
अनपेक्षित परिणाम। कांग्रेस के लिए अनपेक्षित लहर। भाजपा के लिए अनपेक्षित झटका। जाहिर है, ऐसे परिणाम की उम्मीद किसी को नहीं थी। 15 निकायों में से 14 पर कांग्रेस का कब्जा। भाजपा के खाते में केवल एक नगर पालिका। 2018 के विधानसभा चुनाव की तरह कांग्रेसियों के चेहरे फिर खिल उठे जब 90 में से 68 सीटें कांग्रेस की झोली में चली गई थीं।
आज के परिणामों से दो सवाल खड़े हो रहे हैं पहला- कांग्रेस की सफलता का राज क्या है? और दूसरा- क्या भाजपा अब तक छत्तीसगढ़ में संभल नहीं पाई है? पहले सवाल के जवाब में प्रथम दृष्टया जो बात नजर आ रही है वह है- छत्तीसगढ़ियाें की छत्तीसगढ़िया सरकार और उसकी ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर फोकस करती योजनाओं का असर। चार नगर निगम को छोड़ दें तो बाकी वे क्षेत्र हैं जो कस्बाई शहर की श्रेणी में आते हैं। जहां पर किसानों की बहुलता है। यानी किसानों को लेकर हो रही बातों ने कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाया।
मुख्यमंत्री भूपेश बघेल जिस छत्तीसगढ़ी संस्कृति का झंडा लेकर निकले हैं, उसका असर भी इस चुनाव में देखने को मिला है। पार्षदों की संख्या को देखें तो कांग्रेस के आधे के बराबर भी भाजपा को जीत नहीं मिल पाई। मामला केवल सरकार के परफारमेंस तक ही नहीं सिमटा दिख रहा है। इसमें भाजपा के संगठित प्रयास की कमी भी नजर रही है। दूसरे सवाल का जवाब यही मिल रहा है कि भाजपा छत्तीसगढ़ में वापस अपनी ताकत संजो नहीं पाई है। खासकर स्थानीय चुनाव के मामले में। यही वजह है कि विधानसभा के दो उपचुनाव में और नगरीय निकाय के इस चुनाव में सफलता भाजपा से दूर ही नजर आ रही है। हम कह सकते हैं कि कांग्रेस 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए जिस राह पर चलेगी, वह साफ नजर आ रही है।