देश के 13 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश की दर्जनों यूनिवर्सिटी के 31 छात्रों ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की है कि स्नातक और परास्नातक कोर्स के अंतिम वर्ष के छात्रों की परीक्षा अनिवार्य रूप से लेने के यूजीसी के आदेश पर तत्काल प्रभाव से रोक लगाई जाए। छात्रों की मांग है कि सीबीएसई की तर्ज पर उनके पिछले पांच सेमेस्टर के प्रदर्शन और आंतरिक मूल्यांकन के आधार पर अंक प्रदान करते हुए उन्हें 31 जुलाई तक डिग्री दे दी जाए।
इन 31 छात्रों में एक छात्र स्वयं भी कोरोना पॉजिटिव है। सुप्रीम कोर्ट ने छात्रों की याचिका स्वीकार कर ली है। अनुमान है कि इसकी जल्द सुनवाई हो सकती है। छात्रों का सुप्रीम कोर्ट में प्रतिनिधित्व कर रहीं वकील अनुभा श्रीवास्तव सहाय ने अमर उजाला को बताया कि कोरोना संक्रमण के खतरे के कारण छात्रों का बाहर निकलना बिल्कुल उचित नहीं है। ऐसे में यूजीसी का यह आदेश कि सभी विश्वविद्यालय स्नातक-परास्नातक के अंतिम वर्ष के छात्रों की परीक्षा अनिवार्य रूप से लें, गलत है।
छात्रों में कुछ स्वयं भी कोरोना से पीड़ित हैं तो भारी संख्या में छात्र ग्रीन जोन में रह रहे हैं जहां कि कोरोना संक्रमण इस समय बहुत तेजी से बढ़ रहा है।
यूजीसी ने क्या दिया है आदेश
मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक ने कहा है कि वे किसी छात्र की डिग्री पर कोरोना का असर नहीं देखना चाहते। इसलिए कोशिश की जा रही है कि किसी भी हालत में स्नातक-परास्नातक के अंतिम वर्ष के छात्रों की परीक्षा ली जाए और उसी के आधार पर उनकी डिग्री दी जाये।
यूजीसी ने इसी के आधार पर आदेश देते हुए सभी विश्वविद्यालयों को 30 सितंबर तक अंतिम वर्ष की परीक्षाएं आयोजित कराने का निर्देश दिया था। यूजीसी ने विश्वविद्यालयों को यह अनुमति अवश्य दे दी थी कि वे ऑनलाइन, ऑफलाइन या मिक्स्ड मोड में परीक्षा ले सकते हैं।
यूजीसी ने इसके मद्देनजर विश्वविद्यालयों से जानकारी भी मांगी थी। इसके जवाब में 640 विश्वविद्यालयों ने जवाब दिया था। 454 विश्वविद्यालयों ने कहा था कि या तो वे परीक्षा करा चुके हैं या परीक्षा कराने की तैयारी में हैं और इससे जुड़ी प्रक्रिया शुरू की जा चुकी है। यूजीसी ने बताया था कि 177 विश्वविद्यालय अभी भी परीक्षा कराने के विषय में कोई अंतिम निर्णय नहीं ले सके हैं।
इसी बीच यह जानना भी आवश्यक है कि 2019-2020 के बीच 27 नई यूनिवर्सिटी को मान्यता भी प्रदान की गई है। इन विश्वविद्यालयों में अभी पहली बैच के छात्र अंतिम वर्ष तक पहुंचे भी नहीं हैं।
बाढ़-कोरोना से बढ़ी दिक्कतें
दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्र उत्कर्ष सिंह, बीए (ओनर्स, अंतिम वर्ष), सत्यवती कॉलेज, ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट पहुंचने वाले छात्र केवल अपनी बात नहीं रख रहे हैं, वे पूरे देश के छात्रों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि आज देश में रोज 40 हजार के लगभग कोरोना के मामले सामने आ रहे हैं।
कई राज्यों में स्थिति बेकाबू हो रही है। इसके आलावा बाढ़ के कारण देश के अनेक राज्यों के हालात ऐसे नहीं हैं कि वहां के छात्र बाहर निकल सकें और परीक्षा दे सकें। ऐसे में बेहतर होगा कि सीबीएसई की तरह उन्हें भी समय से डिग्री प्रदान कर दी जाए।
यहां हो रहा टकराव
दरअसल, कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी ने भी यही सवाल उठाया था कि यूजीसी के कदम से अनेक विश्वविद्यालयों के बीच एकरूपता नहीं बन पा रही है। कुछ राज्यों ने अपने विश्वविद्यालयों को परीक्षा लेने से रोक दिया है, वहीं कुछ राज्य अभी भी परीक्षा कराने की तैयारी कर रहे हैं।
इससे असमंजस की स्थिति बन रही है और लोग एकरूपता लाने के लिए पूरे देश के विश्वविद्यालयों के लिए एक कानून बनाने की मांग कर रहे हैं। दिल्ली, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल जैसे अनेक राज्य हैं जिन्होंने अपने राज्यों के विश्वविद्यालयों को बिना परीक्षा कराए डिग्री दे देने की अनुमति दे दी है।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इसी प्रकार का निर्देश राजधानी के विश्वविद्यालयों के लिए दे दिया है। उन्होंने केंद्र सरकार से भी इसी प्रकार का निर्देश शेष राज्यों के लिए देने के लिए भी अपील की थी।
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