देने प्रावधान था।
एक ही मेल आईडी का उपयोग 309 ठेकेदारों द्वारा लगातार किया गया। वहीं 17 विभागों के अधिकारियों ने 4601 करोड़ के टेंडर में 74 ऐसे कंप्यूटर का इस्तेमाल निविदा अपलोडकरने में किया। जिनका उपयोग वापस उन्हीं के आवेदन भरने के लिए हुआ था।
पीडब्लूडी व जलसंसाधन विभाग ने 10 लाख से 20 लाख के 108 करोड़ के टेंडर प्रणाली द्वारा जारी न कर मैन्युअल जारी किए।
जिन 74 कंप्यूटरों से टेंडर निकले उन्हीं से वापस भरे। ऐसा 1921 टेंडर में हुआ। इनकी कुल लागत 4601 करोड़ रुपए थी।
वहीं टेंडर के लिए 79 ठेकेदारों ने दो पैन नंबर का इस्तेमला किया था। एक पैन एक पैन पीडब्लूडी में रजिस्ट्रेशन और दूसरा ई-प्रोक्योरमेंट के लिए। ये आईटी एक्ट की धारा 1961 का उल्लंघन है।
टेंडर से पहले टेंडर डालने वाले और टेंडर की प्रक्रिया में शामिल अधिकारी, एक दूसरे के संपर्क में थे। 5 अयोग्य ठेकेदारों को 5 टेंडर जमा करने दिए गए। ई-टेंडर को सुरक्षित बनाने के लिए चिप्स ने पर्याप्त उपाय नहीं किए।
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