
गरियाबंद। जिले के सुपेबेड़ा में किडनी मरीजों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। सुपेबेड़ा में ढाई साल से एक-एक कर किडनी के मरीजों की मौत हो रही है। अब मौत का ये आंकड़ा बढ़कर 64 हो गया है। प्रशासन गांव में व्यवस्थाओं के पुख्ता करने का दावा करता आ रहा है। राजधानी रायपुर से 250 किमी दूर गरियाबंद जिले के अंतिम छोर में बसे है गांव सुपेबेड़ा। किडनी की बीमारी अब इस गांव की पहचान बन गई है। किडनी की बीमारी से अब तक गांव में 64 मौत हो चुकी है और 200 से ज्यादा लोग अभी भी इस बीमारी से पीडि़त हैं।
सुपेबेड़ा में बुधवार को फिर एक महिला की मौत हो गई। महिला काफी लंबे समय से बीमार थी। ग्रामीणों ने आरोप लगाया है कि अगर प्रशासन सही समय पर ध्यान देता और महिला को समय पर इलाज मिलता को महिला की जान बचाई जा सकती थी। अब तक की रिपोर्ट में दूषित पानी को किडनी की बीमारी का कारण बताया गया है। जिला प्रशासन ने दावा किया है कि सुपेबेड़ा में शुद्ध पेयजल उपलब्ध कर दी गई है लेकिन जिला प्रशासन के दावे केवल कागजों तक ही सीमित हैं।
जमीनी हकीकत ये है कि आज भी सुपेबेड़ा के लोग दूषित पानी पीने पर मजबूर हैं। सुपेबेड़ा के हालात इतने गंभीर हो गए हैं कि गांव में 15 दिन में एक नया मरीज सामने आ रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि शासन उनकी समस्याओं को गंभीरता से नहीं ले रहा है। परेशान ग्रामीणों ने प्रदेश से अलग होने तक की मांग शासन से की थी। दिल्ली और रायपुर के स्पेशलिस्ट डॉक्टरों ने गांव पहुंचकर बेहतर इलाज का भरोसा दिलाया। रायपुर के मेकाहारा अस्पताल में सुपेबेड़ा के नाम से 5 बिस्तर का एक अलग विभाग भी बनाया। लेकिन मेकाहारा में भी ग्रामीणों को सही इलाज नहीं मिला। हालात ये है कि लोग अब इलाज के लिए मेकाहारा जाना ही नहीं चाहते।
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