रणबीर-रश्मिका की अदाकारी ने जमाया असली रंग
Movie Review
एनिमल
कलाकार
रणबीर कपूर , रश्मिका मंदाना , बॉबी देओल , तृप्ति डिमरी , सुरेश ओबेरॉय , शक्ति कपूर और अनिल कपूर
लेखक
संदीप रेड्डी वंगा , प्रणय रेड्डी वंगा और सौरभ गुप्ता
निर्देशक
संदीप रेड्डी वंगा
निर्माता
भूषण कुमार , मुराद खेतानी , कृष्ण कुमार और प्रणय रेड्डी वंगा
रिलीज
1 दिसंबर 2023
रेटिंग
4/5
फिल्म ‘एनिमल’ देखने से पहले जो सबसे जरूरी बात जाननी जरूरी है, वह ये है कि ये फिल्म सिर्फ वयस्कों के लिए है। कमजोर दिल के लोग इसे कतई न देखें। फिल्म का एडल्ट सर्टिफिकेट इस कहानी के उस स्वरूप के लिए है जिसमें वीभत्स, रौद्र, वीर और भयानक रसों का अतिरेक है। फिल्म की अंतर्धारा करुण रस है और इसमें हास्य, श्रृंगार, अद्भुत और भक्ति रसों का भी कहानी लिखते समय जगह जगह छिड़काव किया गया है। फिल्म को देखने की वजहें यूं तो तमाम हैं लेकिन ये फिल्म दो खास वजहों से खासी दर्शनीय बन पड़ी है। एक तो रणबीर कपूर के अब तक के सर्वश्रेष्ठ अभिनय के कारण और दूसरी इसकी पटकथा इतनी चुस्त है कि आखिरी दृश्य तक उत्सुकता बनाए रखती है। पारिवारिक मनोरंजन फिल्म न होने कारण इसके दर्शक कम हो सकते हैं, लेकिन साथ ही सच ये भी है कि सिर्फ वयस्कों के लिए बनी कोई संपूर्ण मनोरंजक फिल्म बड़े परदे देखे भी लोगों को अरसा हो चुका है। फिल्म ‘एनिमल’ दर्शकों की वह चाह पूरी करती है जो ओटीटी पर एडल्ट सीरीज देखते देखते लोगों को बहुत बोर कर चुकी है। फिल्म खत्म हो जाए तो सीट से उठना नहीं है क्योंकि एंड क्रेडिट्स के बाद का दृश्य दर्शकों के लिए ऐसा सरप्राइज है जिसके जल्द से जल्द पूरा होने का इस फिल्म को देखने वाले सभी दर्शकों को बेसब्री से इंतजार रहेगा।
बाप-बेटे की कहानी का तांडव
फिल्म ‘एनिमल’ जैसा कि रणबीर कपूर ने खुद कहा था कि ये एडल्ट ‘कभी खुशी कभी गम’ है, वैसी नहीं है। ये उससे कहीं आगे की बात करती है। ये पिता के अपने कामों में अति व्यस्त रहने के कारण कुंठा ग्रसित होते रहने वाले बालक रणविजय के भीतर भरे गुबार की ये कहानी है। कहानी शुरू होती है साल 2056 में, जब बुजुर्ग हो चुका एक बहुत बड़े कारोबारी साम्राज्य का मालिक अपने दोस्तों को राजकुमारी से छेड़छाड़ करने वाले बंदर की कहानी सुना रहा है। बालक बड़ा होता है तो अपनी बड़ी बहन को अपने पिता से बात करने की लगातार कोशिश करते देखता है। वजह? कॉलेज में कुछ लोगों ने उसकी रैगिंग की है। अपनी दीदी को छेड़ने वालों को वह सबक सिखाता है। कॉलेज में स्टेनगन लेकर घुस जाता है। ये सब देखकर पिता अपने बेटे को क्रिमिनल बताता है और उसे बोर्डिंग स्कूल भेज देता है। कहानी फिर आगे आती है। इस बार वहां जहां बालक की नौवीं क्लास की दोस्त की मंगनी हो रही है। वह उससे सवाल करता है। उधर, पिता अपने बेटे को घर निकाला दे देता है। लड़की अपने भाई के साथ उसके घर आती है और दोनों अमेरिका चले जाते हैं। बेटा वापस तब लौटता है जब पिता के ऊपर प्राणघातक हमला होता है। बेटा ऐलान करता है, ‘जिस किसी ने भी मेरे पापा बलबीर सिंह पर गोली चलाई है, उसका गला मैं अपने हाथ से काटूंगा।’ लगने लगता है कि घर का भेदी ही लंका ढा रहा है।
‘संजू’ से भी आगे निकल गए रणबीर कपूर
