केरल के सबरीमला मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं के प्रवेश के मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ आज अपना फैसला सुनाएगी। फिलहाल 10 से लेकर 50 साल की उम्र तक की महिलाओं को मंदिर में जाने की इजाजत नहीं है।
वहीं इंडियन यंग लॉयर्स एसोसिएशन और अन्य ने इस प्रथा को चुनौती दी है। उन्होंने कहा है कि यह प्रथा लैंगिक आधार पर भेदभाव कर रही है। इसे खत्म करने की मांग की गई है। याचिकाकर्ताओं का यह भी कहना है कि यह संवैधानिक समानता के अधिकार में भेदभाव है। एसोसिएशन के अनुसार मंदिर में प्रवेश के लिए 41 दिन से ब्रहचर्य की शर्त नहीं लगाई जा सकती क्योंकि महिलाओं के लिए यह बिल्कुल असंभव है।
वहीं दूसरी तरफ केरल सरकार ने भी मंदिर में सभी महिलाओं के प्रवेश की वकालत की है। याचिका का विरोध करने वालों ने दलील दी है कि सुप्रीम कोर्ट सैकड़ों साल पुरानी प्रथा और रीति रिवाज में दखल नहीं दे सकता।
भगवान अयप्पा खुद ब्रहमचारी हैं और वह महिलाओं का प्रवेश नहीं चाहते। इससे पहले मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, जस्टिस रोहिंटन नरीमन, जस्टिस एएम खानविलकर, जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदु मल्होत्रा की पीठ ने 1 अगस्त 2018 को इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया था।
वहीं 3 अगस्त 2018 को केरल के सबरीमाला मंदिर में 10 से लेकर 50 साल की उम्र तक की महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी के खिलाफ याचिका पर संविधान पीठ ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी करते हुए पूछा कि महिलाओं को उम्र के हिसाब से मंदिर में प्रवेश देना क्या संविधान के मुताबिक है?
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आर्टिकल 25 सभी वर्गों के लिए बराबर है। मंदिर हर वर्ग के लिए है किसी खास के लिए नहीं है। हर कोई मंदिर में आ सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि संविधान इतिहास पर नहीं चलता बल्कि ये ऑर्गेनिक और वाइब्रेंट है।
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