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वोट बैंक के लिए टिफिन तो बांट रहे है पर नहीं बताया कि उसमें खाना कहां से आयेगा, मनरेगा की स्थिति दयनीय: महंत

रायपुर। प्रदेश कांग्रेस कमेटी चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत ने कहा कि छत्तीसगढ़ में पिछले 15 वर्षो में मजदूर ही नहीं बल्कि आदिवासी, किसान, महिला, पुरूष, बच्चे, बुजूर्ग, युवा सभी की स्थिति जर्जर हो चुकी है, रमन सरकार विकास का दावा कर रही है, जो सत्यता से दूर है। श्री महंत ने कहा सरकार की टिफिन बांटने की योजना पर प्रहार करते हुए कहा कि डब्बा तो दे दिया है पर उसमें खाना कैसे आयेगा ये नहीं बताया जा रहा है, सरकार सिर्फ वोट बैंक की राजनीति कर रही है। उन्होंने मीडिया रिपोर्ट के हवाले से कुछ आंकडे प्रस्तुत किये है जिसमें मनरेगा की स्थिति को दयनीय बताते हुए कहा कि 2014-15 में मनरेगा का खर्च 220 करोड से घटकर जहां 166 करोड हो गया, वहीं एक साल में 100 दिन के रोजगार का अवसर घटकर 40 दिन रह गया है। यही कारण है कि ग्रामीण रोजगार मंत्रालय के संयुक्त सचिव ने छत्तीसगढ सरकार को भेजे पत्र में न सिर्फ गहरी नाराजगी जताई है बल्कि काम में सुधार लाने को कहा है। संयुक्त सचिव ने 13 बिन्दुओं के पत्र में रेखांकित करते हुए सिलसिलेवार तरीके से राज्य को यह बताया है कि कहां-कहां राज्य पिछड़ा हुआ है।

छत्तीसगढ़ में कार्य दिवस यानि रोजगार पैदा करने का अवसत महज 68 प्रतिशत है, जबकि काम पूरा करने को अवसत केवल 3 प्रतिशत है। राज्य में मजदूरों को समय पर मजदूरी देने का अवसत 14 प्रतिशत है, जबकि 86 प्रतिशत लोगों को मजदूरी 15 दिन या उससे भी देर से मिलती है। मोदी सरकार के गठन के बाद मनरेगा पर 40 हजार करोड़ रूपये से अधिक खर्च हुआ फिर भी कार्य दिवसों की संख्या में भारी कमी आ गई है। 2007-08 में योजना के शुरूआत के बाद कार्य दिवसों की मांग महज 143 कारोड़ थी। इसके बाद लगातार बढ़ोत्तरी होती रही। 2011-12 में कुल कार्य दिवसों की संख्या का अनुमान 200 करोड़ दिन लगाया था, जबकि मांग 219 करोड़ रही। मांग को देखते हुए 2012-13 में सरकार ने 278 करोड़ कार्य दिवस का अनुमान लगाया था, जबकि वास्तविक मांग 230 करोड की थी, लेकिन 2014-15 में यह संख्या घटकर सीधे 166 करोड़ हो गई, यही हाल एक मजदूर का सालाना काम करने के दिनों की संख्या में भी हुआ है। नरेगा कानून में एक परिवार को साल में 100 दिन का और सूखा या बाढ़ प्रभावित इलाकों में 150 दिनों का रोजगार देने का प्रावधान है, लेकिन जब से यह योजना लागू हुई हैं तब से ही यह औसत 46 दिन प्रतिवर्ष से अधिक नहीं गया। 2014-15 में तो यह औसत और भी घटकर 40 दिन पर आ गया है।

इस स्थितियों को देखने के बाद ही सुमीत्रा महाजन की अध्यक्षता वाली संसदीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में मनरेगा की अनेक खामियों को उजागर किया था और 28 ऐसी सिफारिशें की थी जिनसे इस योजना में सुधार हो सके। केन्द्र के निर्देशों के बाद भी इसमें सुधार की गुंजाईश है, क्योंकि कांग्रेस ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया था कि वह संप्रग सरकार की मनरेगा समेत कुछ फ्लेगशीप योजनाओं को बंद करने जा रही है, इस पर स्वयं प्रधानमंत्री, नरेन्द्र मोदी जी ने कांग्रेस के आरोपों का जवाब देते हुए कहा था कि मनरेगा कांग्रेस सरकार के कार्यकाल के खंडहर के तौर पर जीवित रखा जाएगा।

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