रणबीर कपूर की फिल्म ‘संजू’ अब तक उनके करियर की सर्वश्रेष्ठ फिल्म मानी जाती है। इस फिल्म में रणबीर कपूर इतने संजय दत्त लगे कि खुद संजय दत्त उतने संजय दत्त अब नहीं लगते हैं। इसी संजय दत्त की झलक फिल्म ‘एनिमल’ में भी दिखती है। रणविजय यहां अपने परिवार की सुरक्षा के लिए हथियार उठाता है। पिता कहता भी है, ‘अगर मैं सिर से हाथ उठा लूं तो तुम जेल में होगे।’ पिता पुत्र के बीच की इस खटास का पूरी कहानी पर असर रहता है और वापस अमेरिका जाने की तैयारी कर चुका बेटा जब अपने पापा से ये कहता है कि हम दोनों वही दिन दोहराते हैं जब माइकल जैक्सन का शो छोड़कर बेटे ने पापा का उनके जन्मदिन पर इंतजार किया था तो फिल्म का पूरा मर्म बहकर बाहर आ जाता है। रणबीर कपूर ने एक किशोरवय रणविजय से लेकर एक क्रूर, वहशी और खूंखार विजय तक का किरदार बहुत ही शानदार तरीके से निभाया है। ‘केजीएफ 2’ में यश के रोल में हिंदी सिनेमा का खोया एंग्री यंगमैन तलाशने का समय अब पूरा हुआ। हिंदी सिनेमा को एक नया एल्फा एंग्री यंगमैन फिल्म ‘एनिमल’ में मिल गया है। रणबीर कपूर का अभिनय फिल्म के हर दृश्य में लाजवाब है। और, अपनी बचपन की प्रेमिका के साथ के जो रणविजय के दृश्य हैं, उनमें रणबीर कपूर ने हर उस दिल को छुआ है, जिसने वाकई कभी सच्ची मोहब्बत की है।
संदीप रेड्डी वंगा का सिनेमा
बतौर निर्देशक संदीप रेड्डी वंगा की ये तीसरी और हिंदी में बस दूसरी फिल्म है। सिर्फ तीन फिल्मों से अपना एक अलग किस्म का सिनेमा रच देने वाले संदीप को इस फिल्म में हिंसा के अतिरेक के चलते आलोचनाओं का सामना भी करना पड़ेगा। लेकिन, यहां ये ध्यान रखने वाली बात है कि ये फिल्म सिर्फ वयस्कों के लिए बनी है। रक्त वह पहला स्पर्श है जिसे इंसान जन्मते ही महसूस करता है। हिंसा से बहा रक्त इसीलिए आदर्श परिस्थितियों में असहज करता है। लेकिन, पौरुष दिखाने में रक्त बहना मर्दानगी का करतब माना जाता है और इसीलिए ऐसे किरदारों को लेकर सिनेमा देखने वाले लालायित होते हैं। सिनेमा नवरसों की एक कला है और इसमें वीर, रौद्र, वीभत्स और भयानक रस भी कलात्मक तरीके से परदे पर आते रहने ही चाहिए। अभिनय की इन कलाओं को संदीप ने पूरी फिल्म में बहुत संजीदगी से साधा है। कहानी बीच में एक बार तृप्ति डिमरी के निभाए किरदार जोया के आने पर हिचकोले खाती है लेकिन जोया की असलियत का खुलासा होते ही फिल्म फिर से पटरी पर आ जाती है। कहानी, पटकथा और निर्देशन के अलावा संदीप ने फिल्म की एडिटिंग (संपादन) की भी जिम्मेदारी संभाली है और इस चौथे विभाग में उनका जो कौशल है वही तीन घंटे से अधिक की इस फिल्म को बांधे रखता है।
समझ सको तो समझ लो
फिल्म ‘एनिमल’ में हिंसा के बीच भी कुछ सामाजिक संदेश हैं। पति-पत्नी के रिश्तों की नाजुक डोर पर भी ये फिल्म संतुलन साधते चलती है तो साथ ही ये भी बताती है हिस्सा मांगने को लेकर होने वाली महाभारत का अंत सुखद नहीं होता। धर्म की आड़ लेकर एक से अधिक बीवियां रखने वालों पर भी इसमें एक तंज है कि जो महिलाएं इस तरह के रिश्ते में आती हैं, उनमें से अधिकतर की मंशा क्या होती है? और, पैसा पाते ही इंसान का रिश्ते भूल जाना। गांव में पीछे छूट गए कुटुंबजनों का ध्यान न रखने को लेकर भी फिल्म का एक इशारा है और इशारा ये भी है कि जब शहर के लोग आस्तीन के सांप बनकर खुद को दूध पिलाने वाले को ही डसने की घात लगाने लगते हैं तब असल मदद उनसे ही मिलती है जिनसे रिश्ता खून का होता है। पंजाब की पृष्ठभूमि इस फिल्म की मिट्टी है और पंजाबियत का हौसला इसका पानी। इस मिट्टी-पानी में खाद है फिल्म की कहानी, निर्देशन और इसके कलाकारों का अभिनय।
रौद्र रूप में रश्मिका ने दिखाए तेवर
