रायपुर। वर्तमान में बदलते दौर के चलते आज संयुक्त व खुशहाल परिवार बहुत की कम देखने के मिलता है बदलती जीवन शैली के दौर में लोग तनाव व बीमार रहने लगे हैं। जिसका प्रमुख कारण है तनाव। परिवार में कैसा रहा जाए क्या संस्कार बच्चों को माता-पिता द्वारा दिया जाए ऐसे ही विषयों पर ग्वालियर में आयोजित भारतीय परिवार व्यवस्था कार्यक्रम के दौरान लोगों को दी गई ।
जिसमें बताया गया है कि मानवता के लिए अनुपम देन परिवार की व्यवस्था समाज का मानवता को दिया हुआ अनमोल योगदान है। अपनी विशेषताओं के कारण हिन्दू परिवार व्यक्ति को राष्ट्र से जोड़ते हुए वसुधैव-कुटुम्बकम् तक ले जाने वाली यात्रा की आधारभूत इकाई है।
परिवार व्यक्ति की आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा की सम्पूर्ण व्यवस्था के साथ-साथ नई पीढ़ी के संस्कार निर्मिति एवं गुण विकास का महत्त्वपूर्ण माध्यम है। वहीं हिन्दू समाज के अमरत्व का मुख्य कारण इसका बहुकेन्द्रित होना है एवं परिवार व्यवस्था इनमें से एक सशक्त तथा महत्वपूर्ण केंन्द्र है।
आज हमारी परिवार रूपी यह मंगलमयी सांस्कृतिक धरोहर बिखरती हुई दिखाई दे रही है। भोगवादी मनोवृत्ति एवं आत्मकेन्द्रिता का बढ़ता प्रभाव इस पारिवारिक विखंडन के प्रमुख कारण हैं। आज हमारे संयुक्त परिवार एकल परिवारों में परिवर्तित होने लगे हैं।
भौतिकतावादी चिन्तन के कारण समाज में आत्मकेन्द्रित व कटुतापूर्ण व्यवहार, असीमित भोग-वृत्ति व लालच, मानसिक तनाव, सम्बंध विच्छेद आदि बुराइयाँ बढ़ती जा रही हैं। छोटी आयु में बच्चों को छात्रावास में रखने की प्रवृत्ति बढ़ रही है। परिवार के भावनात्मक संरक्षण के अभाव में नई पीढ़ी में एकाकीपन भी बढ़ रहा है।
जिसका परिणामस्वरूप नशाखोरी, हिंसा, जघन्य अपराध तथा आत्महत्याएँ चिन्ताजनक स्तर पर पहॅुंच रही हैं। परिवार की सामाजिक सुरक्षा के अभाव में वृद्धाश्रमों की सतत वृद्धि चिंताजनक है। अ.भा. प्रतिनिधि सभा का यह स्पष्ट मत है कि अपनी परिवार व्यवस्था को जीवंत तथा संस्कारक्षम बनाए रखने हेतु आज व्यापक एवं महती प्रयासों की आवश्यकता है।
दैनन्दिन व्यवहार व आचरण से यह सुनिश्चित करें कि हमारा परिवार जीवनमूल्यों को पुष्ट करने वाला, संस्कारित व परस्पर संबंधों को सुदृढ़ करने वाला हो। सपरिवार सामूहिक भोजन, भजन, उत्सवों का आयोजन व तीर्थाटन; मातृभाषा का उपयोग, स्वदेशी का आग्रह, पारिवारिक व सामाजिक परम्पराओं के संवर्धन व संरक्षण से परिवार सुखी व आनंदित होंगे। परिवार व समाज परस्पर पूरक हैं। आवश्यक कदम उठाएँ।
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