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चूहों के बिल से परेशान रेलवे ने ढूंढ निकाला निदान, आप भी जानिए…

नई दिल्ली। चूहे चाहे घर में हों, घर से बाहर हों या रेल्वे ट्रैक के नीचे, संकट देखते ही भाग खड़े होते हैं, चूहे तो भाग जाते हैं, पर उनके बिल आपको उनकी याद दिलाते रहते हैं। चूहों के बिल से ज्यादा परेशानी रेल्वे को होती है। क्योंकि पटरी के नीचे बने ये बिल बरसात में ट्रैक को खोखला करते हैं और दुर्घटनाओं को बुलावा देते हैं। लेकिन अब भारतीय रेल्वे ने भी चूहों के बिलों से निपटने का उपाय ढूंढ लिया है, जानिए क्या कर रही रेल्वे….
दरअसल, रेलवे ग्रांउड पेंट्रीएशन रडार (जीपीआर) तकनीक के जरिये पटरी के नीचे बने चूहों, खरगोश जैसे छोटे जीवों के बिल खोज रहा है। रेलवे अधिकारियों के मुताबिक, 29 करोड़ रुपये की कीमत वाली ये रडार मशीन प्रतिदिन 160 किलोमीटर ट्रैक का सर्वे कर सकती है। सर्वे के दौरान यह रडार ट्रैक पर गिट्टियों को भी संतुलित करते हुए जमीन के नीचे सुरंगों और बिलों को स्कैन करती है। स्कैन करने के बाद रडार मशीन विभाग को एरिया, लोकेशन की जानकारी देती है। फिलहाल रेलवे के पास 16 रडार हैं, जिनके जरिये नॉर्दन रेलवे में सर्वे कराया जा रहा है। इसके पहले चूहों को मारने के लिए रेलवे ने भटिंडा, लखनऊ समेत अलग-अलग मंडलों में लाखों रुपये के टेंडर दे रखे थे. लेकिन देखा गया कि चूहे तो मर गए, लेकिन उनके बिल के कारण दुर्घटनाएं होती रहीं. इसलिए रडार सिस्टम रेलवे ने खरीदा है। अब देखना है कि रेल्वे का यह प्रयोग चूहों के बिल ढूंढने में कितना कारगर होता है।

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