अभिनय के मामले में वैसे तो फिल्म ‘एनिमल’ रणबीर कपूर की ही फिल्म कही जाएगी, लेकिन इस फिल्म को दर्शकों के दिलों से जोड़ने का काम करती हैं इसकी मुख्य अभिनेत्री रश्मिका मंदाना। घर वालों से बगावत कर एक सनकी टाइप के लड़के से शादी करने चली आई युवती से लेकर दो बच्चों की मां तक के किरदार में रश्मिका ने वाकई बहुत प्रभावी अभिनय किया है। रश्मिका का किरदार दक्षिण भारतीय ही रखा गया है लिहाजा उनके हिंदी बोलते बोलते अंग्रेजी में चले जाने की सहजता उनके किरदार को और मजबूत ही करती है। करवा चौथ के दिन अपने पति का इंतजार कर रही पत्नी के सामने जब पति ये बात स्वीकार करता है कि उसके दैहिक संबंध किसी और महिला से बन चुके हैं तो उसके बाद का जो दृश्य है, उसमें रश्मिका ने अपनी बेहतरीन अभिनय प्रतिभा का प्रदर्शन किया है। पति जब कोमा से लौटकर घर आता है और उसके सारे अंग शिथिल हो चुके हैं तब जब वह घर में काम कर रही सहायिका के सामने ही पत्नी संग अंतरंग होने की कोशिश करता है और रश्मिका इस सीन में अपने वस्त्र उतारकर रणबीर के पास आती हैं तो उस दृश्य को रचने और उसे निभाने के लिए जितनी तारीफ फिल्म के निर्देशक की होनी चाहिए, उससे कम तारीफ की हकदार रश्मिका भी नहीं हैं।
बाकी कलाकारों में अनिल कपूर ने रणबीर कपूर के पिता के किरदार में एक सख्तजान कारोबारी का किरदार शिद्दत से निभाया है। ये किरदार इस कहानी में कितना लंबा आगे खिंचेगा, ये तो पता नहीं लेकिन ये बलबीर सिंह का किरदार ही है जो रणविजय को एंग्री यंगमैन विजय बना देता है। फिल्म में शक्ति कपूर का फ्रेम में बस बने रहना भर दृश्य की मजबूती बन जाता है। उनके इशारे कहानी का तड़का है। सुरेश ओबेरॉय और प्रेम चोपड़ा ने भी अपने अपने किरदार मजबूती से निभाए हैं। उपेंद्र लिमये की फिल्म में एक खास भूमिका है और उनके मराठी संवाद व मराठी लहजा फिल्म को मजबूती देते हैं। रणविजय की मां बनीं चारू शंकर, बलबीर के दामाद बने सिद्धार्थ कार्णिक, आबिद हक के किरदार में सौरभ सचदेवा और रणविजय की बहनों के किरदार में सलोनी बत्रा और अंशुल चौहान ने भी गौर करने लायक अभिनय किया है। लेकिन, फिल्म में अदाकारी का असल खेल खेला है बॉबी देओल ने। उनका किरदार फिल्म खत्म होने के बस थोड़ी ही देर पहले आता है और पूरी कहानी को एक अलग ऊंचाई तक ले जाने में कामयाब रहता है। हां, ये बात और है कि जितनी हाइप फिल्म की रिलीज से पहले बॉबी को लेकर बनी, उस पर उनका किरदार खरा नहीं उतरता है।
फिल्म तकनीकी रूप से नए दौर के भारतीय सिनेमा की श्रेष्ठतम फिल्मों में गिनी जाएगी। अमित रॉय ने निर्देशक संदीप रेड्डी वंगा की आंखें बनकर काम किया है। फिल्म ‘एनिमल’ श्वेत-श्याम दृश्य से शुरू होकर श्वेत श्याम दृश्य पर ही खत्म होती है, लेकिन इसके बीच के तीन घंटे से अधिक समय के हर दृश्य में अमित रॉय ने वे सारे रंग भर दिए हैं जो संदीप ने अपनी कल्पना में सोचे होंगे। निर्देशक अच्छा हो तो वह अपनी कहानी में संगीत भी बहुत सोच विचार कर भरता है और हिंदी सिनेमा में अब कम ही ऐसे संगीत निर्देशक व गीतकार हैं जो संदीप जैसे किसी निर्देशक की पूरी सोच को अकेले दम पर सिनेमा में पिरो सकें। लिहाजा यहां भूपिंदर बब्बल समेत सात गीतकार हैं और करीब इतने ही संगीतकार। फिल्म के दो गाने ‘अर्जन वैल्ली’ और ‘पापा मेरी जां’ पहले ही हिट हो चुके हैं और आगे भी ये बजते ही रहेंगे। फिल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक, राज शेखर के बोल पर ‘पापा मेरी जां’ रचने वाले हर्षवर्धन रामेश्वर ने तैयार किया है और जिन लोगों ने ‘अर्जुन रेड्डी’ और ‘कबीर सिंह’ में उनका काम नोटिस किया है, वे यहां भी कहानी की सांस बन जाने वाले और संपूर्णता को पाने की कोशिश करते पार्श्वसंगीत पर गौर जरूर करेंगे। फिल्म का क्लाइमेक्स के बाद वाला पोस्ट क्रेडिट सीन मत मिस कीजिएगा क्योंकि यहां फिल्म की सीक्वल ‘एनिमल पार्क’ देखने का न्यौता भी है
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