रायपुर। ईओडब्ल्यू ने सस्पेंड आईपीएस अफसरों मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह को नोटिस भेजा है। ईओडब्ल्यू के अधिकारियों ने बताया कि पूर्व में भी अधिकारियों को दो बार नोटिस भेजा गया था लेकिन कोई जवाब नहीं मिला। वहीं निलंबित अधिकारी के अपने निवास पर मौजूद नहीं होने के कारण नोटिस को तामील नहीं किया जा सकी है।
ज्ञात हो कि दोनों पर आपराधिक षडयंत्र और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर झूठे केस बनाने के आरोप में मुकदमा दर्ज किया गया है। इससे पहले 7 फरवरी की रात नान घोटाले में अवैध फोन टैपिंग के मामले में दोनों पर केस दर्ज हुआ था। सरकार ने शनिवार देर रात दोनों को सस्पेंड कर दिया था।
ज्ञात हो कि इओडब्ल्यू ने निलंबित विशेष महानिदेशक मुकेश गुप्ता और एसपी रजनेश सिंह के खिलाफ 5 दिन में दूसरी बार एफआईआर दर्ज किया है। इओडब्ल्यू की ओर से निरीक्षक जीवन कुजूर द्वारा सोमवार की रात को इसकी शिकायत दर्ज कराई गई है, इसमें दोनों ही अफसरों द्वारा जलसंसाधन विभाग में हुए भ्रष्टाचार के मामले में दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ करने, कूटरचित दस्तावेज तैयार कर उसका उपयोग करने, आपराधिक षडय़ंत्र रचने सहित फोन टेंपिग कराने और साक्ष्य को छिपाने का आरोप लगाया गया है।
दोनों ही अफसरों के खिलाफ इससे पहले 7 फरवरी को नान घोटाले में एफआइआर दर्ज किया गया था। एफआईआर दर्ज होते ही मुकेश गुप्ता और रजनेश सिंह फरार हो गए हंै। इओडब्ल्यू की टीम उनकी तलाश कर रही है।
इओडब्ल्यू और एसीबी के डीजी मुकेश गुप्ता और एसपी रजनेश सिंह द्वारा दर्ज किए गए पुराने मामलों को फिर से खोलने की तैयारी चल रही है। बताया जाता है कि अपने कार्यकाल के दौरान दोनों ही अफसरों ने 200 से ज्यादा भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई की थी, इसमें से अधिकांश मामलों में फर्जी दस्तावेज तैयार कर उनके साथ ब्लैकमेलिंग करने की शिकायत भी मिली है।
इओडब्ल्यू के एसपी आइके एलेसेला ने बताया कि जलसंसाधन विभाग के मुख्य अभियंता आलोक अग्रवाल उसके भाई पवन अग्रवाल और पार्टनर अभीष स्वामी के ठिकानों पर 2014 में छापेमारी की गई थी। इस दौरान उनके खिलाफ आय से अधिक संपत्ति का मामला दर्ज किया गया था। तलाशी में उनके ठिकानों से करीब 35 करोड़ रुपए की संपत्ति जब्त की गई थी।
लेकिन, जांच के दौरान साक्ष्यों के साथ छेड़छाड़ कर कूटरचित दस्तावेज तैयार कर उसे असली बताकर उसका उपयोग किया गया था। इओडब्ल्यू के एसपी ने बताया कि दोनों ही एफआइआर में धारा 166, 166 ए, 167, 193, 196, 201, 466, 467, 471, 120 बी तथा भारतीय टेलिग्राफ़ एक्ट 25, 26 सहपठित धारा 5 (2) के तहत मामला पंजीबद्ध किया गया है। लेकिन, दूसरी एफआइआर में 471, 201, 166 और 467 को अतिरिक्त जोड़ा गया है।
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