जीएसटी एक्ट की खामी की वजह से राज्य और प्रदेश के बाहर के सैकड़ों कारोबारियों के लाखों रुपए रिफंड में फंस रहे। कारोबारी संगठनों का कहना है कि पिछले दो साल से व्यापारी इस नियम में फंस रहे हैं। इस वजह से उन्हें बड़ा नुकसान हो रहा है। दरअसल राज्य की सीमा में वाणिज्यिक कर अफसरों ने बिना दस्तावेजों के साथ आना-जाना कर रही गाड़ियों को पकड़ा था और उनसे पेनाल्टी भी वसूल की थी। लेकिन बाद में इस जुर्माने के खिलाफ व्यापारियों ने अपील की और वे बेकसूर भी साबित हुए।
फैसला कारोबारियों के पक्ष में आने के बाद नियमानुसार उन्हें जुर्माने का रकम लौटानी है। लेकिन अभी तक इन व्यापारियों को पेनाल्टी की रकम वापस नहीं हुई है। इसकी सबसे बड़ी वजह यह बताई जा रही है कि जुर्माने की कार्रवाई के दौरान आरोपी व्यापारी को प्रदेश का अस्थायी जीएसटी नंबर दिया जाता है। क्योंकि उसके पास पहले से ही अपने प्रदेश का स्थायी जीएसटी नंबर होता है।
अफसरों की ओर से जो नंबर दिया जाता है वो अस्थायी होता है और उसकी वैधता केवल तीन महीने की ही होती है। व्यापारियों के केस में अपील का फैसला आने में करीब सालभर का समय लग जाता है। ऐसे में जिन व्यापारियों के पक्ष में फैसला आ चुका है, वे जुर्माने की राशि वापस पाने के लिए आवेदन ही नहीं कर पा रहे।
जीएसटी काउंसिल तक अब मामला पहुंचा
ऐसे व्यापारियों को राहत दिलाने के लिए छत्तीसगढ़ चैंबर और कैट के साथ जीएसटी का काम करने वाले सीए और टैक्स सलाहकार एकजुट हो गए हैं। उन्होंने इस मामले की जानकारी जीएसटी कमिश्नर तक भी पहुंचा दी है। इसके अलावा जीएसटी काउंसिल के सदस्यों को बताया गया है कि अस्थायी आईडी-पासवर्ड की अवधि बढ़ाई जाए या फिर व्यापारियों पर जो केस दर्ज किया जा रहा है वो उनकी स्थायी जीएसटी नंबर के साथ ही किया जाए।
इससे वह पोर्टल पर ऑनलाइन आवेदन कर केस जीतने के बाद जरूरी रिफंड के लिए आवेदन कर सकेंगे। बताया जा रहा है कि इस नियम के कारण छत्तीसगढ़ ही नहीं बल्कि मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात के भी सैकड़ों व्यापारियों के करोड़ों रुपए डूब रहे हैं।
इस तरह से लगाया जाता है जुर्माना
सीए एसोसिएशन के चेतन तारवानी ने बताया कि जीएसटी की धारा 68 के तहत 50 हजार से अधिक कीमत के माल परिवहन के दौरान ई-वे बिल व अन्य दस्तावेजों का होना अनिवार्य है। प्रदेश के व्यापारियों पर उनके जीएसटी नंबर के तहत ही केस दर्ज किया जाता है, लेकिन छत्तीसगढ़ के बाहर के व्यापारियों से माल-वाहन पकड़ने पर उनका अस्थायी जीएसटी नंबर जनरेट कर जुर्माना (पेनाल्टी एवं टैक्स) वसूला जाता है। इस तरह के केस में 1 से 10 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जाता है।
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