जगदलपुर। दक्षिण बस्तर नक्सली प्रभावित संवेदनशील क्षेत्र के बच्चे पढऩा तो चाहते हैं, पर गंाव तक जिला प्रशासन की पहुंच नहीं होने के कारण स्कूल की अव्यवस्था, शिक्षकों की कमी के चलते बच्चे आधी-अधूरी पढ़ाई छोडक़र गुम हो जाते हैं। कुंआकोंडा विकासखण्ड के नहाड़ी ग्राम पंचायत के आश्रित ग्राम मुलेर का स्कूल नए सत्र में कहां लगेगा शिक्षा विभाग ने अब तक तय नहीं किया है। मुलेर स्थित प्राथमिक शाला का कोई भवन नहीं है। स्कूल के नाम पर एक शेड बना है जहां झाडिय़ां उग आई हैं।
मुलेर तक कुआकोंडा ब्लाक और सुकमा जिले के गादीरास से पहुंचा जा सकता है, वह भी पगडंडी से, अन्य कोई उपाय नहीं है। इस प्राथमिक शाला में एक शिक्षक पदस्थ है, जो पहली से लेकर पांचवीं तक के बच्चों को पढ़ाता है। इस स्कूल में पिछले वर्ष 26 बच्चे दर्ज थे, इस साल इसमें से 3 छटवीं में चले गए, शेष 23 दूसरी से पांचवीं में पहुंच गए। सभी ने 10 किमी दूर नहाड़ी जाकर परीक्षा दी। गांव के भीमा, देवा, गंगा, लखमे, रमेश ने कहा कि यहां का स्कूल का संचालन सुचारू रूप से करने गांव में शिक्षा विभाग का कोई भी अधिकारी मौके पर नहीं पहुंचा।
स्कूल के नाम पर महज मध्यान्ह भोजन चल रहा है, जिसे रसोइया अपने घर से संचालित करता है, लेकिन यह भी महीने भर कभी नहीं चलता। ग्रामीणों ने बताया कि गांव में 80 परिवार हैं। इतने परिवार के करीब 20 बच्चों का स्कूलों में प्रवेश होना है, लेकिन अब तक यह भी नहीं मालूम कि गांव का स्कूल कहां है और कब बच्चों का होगा दाखिला। इस साल पास होने वाले 23 बच्चों को जोड़ दें तो कुल 43 हो जाते हैं।
जिला शिक्षा अधिकारी डी सोमैया ने बताया कि मुलेर स्कूल भवन बनाने कोई भी निर्माण एजेंसी तैयार नहीं है। नए सत्र में देखते हैं यहां कितने बच्चे आते हैं, इसके हिसाब से इन बच्चों को पोटा केबिन या आश्रम में शिफ्ट किया जाएगा। बताना जरूरी है कि पिछले साल भी इन्होंने कहा था कि इस स्कूल को किसी समीपस्थ स्कूल में मर्ज कर दिया जाएगा, पर अब तक नहीं किया। 20 बच्चे और जुड़ेंगे, खाना रसोइए के घर में ही बनता है।
यह भी देखे – संविलियन के बाद शिक्षाकर्मियों को ये होगा फायदा
Add Comment