बिलासपुर। विश्वविद्यालयों में अंडर ग्रेजुएट प्रोग्राम में मांग के मुताबिक परीक्षा लेने की तैयारी की जा रही है। यानी जब स्टूडेंट कोर्स पूरा कर ओके कहेंगे, तब यूनिवर्सिटी परीक्षा आयोजित करेगी। यूजीसी गठन के 62 साल बाद परीक्षा पद्धति में बदलाव होने जा रहा है। इसके तहत सत्र 2019-20 से मांग के मुताबिक ही परीक्षा होगी।
यूजीसी की गठित एग्जामिनेशन रिफॉर्म कमेटी ने ड्राफ्ट रिपोर्ट में सरकार को उच्च शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार की सिफारिश की है। कमेटी के 63 विश्वविद्यालयों के विशेषज्ञों ने 700 से अधिक विश्वविद्यालय प्रतिनिधियों से बैठक के बाद ड्राफ्ट तैयार किया है। दरअसल, परीक्षा में लिखित के बजाय प्रैक्टिकल पर जोर दिया गया है। ड्राफ्ट में भविष्य को देखते हुए रोजगारोन्मुखी पाठ्यक्रम तैयार किए जाने की सिफारिश की गई है। प्रश्न पत्र भेजने, तैयार करने और जांचने में तकनीक के इस्तेमाल पर जोर देने की बात कही गई है। यूजीसी इसी हफ्ते ड्राफ्ट को सार्वजनिक कर राज्यों, विशेषज्ञों और छात्रों से सुझाव लेकर नीति लागू करेगी। साफ है कि इससे बिलासपुर संभाग के एक लाख स्टूडेंट को सीधे तौर पर फायदा होगा।
मांग नियम लागू होने के बाद उन कॉलेज या यूनिवसिर्टी को नुकसान होगा जिनके पास सुविधा संसाधन की भारी कमी है। बिलासपुर विश्वविद्यालय भी उनमें से एक है। पीजी सेमेस्टर और स्नातक की परीक्षा लेने में ही कई महीने बीत जाते हैं। ऐसे में स्टूडेंट अगर अगस्त या नवंबर में परीक्षा के लिए तैयार हो गए तो मुश्किल खड़ी हो जाएगी। हालांकि एक्सपर्ट इसका भी रास्ता निकालने का दावा कर रहे हैं। स्टूडेंट की मांग के मुताबिक परीक्षा यह एक अच्छी शुरुआत होगी। यूजीसी इस पर काफी जोर दे रहा है। क्वालिटी एजुकेशन में सुधार को लेकर बड़ा कदम होगा। देश में एक अच्छा माहौल बनेगा। (एजेंसी)
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