16 दिसंबर 2012, देश के लगभग हर जहन में दर्ज ये वही तारीख है, जब निर्भया के साथ सामूहिक दुष्कर्म के बाद बेरहमी से हत्या कर दी गई थी। सात साल बाद मुजरिमों को 1 फरवरी को फांसी होगी। दिल्ली में तिहाड़ जेल नंबर-3 में फांसी दी जाती है। देश के दूसरे हिस्सों में और भी कई ऐसी जेल हैं, जहां दोषियों को फांसी दी जाती है।
दिल्ली की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर और दिल्ली सेंटर ऑन द डेथ पेनल्टी के डायरेक्टर अनुप सुरेंद्रनाथ के मुताबिक भारत की 30 से ज्यादा जेलों में फांसी का तख्ता है। यानी यहां फांसी देने के इंतजाम हैं। हर राज्य का अपना अलग जेल मैनुअल होता है। दिल्ली के जेल मैनुअल के मुताबिक ब्लैक वॉरंट सीआरपीसी (कोड ऑफ क्रिमिनल प्रोसिजर) के प्रावधान के तहत जारी किया जाता है। इसमें फांसी की तारीख और जगह लिखी होती है। इसे ब्लैक वॉरंट इसलिए कहा जाता है क्योंकि इसके चारों ओर (बॉर्डर पर) काले रंग का बॉर्डर बना होता है।
फांसी से पहले मुजरिम को 14 दिन का वक्त दिया जाता है ताकि वो चाहे तो अपने परिवार वालों से मिल ले और मानसिक रूप से अपने आप को तैयार कर ले। जेल में उनकी काउंसलिंग भी की जाती है। अगर कैदी अपनी विल तैयार करना चाहता है तो इसके लिए उसे इजाजत दी जाती है। इसमें वो अपनी अंतिम इच्छा लिख सकता है। अगर मुजरिम चाहता है कि उसकी फांसी के वक्त वहां पंडित, मौलवी या पादरी मौजूद हो तो जेल सुप्रिटेंडेंट इसका इंतजाम कर सकते हैं।
कैदी को एक स्पेशल वॉर्ड की सेल में अलग रखा जाता है। फांसी की तैयारी की पूरी जिम्मेदारी सुपरिटेंडेंट की होती है। वो सुनिश्चित करते हैं कि फांसी का तख्ता, रस्सी, नकाब समेत सभी चीजें तैयार हों। उन्हें देखना होता है कि फांसी का तख्ता ठीक से लगा हुआ है, लीवर में तेल डला हुआ है, सफाई करवानी होती है, रस्सी ठीक हालत में है।
फांसी के एक दिन पहले शाम को, फांसी के तख्ते और रस्सियों की फिर से जांच की जाती है। रस्सी पर रेत के बोरे को लटकाकर देखा जाता है, जिसका वजन कैदी के वजन से डेढ़ गुना ज्यादा होता है। जल्लाद फांसी वाले दिन से दो दिन पहले ही जेल आ जाता है और वहीं रहता है।
फांसी हमेशा सुबह-सुबह ही होती है। नवंबर से फरवरी – सुबह आठ बजे। मार्च, अप्रैल, सितंबर से अक्तूबर – सुबह सात बजे और मई से अगस्त – सुबह छह बजे फांसी दी जाती है। सुपरिटेंडेंट और डेप्युटी सूपरिटेंडेंट फांसी के तय वक्त से कुछ मिनटों पहले ही कैदी के सेल में जाते हैं। सुपरिटेंडेंट पहले कैदी की पहचान करता है कि वो वही है, जिसका नाम वॉरंट में है। फिर वो कैदी को उसकी मातृभाषा में वॉरंट पढ़कर सुनाते हैं। उसके बाद सुपरिटेंडेंट की ही मौजूदगी में मुजरिम की बातें रिकॉर्ड की जाती हैं। फिर सुपरिटेंडेंट, जहां फांसी दी जानी है, वहां चले जाते हैं।
डिप्टी सूपरिटेंडेंट सेल में ही रहते हैं और उनकी मौजूदगी में मुजरिम को काले कपड़े पहनाकर, उसके हाथ पीछे से बांध दिए जाते हैं। अगर उसके पैर में बेड़ियां हैं तो वो हटा दी जाती हैं। फिर उसे फांसी के तख्ते की तरफ ले जाया जाता है। उस वक्त डेप्युटी सुपरिटेंडेंट, हेड वॉर्डन और छह वॉर्डन उसके साथ होते हैं। दो वॉर्डन पीछे चल रहे होते हैं, दो आगे और एक-एक तरफ से मुजरिम की बांह पकड़ी जाती है। मुजरिम फांसी वाली जगह पहुंचता है। उस जगह सुपरिटेंडेंट, मजिस्ट्रेट और मेडिकल ऑफिसर पहले से मौजूद होते हैं। सुपरिटेंडेंट, मजिस्ट्रेट को बताता है कि उन्होंने कैदी की पहचान कर ली है और उसे वॉरंट उसकी मातृभाषा में पढ़कर सुना दिया है।
कैदी को फिर हैंगमैन (जल्लाद) के हवाले कर दिया जाता है। अब अपराधी को फांसी के तख्ते पर चढ़ना होता है और उसे फांसी के फंदे के ठीक नीचे खड़ा किया जाता है। उस वक्त तक वॉर्डन उसकी बांहें पकड़कर रखते हैं। इसके बाद जल्लाद उसके दोनों पैर टाइट बांध देता है और उसके चेहरे पर नकाब डाल देता है। फिर उसे फांसी का फंदा पहनाया जाता है। जिन्होंने बांहें पकड़ रखी थी, अब वो वॉर्डन पीछे हो जाते हैं। फिर जैसे ही जेल सुपरिटेंडेंट इशारा करते हैं, हैंगमैन (जल्लाद) लीवर को खींच देता है। इससे मुजरिम जिन दो फट्टों पर खड़ा होता है वो नीचे वेल में गिर जाते हैं और मुजरिम फंदे से लटक जाता है। रस्सी से मुजरिम की गर्दन जकड़ जाती है और धीरे-धीरे वह मर जाता है।
बॉडी आधे घंटे तक लटकती रहती है। आधे घंटे के बाद डॉक्टर उसे मरा हुआ घोषित कर देता है। उसके बाद उसकी बॉडी को उतार लिया जाता है और पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया जाता है। सुपरिटेंडेंट अब फांसी का वॉरंट लौटा देता है और ये पुष्टि करता है कि फांसी की सजा पूरी हुई। हर फांसी के तुरंत बाद सुपरिटेंडेंट, इंस्पेक्टर जनरल को रिपोर्ट देता है। फिर वो वॉरंट उस कोर्ट को वापस लौटा देते हैं, जिसने ये जारी किया था।
पोस्टमॉर्टम के बाद मुजरिम की बॉडी परिवार वालों को सौंप दी जाती है। अगर कोई सुरक्षा कारण है तो जेल सुपरिटेंडेंट की मौजूदगी में शव को जलाया या दफनाया जाता है। यहां ये ध्यान देने वाली बात है कि फांसी की सजा पब्लिक हॉलीडे यानी सरकारी छुट्टी के दिन नहीं होती। (ये जानकारी दिल्ली के जेल मैनुअल और तिहाड़ के पूर्व जेलर सुनिल गुप्ता से बातचीत पर आधारित है। सुनिल गुप्ता के सामने आठ फांसी हुई हैं – रंगा-बिल्ला, करतार सिंह-उजागर सिंह, सतवंत सिंह-केहर सिंह, मकबूल भट्ट, अफजल गुरु की फांसी।)
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