आदिवासियों की जमीन बेचने परमिशन नहीं दे पाएंगे कलेक्टर…भूपेश सरकार ने बदला नियम…

रायपुर। राज्य सरकार ने कैबिनेट की बैठक में आदिवासियों की जमीनों के अधिग्रहण का नियम बदल दिया है। अब तक सड़क, रेल लाइन, उद्योग के लिए आदिवासियों की जमीन को अधिग्रहण करने का अधिकार कलेक्टरों को थी। सरकार ने अब इस पर रोक लगा दी है। अब कलेक्टर और एसडीएम भू अर्जन नहीं कर पाएंगे।
सड़क, रेल लाइन, उद्योग के जमीन की जरूरत होने पर सरकार एसडीएम के माध्यम से सीधे ले लेती थी। पावर प्लांट या कोयला खदानों के लिए उद्योगपतियों को सरकार जमीन दे देती थी। इसके लिए कलेक्टर के माध्यम से भू अर्जन किया जाता था और मुआवजा वितरण के बाद जमीन उद्योग की हो जाती थी। अब नियम बदले हैं तो उद्योग लगाने के लिए कलेक्टर और एसडीएम भू अर्जन नहीं कर पाएंगे।
कैबिनेट मेें गुरुवार को निर्णय लिया कि भू राजस्व संहिता की धारा 165 में संशोधन किया जाएगा।
इसके तहत कलेक्टरों को जमीनों का अधिग्रहण करने का अधिकार था। सड़क, रेलमार्ग, उद्योग आदि प्रयोजनों के लिए कलेक्टर आदिवासियों की जमीन लेने की अनुमति देते थे। धारा 170 में यह प्रावधान है कि एसडीएम सीधे किसानों से अनुबंध कर सकते हैं। इस अनुबंध के आधार पर आदिवासियों की जमीन की रजिस्ट्री हो जाती थी और किसानों को मुआवजा मिल जाता था। यह नियम पूर्ववर्ती भाजपा सरकार ने 2016 में बनाया था।
2016 में तत्कालीन भाजपा सरकार ने नियम बनाया था कि आदिवासियों की जमीन सीधे समझौते के तहत कोई भी ले सकता है। इस संबंध में विधेयक आया तो सर्व आदिवासी समाज सड़क पर उतर गया। विरोध इतना हुआ कि सरकार को झुकना पड़ा था और विधेयक वापस लेना पड़ा था।
हालांकि परियोजनाओं के लिए जमीन लेने का प्रावधान तब भी बना रहा। दरअसल सड़क आदि के लिए आदिवासी जमीन की अनुमति लेने के लिए केंद्र सरकार के पास आवेदन लगाना पड़ता था। लंबी प्रक्रिया से बचने के लिए सरकार ने नियम बदले थे।
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