बिलासपुर। जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने राज्य शासन द्वारा टीकाकरण में आरक्षण लागू करने के खिलाफ हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें आरक्षण के बजाय संवैधानिक व विज्ञानी प्रविधान के अनुसार टीकाकरण कराने की मांग की गई है। वर्तमान में 18 से 44 साल के अंत्योदय राशन कार्डधारकों को टीका लगाया जा रहा है।
अमित जोगी ने अपने अधिवक्ता अरविंद श्रीवास्तव के माध्यम से हाई कोर्ट में याचिका दायर की है। इसमें उन्होंने दलील दी है कि छत्तीसगढ़ सरकार का टीकाकरण में आरक्षण लागू करने का निर्णय असंवैधानिक और अनैतिक होने के साथ ही गैरविज्ञानी भी है। टीकाकरण पहले उन लोगों का किया जाना चाहिए, जिनके संक्रमित होने की आशंका है। इसमें किसी वर्ग विशेष की बात नहीं है।
भले ही वे किसी भी वर्ग या जाति के क्यों न हों। टीकाकरण में प्राथमिकता का निर्णय अस्पताल के विशेषज्ञ डाक्टर ही ले सकते हैं ना कि वातानुकूलित कमरों में बैठे नेता। टीकाकरण का आधार आरक्षण की जगह विज्ञानी होना चाहिए और उपचार का सिर्फ एक ही आधार होता है जिसे चिकित्सा की भाषा में ट्राइएज कहा जाता है। यानी गंभीर रोगियों को पहले चिकित्सा देने की विधि के आधार पर टीकाकरण होना चाहिए।याचिका में उल्लेख किया गया है कि राज्य शासन द्वारा 15 अप्रैल को सर्वदलीय बैठक बुलाई गई थी। इसमें उन्होंने लिखित में कोरोना की रोकथाम, नियंत्रण और उपचार के लिए सुझाव दिए थे। इसमें उन्होंने शासन से आग्रह किया था कि एक मई से शुरू होने वाले 18-44 आयु के लक्षित समूह के टीकाकरण अभियान में ट्राइएज के आधार पर पूर्व रोग से ग्रसित लोगों को पहले टीका लगाया जाना चाहिए।
अमित जोगी का आरोप है कि छत्तीसगढ़ शासन द्वारा प्रचलित वैज्ञानी सिद्घांतों को ताक पर रखते हुए मनमाने तरीके से टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है, जिसका खामियाजा वास्तविक जरूरतमंदों को अपने जीवन से चुकाना पड़ सकता है। अमित व उनके वकील ने हाई कोर्ट से इस मामले पर प्राथमिकता से सुनवाई करने की भी गुहार लगाई है।
सरकार तय नहीं कर सकती किसे है जीने का अधिकार
याचिका में अमित जोगी ने स्पष्ट कहा है कि देश के संविधान में किसी भी शासक यानी कि सरकार को यह तय करने का अधिकार नहीं है कि किसे जीने दिया जाए और किसे मरने के लिए छोड़ दिया जाए। संवैधानिक रूप से सरकार यह भी तय नहीं कर सकती कि किस वर्ग को पहले टीका लगाया जाए और किस वर्ग को नहीं। शासन के इस निर्णय को संवैधानिक तथ्यों के आधार पर भी गलत ठहराया गया है। यही वजह है कि उन्होंने हाई कोर्ट से प्रकरण में हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई है।
Add Comment