पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में स्थित लाहौर किले में एक बार फिर महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा को कट्टरपंथियों द्वारा निशाना बनाया गया है. लाहौर शहर में मंगलवार को तीसरी बार महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा को तोड़ा गया.
कट्टरपंथी समूह तहरीक-ए-लब्बैक के सदस्यों ने प्रतिमा पर हमला किया और फिर इसे खंडित कर दिया. हालांकि, घटना की जानकारी मिलते ही पुलिस सक्रिय हो गई और उसने इस हमले को अंजाम देने वाले एक आरोपी को हिरासत में लिया है.
प्रतिमा के अनावरण के ठीक दो महीने बाद ही तहरीक-ए-लब्बैक के दो सदस्यों ने महाराजा रणजीत सिंह की प्रतिमा तोड़ डाली. पुलिस ने इस मामले में दोनों आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है.
TLP worker pulling down Ranjit Singh's statue at the Lahore Fort. The statue had previously been vandalized by TLP workers on at least two different occasions in the past. pic.twitter.com/IMhcZmPj7e
— Ali Usman Qasmi (@AU_Qasmi) August 17, 2021
ये दोनों आरोपी एक विकलांग और उसके सहायक के रूप में किले में दाखिल हुए थे. पैर की विकलांगता का नाटक करने वाले आरोपी शख्स ने मूर्ति को पहले छड़ी से मारा.
जबकि दूसरे व्यक्ति ने इस काम में उसकी मदद की. इस हमले की वजह से मूर्ति का एक हाथ और कुछ अन्य हिस्से टूट गए.
‘मुस्लिम देश में सिख शासक की मूर्ति लगाना धर्म के खिलाफ’
पुलिस ने बताया कि हमलावरों का मानना था कि मुस्लिम देश में सिख शासक की मूर्ति लगाना उनके धर्म के खिलाफ है. हाथ में तलवार लिए अपने पसंदीदा घोड़े कहार बहार पर बैठे सिख शासक की मूर्ति को पूरा करने में आठ महीने का समय लगा था.
प्रतिमा का निर्माण और स्थापना यूके स्थित सिख हेरिटेज फाउंडेशन के सहयोग से वाल्ड सिटी ऑफ लाहौर अथॉरिटी (डब्ल्यूसीएलए) द्वारा की गई थी, जिसने परियोजना को वित्त पोषित किया था.
महाराजा सिंह ने 40 सालों तक पंजाब पर किया था शासन
महाराजा की 180वीं पुण्यतिथि को चिह्नित करने के लिए जून 2019 में लाहौर किले में 9 फीट की प्रतिमा का अनावरण किया गया था. सिख साम्राज्य के पहले महाराजा सिंह ने करीब 40 सालों तक पंजाब पर शासन किया.
उनकी मृत्यु 1839 में हुई थी. शेर-ए-पंजाब के नाम से लोकप्रिय महाराजा रणजीत सिंह ने 19 वीं शताब्दी के शुरुआती समय में पंजाब क्षेत्र में सिख साम्राज्य पर शासन किया था.
रणजीत सिंह की मूर्ति कोल्ड ब्रोंज धातू से बनाई गई है, जिसमें महाराजा रणजीत सिंह हाथ में तलवार लिए सिख पोशाक में घोड़े पर बैठे नजर आ रहे थे. मूर्ति को फकीर खाना संग्रहालय के मार्गदर्शन में स्थानीय कलाकारों द्वारा बनाया गया है.
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