छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में द्वारिका पीठ के शंकराचार्य सदानंद सरस्वती ने बयान दिया है कि राम राज्य के बिना हिंदू राष्ट्र की कल्पना नहीं की जा सकती। भारत आज भी अघोषित हिंदू राष्ट्र है, क्योंकि यहां हिंदुओं की संख्या 100 करोड़ से भी अधिक है। उन्होंने कहा कि धर्म के अनुसार ही राजनीति होनी चाहिए। बिना नैतिकता का ज्ञान कहां से आएगा। इसलिए धार्मिकता होनी ही चाहिए। जो लोग संप्रदाय शब्द का अर्थ नहीं जानते वे लोग बिना सोचे और राजनीतिक लाभ लेने के लिए संप्रदाय की बातें करते हैं, लोगों को बरगलाते हैं। इसलिए देश में शिक्षा का विकास होना जरूरी है।
शंकराचार्य स्वामी सदानंद सरस्वती मंगलवार की देर शाम कांग्रेस नेता अशोक अग्रवाल के घर पहुंचे थे, इसी दौरान ये बातें कही। वे आगे बोले रावण भी हिंदू था लेकिन उसकी पूजा नहीं होती। इसलिए राम राज्य जैसा ही शासन लाना होगा। उनके मुताबिक भारत अभी भी हिंदू राष्ट्र ही है, क्योंकि 130 करोड़ में से 100 करोड़ की जनसंख्या तो हिंदुओं की है। इसके लिए संविधान में संशोधन करना होगा जो आसान नहीं है।
सभी सनातनियों और धर्मावलंबियों को एकजुट होना होगा, ताकि बाहरी तत्व मतभेद पैदा न कर सके। दलगत राजनीति से ऊपर उठकर सनातन धर्म के लिए काम करना होगा। स्वामी सदानंद सरस्वती ने कहा कि चमत्कार होते हैं इसे स्वीकार करना होगा। चमत्कार और अंध विश्वास अलग-अलग है।
हमें सनातन हिंदू धर्म की सेवा करने की जिम्मेदारी दी गई है। हम इसे पूरा करने का प्रयास करेंगे। आदि शंकराचार्य ने हिंदू धर्म की रक्षा के लिए चार पीठ की स्थापना की और वहां प्रचार के लिए एक संविधान बनाया। जिसके तहत हमें काम करना होता है। हम अपने देश को नास्तिकता या धर्मांतरण, गोहत्या जैसे ज्वलंत मुद्दों और भारतीय संस्कृति को हमले से बचाएंगे। हमारी यात्रा, भ्रमण, धर्मसभा, उपदेश आदि धर्मांतरण को रोकने के लिए एकमात्र साधन हैं।
धर्म के प्रति बढ़ी है जागरूकता
शंकराचार्य ने कहा कि देश में शिक्षा की कमी है और इसका विकास होना जरूरी है। उन्होंने कहा कि हम युवाओं को और अधिक शिक्षित करेंगे। वर्तमान में धर्म और आस्था को लेकर लोगों में जागरूकता आई है। कोई भी भारतीय शाश्वत धार्मिक युवा अधार्मिक नहीं है। हम केवल धर्म को उनके गले से नीचे उतारने के लिए आतुर रहते हैं। इसके लिए शिक्षा में धार्मिक पाठ्यक्रम लागू होनी चाहिए। भागवत गीता, रामायण, महाभारत के शांतिपर्व के कुछ हिस्सों को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए। ताकि आने वाली पीढ़ी और युवाओं को लाभ मिले। धर्म की शुद्धि का सबसे बड़ा साधन दंड है। अगर देश में शिक्षा धार्मिक हो जाती है तो अच्छे संस्कार स्वतः ही चलेंगे।
अध्यात्म और कर्म में क्या अंतर है
उन्होंने कहा कि अध्यात्म का अर्थ है आत्मा के मार्ग पर चलना। आत्मानि भवं अध्यात्मम्। अर्थात भेद बुद्धि आध्यात्मिक पतन है और अभेद बुद्धि आध्यात्मिक उत्थान है। उसके लिए जो ज्ञान है, यह स्थापित है कि वेदों में तीन विभाग हैं। एक है कर्मकांड, दूसरा है उपासनाकांड और तीसरा है ज्ञानकांड यानि वेदांत पक्ष। कर्मकांड में 80 हजार मंत्र हैं, उपासनाकांड में 16 हजार मंत्र हैं और ज्ञानकांड में चार हजार मंत्र हैं। कर्मकांडों से सिद्ध होता है कि आत्मा निराकार है अर्थात परमात्मा की पूजा करनी चाहिए। उपासनाकंद ओंकार और शुभम की पूजा का आदेश देता है।।
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