रामगढ़ में 14 साल बाद सीएम रमन सिंह, आदिवासियों के सम्मेलन में हो सकते हैं शामिल

चंद्रकांत पारगीर, बैकुंठपुर । कोरिया जिले की तीन सीटों में पहले नंबर की सीट भरतपुर सोनहत के रामगढ़ में दूसरी बार सीएम रमन सिंह आने वाले हैं। बताया जाता है कि प्रशासन ने उन्हें चेरवा समाज के सम्मेलन में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया है। बीते एक माह के अंतराल मे कोरिया जिले में सीएम का ये तीसरा दौरा है। जानकारी के अनुसार कोरिया जिले की तीन विधानसभा सीटों में सबसे बड़ा क्षेत्र भरतपुर सोनहत का है। वहीं इस विधानसभा का एक हिस्सा मनेन्द्रगढ़ विकासखंड में भी आता है, इससे पहले सीएम बैकुंठपुर में लोक सुराज अभियान की समीक्षा बैठक में आए थे, तब उन्होंने भाजपा के पदाधिकारियों की बैठक ली थी, उसके बाद वे साहू समाज के कार्यक्रम में बैकुंठपुर के प्रेमाबाग पहुंचेे तो उसी दिन वे पटना में आयोजित भागवत में शामिल हुए। अभी 20 दिन भी नहीं बीते कि फिर जिला प्रशासन ने उन्हें आदिवासी बेल्ट मे चेरवा समाज के सम्मेलन में बुलावा भेजकर उन्हें कार्यक्रम में शिरकत करने का निवेदन किया है। सीएम पहले 1 मई को 11 बजे रामगढ़ स्थित गांगीरानी के मंदिर पहुंचगेे और नटवाही ग्राम पंचायत में ही वे चेरवा समाज सम्मेलन में हिस्सा लेंगे।
कोरिया के सोनहत तहसील मुख्यालय से 33 किमी दूर रामगढ़ में इससे पहले मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह जब पहली बार मुख्यमंत्री बने और उन्होंने ग्राम सुराज अभियान की शुरूआत की थी जब वे पहली बार इस अभियान को लेकर रामगढ़ में उतरे थे और उन्होने तुर्रीपानी मेें सोलर पंप की लगवाने की घोषणा की थी, जो लगा और फिर चोरी हो गया और हालत वैसे की वैसी हो गई। दरअसल, कोरिया की पहली विधानसभा सीट भरतपुर-सोनहत आदिवासी सीट है, यहां के आदिवासियों में बीते 14 साल के विकास के नाम पर कोई खास पहल नहीं की जा सकी है, वर्तमान प्रशासन ने आदिवासियों के नाम पर डीएमएफ का खजाना खोल रखा है, प्रशासन को भाजपा की स्थिति का पूरा अंदाजा है। इसलिए प्रशासन ने आदिवासियों के लिए जो वन अधिकार पट्टेधारी है उन्हें कम से कम लागत पर स्प्रिंकलर सेट, धान उड़ाने का पंखा सहित कई उपकरण नि:शुल्क बांटे जा रहे है, परन्तु यहां के निवासियों में सरकार के प्रति नाराजगी नि:शुल्क वितरीत ऐसे साजों सामान से नहीं जा रही है। वहीं ऐसे नि:शुल्क वितरण से सिर्फ व्यपारियों को लाभ पहुंच रहा हैै।
यहां के निवासियों को मूलभूत सुविधाओं को लेकर प्रशासन ने कुछ नहीं किया है, आज भी कई गांव ऐसे है जहां बिजली नहीं है, पीने के पानी यहां के लोगों के लिए सबसे बड़ी समस्या है, जिसका निदान प्रशासन ने सिर्फ कागजों पर किया है। वहीं ग्रामीण महंगाई को लेकर सबसे ज्यादा नाराज है वहीं किसी भी कार्यालय में बिना पैसे काम नहीं होने से भी वे काफी आक्रोशित है। इधर, दर्जनों गांव ऐसे है जहां मोबाइल में टॉवर नहीं है। इसके अलावा 35 किलो चावल काटकर 7 किलों करने से भी वे दुखी है तो राशन कटने से काफी ग्रामीण सरकार से नाराज है। जिसके कारण उन्हें कई योजनाओं का लाभ नहीं मिल पा रहा है। इस तरह मुख्यमंत्री के आने से आदिवासियों में नाराजगी कम होती है यह आने वाले चुनाव में देखने को मिलेगा।
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