चंद्रकांत पारगीर, बैकुंठपुर। कोरिया जिले के बैकुंठपुर विधानसभा में आने वाले गांव बारबांध के आदिवासी परिवारों ने आने वाले विधानसभा चुनाव में मतदान का बहिष्कार करने का फैसला किया है। मूलभूत सुविधाओं से वंचित यहां के ग्रामीण लोक सुराज, कलेक्टर जनदर्शन, जनसमस्या समाधान शिविर सहित कई मंत्री विधायक को आवेदन दे देकर थक चुके हैं। उनका कहना है कि मतदान में वो भाग तभी देंगे जब सरकार उन्हें सड़क, बिजली और पानी की मांग पूरी करेगी। लोगों को राज्य सरकार ने मूलभूत सुविधाओं से महरूम रखा है। ग्रामीण सरकार से बेहद नाराज है।
गत मंगलवार को बारबांध के 90 आदिवासी परिवार ग्रामीण एकत्रित हुए और बैठक कर फैसला लिया गया कि वो अब आने वाले विधानसभा चुनाव का बहिष्कार करेंगे। ग्रामीणों का कहना है कि बीते कई सालों से वे कलेक्टर कार्यालय, जिला पंचायत से जनपद पंचायत के चक्कर लगा रहे है, परन्तु कोई उनकी सुनने को तैयार नही है। कुछ लोगों के यहां शौचालय निर्माण हुआ है जो बिना उपयोग के टूट गया है। जिला पंचायत के सीईओ को इसकी जानकारी भी दी गई, परन्तु उन्होने उनकी बात सुनना भी ठीक नहीं समझा।
ग्रामीण बताते है कि जनसमस्या शिविर में पहुंचे मंत्री से जब ग्रामीणों ने समस्याओं की मांग की तो उनका कहना है कि लेने के समय तो चले आते हो, देते वक्त तुम लोग वोट नहीं देते हो, दरअसल, बारबांध में 90 घर है और सभी गोंड आदिवासी है, यहां से बीते दो चुनाव से गोंगपा का कब्जा रहा है। ऐसे में इस गांव के विकास के लिए कोई भी आगे नहीं आता है। विभिन्न समस्याओं को लेकर यहां के ग्रामीणों के द्वारा हर जगह शिकायत दी। जन समस्या निवारण शिविर से लेकर कलेक्टर जनदर्शन में लेकिन यहॉ के समस्या को दूर करने की दिशा में कभी पहल नही किया गया। ग्रामीण अनीता, प्रेमवती, सविता, चंद्रवती, कुसुम, दुर्गावती, इदंकुंवर, रजनी, शांति, श्यामवती, रामबाई, फूलमती, दीपा, रामबाई, रामप्रसाद, सुभाष, बनवारी, प्राणसिंह, आनंद सिंह, गोपाल सिंह आदि ग्रामीणों ने ग्राम बारबांध का उपेक्षा का आरोप लगाते हुए कहा कि इस बार इस गांव के कोई भी मतदाता आगामी चुनाव में वोट नही डालेगा।
ढोढी के पानी से बुझती है प्यास
बारबांध में एक भी हैंडपंप नहीं है, यहां तीन ढोढी है, जिनसे यहां के ग्रामीणों और मवेशियों की प्यास बुझती है। बारबांध में पीने के पानी के लिए ग्रामीण बेहद परेशान है। ग्रामीणों का कहना है सबसे ज्यादा परेशानी के दिन अब आने वाले है, क्योंकि बारिश का पानी भी ढोढी मे चला जाता है, जिससे उन्हें कई बार उल्टी दस्त जैसे गंभीर बीमारियों का सामना करना पडता है। इसके अलावा पीने के पानी के लिए उन्हें 2 से 3 किमी तक का सफर तय करना पडता है।
खंभे आए और वापस ले गए
बारबांध में आजादी के बाद से बिजली नहीं हैै। पहाडी पर बसे इस गांव में एक साल पहले खंभे आए कुछ दिन वो यहां पडे रहे, अप्रैल माह में उन खंभों को ठेकेदार वापस ले गया, ग्रामीणों ने इसका विरोध किया, तो ठेकेदार ने कहा कि लोहे के खंभे यहां आएगें। वहीं गांव के नीचे हिस्से में कुछ दूरी पर खंभे खडे है परन्तु उनमें बिजली के तार नहीं है। ग्रामीणों की माने तो वे अंधेरे में ही जिंदगी गुजर बसर कर रहे है। मोबाइल जार्च करने उन्हें 8 किमी दूर जगतपुर आना पडता है। वहीं यहां प्रशासन ने सौर उर्जा की बिजली की भी व्यवस्था नहीं की है।
