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नहीं सुधरा हेल्थ सिस्टम… ओमिक्रॉन की आशंका में सैंपल भेजे, लेकिन 5 दिन से रिपोर्ट ही नहीं आई…

प्रदेश के बिलासपुर में विदेश से लौटे दो लोगों के पाजिटिव मिलने के बाद ओमिक्रॉन के अंदेशे से इनके सैंपल 3 दिसंबर को भुवनेश्वर भेजे गए। पाजिटिव मिले लोग स्वस्थ होने लगे हैं, पर चार दिन में जांच रिपोर्ट नहीं आई जो यह बताएगी कि दोनों ओमिक्रॉन से संक्रमित थे या नहीं? अफसरों का मानना है कि भुवनेश्वर हो, विशाखापट्टनम हो या देश के 22 शहरों की अधिकृत लैब में से कोई भी, छत्तीसगढ़ से भेजे गए सैंपल की जीनोम सीक्वेंसिंग यानी वैरिएंट की पड़ताल की रिपोर्ट मिलने में 15 दिन से छह-छह माह तक बीत चुके हैं।

वैरिएंट फैलकर हजारों लोगों को संक्रमित कर देता है, तब तक रिपोर्ट मिल ही नहीं रही है। भास्कर की पड़ताल में खुलासा हुआ कि इस साल जनवरी से नवंबर तक प्रदेश से जांच के लिए साढ़े 3 हजार सैंपल भेजे गए, जिनमें अब तक 283 की रिपोर्ट ही नहीं मिली है। यानी स्पष्ट नहीं है कि जिनके सैंपल भेजे गए थे, वे ठीक होने से पहले कोरोना के किस वैरिएंट से संक्रमित हुए थे। जीनोम सीक्वेंसिंग की रिपोर्ट में देरी होना नई बात नहीं है। प्रदेश में कोरोना की दोनों लहरों में खासतौर पर दूसरी लहर में कहर मचाने वाले डेल्टा वैरिएंट का पता भी काफी दिन बाद ही चल पाया था।

इसमें किस तरह लेटलतीफी हो रही है, इसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि इस साल जनवरी से नवंबर के अंत तक भेजे गए 3344 सैंपल में से 283 की रिपोर्ट अभी तक नहीं आई है। इसमें अब दो सैंपल बिलासपुर के और जुड़ गए हैं। जिनको हाल ही में ओमिक्रॉन वैरिएंट के खतरे को देखते हुए भेजा गया था।

नवंबर माह की शुरूआत में वेटिंग में 343 रिपोर्ट थी। जो दिसंबर में घटकर 283 पर आ गई है। यानी वेटिंग के गैप में महज 60 सैंपल का ही अंतर आया है। दरअसल, जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए सैंपल की जांच स्थानीय स्तर पर नहीं हो सकने के कारण नए वैरिएंट को कंट्रोल करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। जानकार भी मान रहे हैं कि जीनोम सीक्वेंसिंग स्थानीय स्तर पर हो जाए तो नए वैरिएंट को नियंत्रण करने में काफी मददगार हो सकता है।

इसलिए हो रही देरी… हर कारण और बिंदु की पड़ताल
जीनोम सीक्वेंसिंग के 22 लैब के नेटवर्क में राजधानी नहीं
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय और संचारी रोगों यानी फैलने वाली बीमारियों को नियंत्रित करने वाली राष्ट्रीय संस्था नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ कम्युनिकेबल डिसीज की ओर से 22 लैब का एक नेटवर्क बनाया गया है। इसमें राजधानी नहीं है। इस नेटवर्क में आईसीएमआर ने लैब को रखा गया है। सैंपल की जांच करने के विभिन्न राज्यों की लैब राष्ट्रीय संस्थान को रिपोर्ट भेजती हैं.

एक हफ्ते से 15 दिन के अंदर में इसका एनालिसिस के बाद रिपोर्ट जारी की जाती है। किसी प्रदेश में मिले वैरिएंट कितने खतरनाक हैं या कौन से हैं, इस रिपोर्ट में यह सब होता है। 22 लैब का नेटवर्क इसलिए बना ताकि किसी प्रदेश में नया वैरिएंट मिले तो बाकी राज्यों में अलर्ट जारी किया जा सके।

पुराने सैंपलों की जीनोम रिपोर्ट में डेल्टा वैरिएंट की भरमार
केंद्रीय गाइडलाइन के मुताबिक आरटीपीसीआर सैंपल में पॉजिटिव आए सैंपल का पांच प्रतिशत सैंपल एडवांस जांच के लिए भेजना जरूरी है। प्रदेश में इस साल अब तक भेजे गए 34 सौ से अधिक सैंपल में 85 फीसदी में डेल्टा वैरिएंट ही मिला और यह रिपोर्ट अब तक आ रही हैं।

ओमिक्रॉन का खतरा आने के पहले से केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय से छत्तीसगढ़ शासन की ओर से यहीं लैब टेस्ट के लिए मंजूरी मांगी गई है। दरअसल, एम्स रायपुर में जीनोम सीक्वेंसिंग के लिए एडवांस लैब है। लेकिन कोरोना के लिहाज से 22 लैब का जो नेटवर्क बनाया गया है, उसमें एम्स रायपुर को एंट्री नहीं मिली है। इसलिए प्रदेश से सैंपल अन्य राज्यों में भेजने पड़ रहे हैं।

जीनोम सीक्वेंसिंग की अभी यह प्रक्रिया
आरटीपीसीआर टेस्ट में पॉजिटिव आए 5% सैंपल की एडवांस जांच।
सैंपल जिलों से मंगवाने के बाद दूसरे प्रदेशों में कूरियर से भेजे जा रहे।
जांच के बाद रिपोर्ट संचारी रोग नियंत्रण के पास भेजी जाती है।
आरटीपीसीआर जांच 1.60 लाख, इसमें 3344 सैंपल भेजे गए।

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