राजीव दीक्षित की मौत क्या हृदयघात थी?…8 साल बाद होगी जांच…PMO ने दिए आदेश…

भिलाई। स्वदेशी उत्पादों के प्रणेता एवं भारत स्वाभिमान आंदोलन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव दीक्षित की मौत की नए सिरे से जांच की जाएगी। इसके लिए प्रधानमंत्री कार्यालय से जांच के आदेश दुर्ग पुलिस को दिए हैं। 8 साल पहले भिलाई में उनकी मौत हुई थी। उस वक्त दीक्षित की मौत को हृदयघात की वजह बताई गई थी।
भारत स्वाभिमान आंदोलन के राष्ट्रीय प्रवक्ता रहे राजीव दीक्षित की 29-30 नवंबर 2010 की रात को भिलाई के बीएसआर अपोलो अस्पताल में मौत हो गई थी। वे स्वदेशी उत्पादों के प्रणेता और देशभर में घूम-घूम कर स्वदेशी अपनाने व्याख्यान दिया करते थे।
विदेशी कम्पनियों के उत्पादों के उपयोग का विरोध करने की बजह से उनकी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बन गई थी। यही पहचान विदेशी बाजार के भारतीय व्यापारियों को आंख की किरकिरी की तरह चुभने लगी थी।
छत्तीसगढ़ भिलाई प्रवास के दौरान हुई उनकी मौत पर तत्कालीन जिला प्रशासन की ओर से उनके शव को बिना पोस्टमार्टम कराए ही अंतिम संस्कार के लिए गृहनगर भेज दिया था। जांच की दिशा में इसे गंभीर चूक मानी जा रही है। अब जब प्रधानमंत्री कार्यालय दिल्ली से दुर्ग पुलिस को मामले की नये सिरे से जांच का आदेश मिल गया है तो मौत के रहस्य पर से पर्दा उठने को बल मिल रहा है।
राजीव दीक्षित का व्याख्यान 29 नवंबर 2010 को अविभाजित दुर्ग जिले के बेमेतरा तहसील प्रांगण में सुबह 10 से दोपहर एक बजे तक आयोजित था। जहां से व्याख्यान खत्म करने के बाद वे भारत स्वाभिमान आंदोलन के दुर्ग निवासी पदाधिकारी दया सागर के साथ भिलाई के लिए कार से रवाना हुए। कार कन्हैया नामक ड्रायवर चला रहा था।
रास्ते में राजीव दीक्षित को पसीने के साथ बेचैनी महसूस हुई। एलोपैथी चिकित्सा के धुर विरोधी रहे दीक्षित ने अस्पताल जाने के बजाय स्वदेशी दवाइयों से उपचार पर जोर दिया। भिलाई में अक्षय पात्र फाउंडेशन के पास उसी दिन शाम चार बजे से उनका व्याख्यान होना था। लेकिन तबीयत ठीक नहीं होने से वे दया सागर के दुर्ग स्थित निवास पहुंचे। यहां पर बाथरूम में वे गिर गए और अस्पताल नहीं जाने की जिद पर अड़े रहे।
तबीयत बिगडऩे की जानकारी बाबा रामदेव तक पहुंची तो उन्होंने राजीव से फोन पर चर्चा कर अस्पताल जाने के लिए राजी कर लिया। उन्हें तत्काल भिलाई इस्पात संयंत्र के सेेक्टर नाइन अस्पताल ले जाया गाय। जहां प्रारंभिक उपचार के बाद हृदयरोग से संबंधित बेहतर इलाज की सुविधा नहीं होने के चलते बीएसआर अपोलो अस्पताल रेफर कर दिया। अपोलो अस्पताल में उसकी मौत हो गई।
उस वक्त डॉ.रत्नानी ने उन्हें गंभीर हृदयाघात होने की जानकारी प्रशासन और मीडिया को दी थी। बाद में बिना पोस्टमार्टम कराए ही एक दिसंबर 2010 को दीक्षित का शव हवाई मार्ग से गृह नगर यूपी अलीगढ़ भेज दिया गया। उनकी मौत को सामान्य हृदयाघात बताकर शव का पोस्टमार्टम नहीं कराए जाने को गंभीर चूक मानी जा रही है। बताते हैं कि मौत के बाद उनका शव नीला पड़ गया था। मेडिकल साइंस के जानकार शव का नीला पडऩे को जहरखुरानी (स्लो पायजन) से जोड़कर देखते हैं।
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