दर्जनों बच्चों ने छोड़ी पढ़ाई
बारबांध में कक्षा 5वी तक विद्यालय है, इसके बाद यहां के छात्राओं को आगे की पढ़ाई पूरी करने के लिए 10 किमी दूर बरबसपुर या नागपुर जाना पड़ता है। जिस कारण दर्जनों छात्र छात्राओं ने अपनी पढ़ाई छोड़ दी है। पढ़ाई छोड़ चुके नवजवान बताते है कि गांव में रोजगार है ना कृषि का काम, पूरा गांव मजदूरी के लिए चरचा, मनेन्द्रगढ़ और चिरमिरी जाता है।
सरपंच-सचिव कभी नहीं आते गांव
ग्रामीण बताते है कि बारबांध में दो वार्ड है वार्ड नं. 10 और 11, यहां के पंच शंकरलाल और बल्ली सिंह का कहना है कि बारबांध की समस्याओं को लेकर सरपंच सचिव कभी गांव नहीं आते है। मंगलवार की बैठक को लेकर भी उन्हे बुलवाया गया था, परन्तु उनकी सुध लेने कोई नहीं आता है, गांव के दर्जनों मजदूरों की मजदूरी बकाया है, वे इसकी शिकायत मनरेगा लोकपाल से करने से जा रहे है।
नहीं पहुंच पाती है 102, 108
इस गांव में आने के लिए पहाडी के उपर से होकर गुजरना होता है, कच्च्ी सड़क का निर्माण भी कई बार हुआ, परन्तु बारिश मे सड़क बह जाती है और बडे बड़े पत्थरों के बीच यहां के लोगों को पैदल चलकर आना जाना पड़ता है। पहाडी़ पर काली मिट्टी होने के कारण बारिश में फिसलन से कई बार ग्रामीण घायल भी हो चुके है। वहीं गर्भवती माताओं को मुख्य मार्ग तक ले जाने के लिए चार लोगों की मदद से लेकर जाना पड़ता है, यहां 102 और 108 संजीवनी एक्सप्रेस नहीं पहुंच पाती है।
कइयों की वृद्धा पेंशन बंद
गांव में लगभग एक दर्जन बुजूर्ग पुरूष और महिलाएं है, बीते कई माह से उन्हे वृद्धा पेंशन नहंी मिली है, साथ कई परित्यक्ता और विधवा महिलाएं भी है जिनकी पेशन भी नही आ रही है। इसके अलावा कई ऐसी महिलाएं भी है जिन्हे पहले पेंशन मिलती थी परन्तु अब बंद हो गयी है ऐंसी महिलाओं का राशन कार्ड भी काट दिया गया है।
कोई योजना का नहीं मिल रहा है लाभ
ग्रामीण बताते है कि गांव में घटिया शौचालय का निर्माण करवाया गया जिसके कारण कोई उपयोग नही करता है, कई लोगों का निर्माण भी नहीं कराया गया है। इसी तरह पीएम आवास एक दो लोगों को मिला है, परन्तु वो भी बीते दो साल से अधूरा है। कृषि विभाग के बीज कभी नहीं मिले है। दो दिन महिलाएं खून की कमी से यहां गुजर चुकी है।
हैलीकॉप्टर से कर लिया सर्वे
कोरिया जिले मे दो बार सूखा पडा, दोनों बार का मुआवजा यहां के ग्रामीणों को नहीं मिला, बीते 2016 के मुआवजे के लिए ग्रामीणों ने पटवारी से पूछा तो पटवारी का कहना है कि उसने हैलीकॉप्टर से उनकी फसलों को सर्वे किया है, किसी की फसल खराब नहीं हुई है इसलिए किसी को मुआवजा नहीं मिलेगा। लोगों ने बताया कि आज तक ऐसे कई परिवार है जिनका बांटाकंन नहीं हो पाया है।
मैं खुद ग्रामीणों से जल्द मिलूंगा-कलेक्टर
इस संबंध में कलेक्टर नरेंद्र दुग्गा ने कहा कि अभी आपके बताने पर मामला सामने आया है। मैं आज ही मनरेगा से सड़क पुलिया निर्माण का प्रस्ताव मांगता हूं, पीने के पानी और बिजली की समस्या के लिए मैं स्वयं उस गांव का दौरा करूंगा, ग्रामीणों को मजदूरी के लिए बाहर ना जाना पड़े इसके लिए वहीं गांव में रोजगार उपलब्ध कराया जाएगा। अन्य समस्याओं के लिए मैं खुद ग्रामीणों से जल्द मिलूंगा।
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