छत्तीसगढ़

छत्तीसगढ़ : आत्महत्या नियंत्रण के लिए जागरूकता कार्यशाला का आयोजन… पढ़ाई के दवाब और कंपटीशन की भावना से तनाव में ना आयें… मनोवैज्ञानिक से संपर्क कर आत्महत्या को रोका जा सकता है

बिलासपुर। राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत डीएलएस स्नातकोत्तर महाविद्यालय और डीपी विप्र महाविद्यालय में राज्य मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सालय,सेंदरी, बिलासपुर द्वारा एक दिवसीय आत्महत्या नियंत्रण के लियें जागरूकता कार्यशाला का आयोजन किया गया ।

इसका मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों को विद्यार्थी जीवन में आने वाली चुनौतियों और तनाव से अवगत कराना था। कार्यशाला मे आत्महत्या के मनोवैज्ञानिक कारणों पर खुली चर्चा की गई।

मनोरोग विशेषज्ञ डॉ. मल्लिकार्जुन राव सागी ने बताया आजकल के छात्रों को पढ़ाई का दवाब अधिक रहता है औरकंपटीशन की भावना बढऩे के कारण लोगों को मानसिक दबाव झेलना पड़ता है।



मानसिक दबाव जब अपनी चरम सीमा पर पहुंचता है तो लोग गलत कदम उठा लेते हैं जिसको रोकने के लिए मानसिक दबाव को आपसी समन्वय, सामंजस, एवं आपसी संवाद के माध्यम से हल करना चाहिए।

चिकित्सक मनोवैज्ञानिक डॉ. दिनेशकुमार लहरी ने बताया विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार प्रत्येक वर्ष 8 लाख लोग आत्महत्या करते हैं । मानसिक विषाद, सदैव हीनता की भावना, से ग्रसित रहना अत्याधिक भावुक होना , क्रोधी होना,इच्छाओं का पूराना होना प्रमुख मानसिक विकारों के कारण है।

ऐसे ही कुछ कारण है जिसके कारण व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है । ऐसी भावनाएं आने पर मनोवैज्ञानिक की सलाह ले लेनी चाहिए जिससे इनका समय रहते निदान किया जाए।

डॉ. लहरी ने कहा जिस प्रकार शारीरिक रूप से बीमार होने पर डॉक्टर के पास जाते हैं, उसी प्रकार मानसिक बदलाव आने पर हमको तुरंत मनोवैज्ञानिक की सलाह लेनी चाहिए। राज्य स्तर पर मानसिक स्वास्थ्य चिकित्सालय सेंदरी बिलासपुर में है।
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साथ ही प्रत्येक जिले में स्पर्श क्लिनिक कार्य कर रहे हैं जहां पर मानसिक बदलाव महसूस होने पर संपर्क किया जा सकता है। जहां रोगियों की पहचान गुप्त रखी जाती है । समय रहते इलाज कराने से आत्महत्या को रोका जा सकता है।

मनो सामाजिक कार्यकर्ता प्रशांत रंजन पांडे ने आत्महत्या के मनोविज्ञान के कारणों का विस्तार से विवेचन कर एबिलिटी कॉपिंग प्रोडक्टिविटी जैसे मानसिक स्वास्थ्य के आधार स्तंभों पर खुली चर्चा की फाइट आर फ्लाइट एसीटी (आस्क केयरटेल) की विवेचना कर उन्होंने बताया किसी एक व्यक्ति के द्वारा आत्महत्या करने पर कम से कम 6 लोग प्रभावित होते जो आगे चलकर आत्महत्या तक कर सकते हैं।



उन्होंने छात्र-छात्राओं को विभिन्न विभिन्न खेलों के माध्यम से जीवन में आने वाली समस्याओं का सामना करने की पद्धति के बारे में बताया। इसमें विशेष रूप से महिला सहायता व शिकायत निवारण प्रकोष्ठ और महिला सशक्तिकरण प्रकोष्ठ का भी योगदान रहा।

कार्यशाला डॉ. बी.आर. नंदा अस्पताल अधीक्षक एवं डीएलएस स्नातकोत्तर महाविद्यालय और डीपी विप्र कॉलेज के संयुक्त प्रयास एवं मार्गदर्शन में किया गया। कार्यक्रम को सफल बनाने में डीएलएस स्नातकोत्तर महाविद्यालय बिलासपुर और डीपी विप्र महाविद्यालयबिलासपुर के समस्त स्टाफ की भूमिका महत्वपूर्ण रही।

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