नई दिल्ली। पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की जमीन दरकती दिख रही है। लोकसभा चुनाव के ट्रेंड बताते हैं कि बीजेपी ने संसदीय सीट और वोट शेयर में जैसी सेंधमारी की है, उसके मुताबिक अगर आज वहां विधानसभा चुनाव हों तो बीजेपी सरकार बना सकती है। इसे जानने के लिए लोकसभा चुनाव के नतीजों पर गौर कर सकते हैं।
अभी हाल में बीते चुनाव में बीजेपी ने बंगाल में 18 सीटें जीती हैं। इसके साथ हुए विधानसभा उपचुनावों में भी उसे 4 सीटें मिली हैं। इससे पता चलता है कि दशकों तक वामपंथ और तृणमूल कांग्रेस का गढ़ रहे बंगाल में बीजेपी ने अच्छी खासी बढ़त बना ली है।
बंगाल में 294 विधानसभा की सीटें (एक नामित उम्मीदवार को छोड़ कर) हैं। हालिया लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 129 विधानसभा क्षेत्रों में काफी अच्छी बढ़त बनाई है। इन क्षेत्रों में 43.5 फीसदी वोट शेयर का आंकड़ा बनता है। इस हिसाब से बीजेपी ने 43.5 प्रतिशत वोटों पर कब्जा जमा लिया है।
इसके अलावा बंगाल की 60 सीटें ऐसी हैं जहां बीजेपी मात्र 4 हजार वोटों से हारी है। दोनों तरह की सीटें जोड़ दें तो यह संख्या 189 के आसपास बैठती है। बंगाल में सरकार बनाने के लिए सीटों की यह संख्या मुफीद मानी जा सकती है।
दिलचस्प बात ये है कि बीजेपी ने जहां 129 सीटों पर बढ़त बनाई तो टीएमसी इससे कुछ ही ज्यादा 158 सीटों पर ही आगे रही। दोनों पार्टियों की सीटों का अंतर बताता है कि विधानसभा चुनाव में जीत हार का आंकड़ा बहुत बड़ा नहीं होगा, बशर्ते कि बीजेपी उन 60 सीटों पर कड़ी मेहनत करे जहां 4 हजार से भी कम वोटों से उसे हार मिली है।
लोकसभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि सीपीएम वोटों का एक बहुत बड़ा हिस्सा बीजेपी की ओर शिफ्ट हुआ है। हालांकि अब तक तृणमूल की रणनीति सीपीएम को तोडऩे और उनके वोट जोडऩे की रही है। मगर इस बार बीजेपी ने सीपीएम के वैसे नेताओं को खुद से जोड़ा और खामियाजा ममता बनर्जी की पार्टी को उठाना पड़ा है।
ममता बनर्जी की पार्टी को इस बार तीन मोर्चों पर करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा है। उत्तर बंगाल और जंगलमहल का इलाका मुख्यत: गरीबों और आदिवासियों का है। बीजेपी ने यहां अच्छी बढ़त बनाई है और उसे गरीबों-आदिवासियों के वोट मिले हैं। इस बदलते ट्रेंड ने ममता बनर्जी को चिंता में डाल दिया है, क्योंकि जिस माटी और मानुष को वे अपना वोट बैंक समझती हैं, इस बार उसमें भी सेंध लग गई है।
ममता बनर्जी को बंगाल के शहरी इलाकों में ज्यादा वोट मिलते रहे हैं। इस बार यह ट्रेंड भी पलटा है, क्योंकि टीएमसी के अंदरूनी सर्वे में पता चला है कि 70 लाख वोट ऐसे हैं जिसे पार्टी ने खोया है, जबकि सरकार ने कर्मचारियों के लिए वेतन आयोग की सिफारिश की थी।
ये वोट या तो बीजेपी को गए या फिर नोटा को। तृणमूल कांग्रेस जहां इन वोटों को लेकर सशंकित है तो बीजेपी इसे अपनी बड़ी विरासत मान रही है और आगामी विधानसभा चुनावों में भुनाने की तैयारी में है।
बंगाल में सरकार बनाने के लिए किसी भी पार्टी को 147 विधायकों की जरूरत होगी। बीजेपी चूंकि 129 सीटों पर आगे है इसलिए उसे लगता है कि आज की तारीख में उसे फायदे ही फायदे हैं। इसे 2016 की तुलना में देखना जरूरी होगा जब उसे मात्र 3 सीटें मिली थीं, जबकि लोकसभा के साथ हुए उपचुनाव में उसने 4 अतिरिक्त सीटें जीती हैं।
विधानसभा जीतने के लिए इसे अच्छा संकेत मान सकते हैं। विधानसभा उपचुनाव के ट्रेंड भी देखें तो ये बीजेपी के पक्ष में ज्यादा गया है। बीजेपी ने 40.5 फीसदी वोट पाकर चार सीटें जीत लीं, जबकि टीएमसी और निर्दलीय उम्मीदवारों को इससे कम 40.2 प्रतिशत वोट ही मिले।
मौजूदा विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस के 213, कांग्रेस के 43, सीपीएम के 25, आरएसपी के 3, एआईएफबी के 2, सीपीआई के 1, बीजेपी के 6, निर्दलीय के 1 और नामित के 1 विधायक हैं. 2016 के चुनाव में बीजेपी महज 6 सीटों पर सिमट गई थी जबकि आज उसे 129 सीटें जीतने का भरोसा है।
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