रायपुर। इस देश में सारी विचारधाराओं को आजमाया जा चुका है। अब समय भगत सिंह और डॉ अंबेडकर के विचारों को आजमाने का है। ये विचार हैं वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के. वे शनिवार को गांधी ग्लोबल फैमिली द्वारा प्रेस क्लब में आयोजित कार्यक्रम ‘भगत सिंह का भारत विषय पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई के दौर में भी एक वर्ग ऐसा था, जो भारत को अतीत में ले जाने का पक्षधर था। उर्मिलेश ने कहा कि भगत सिंह के बारे में यह आम धारणा थी कि वे एक बहादुर और लडाका जन नायक थे।
लेकिन बाद में जब उनके भांजे जगमोहन सिंह और चमनलाल ने उनके वैचारिक पक्ष को सामने लाया तो भगत सिंह का वास्तविक चेहरा सामने आया। भगत सिंह के सपनों के भारत की तस्वीर पहली बार सामने आई। उर्मिलेश ने भगत सिंह के लेखों को उद्धृत करते हुये कहा कि भगत सिंह की सांप्रदायिकता को लेकर एक साफ दृष्टि थी और वे राजनीति को धर्म से अलग रखने के पक्षधर थे।
उन्होंने कहा कि आज़ादी की लडाई में अंबेडकर के अलावा अगर दलित मुद्दों पर कोई और भी सोच रहा था, वे भगत सिंह ही थे। पंजाबी की कीर्ति पत्रिका में प्रकाशित उनके एक लेख का हवाला देते हुये उर्मिलेश ने कहा कि भगत सिंह ने दलित समस्या को बजबजाता हुआ नाला मानते हुये उस पर कई गंभीर सवाल उठाये।
उर्मिलेश ने कहा कि नेहरु की आलोचना करने वालों को इतिहास का ज्ञान नहीं है। इसलिये ऐसे लोग हमेशा इतिहास और ज्ञान पर हमला करते हैं। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुये आलोचक प्रोफेसर सियाराम शर्मा ने कहा कि भगत सिंह के सपनों का भारत किसानों और मजदूरों का भारत था। आजादी के दौर में किसान फाँसी पर लटकाये जा रहे थे लेकिन वे आत्महत्या नहीं करते थे।
लेकिन पिछले तीस सालों में देश में चार लाख किसानों ने आत्महत्या कर ली। आगे शर्मा ने कहा कि पिछले पाँच सालों में तर्क और विज्ञान को खारिज कर के झूठ और अवैज्ञानिकता को तेजी से बढ़ावा दिया गया। उन्होंने कहा की भगत सिंह कहते थे कि पढ़ो, आलोचना करो, सोचो और फिर विचार बनाओ। कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन डॉ. राकेश गुप्ता ने किया।
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